सोनिया गांधी के यौम ए पैदाईश पर विधायक नूंह आफताब अहमद का विशेष लेख 

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City24news/अनिल मोहनिया
नूंह | जिंदगी के 78 साल पूरे कर चुकी कॉंग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के त्याग, बलिदान और संघर्ष की उल्लेखनीय कहानी को आज के दशक की राजनीति में हर किसी को जानना चाहिए।

राजीव गांधी से उनकी शादी हुई, फिर जीवन के आधे अधूरे दाम्पत्य सफर में पहले एक हमले में उन्होंने अपनी सास पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को खोया और फिर अपने सुहाग पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को। एक महिला के लिए इससे बड़ा सदमा कुछ भी नहीं हो सकता है। और अगर सास और पति दोनों प्रधानमंत्री रहते हुए शहीद हो जाएं तो दर्द के साथ साथ जिम्मेदारियां परिवार के अलावा पार्टी की भी भारी होती हैं।

इस हादसे के बाद भी वह कुछ समय राजनीति से दूर ही रहीं लेकिन जिम्मेदारियां संगठन की आने के बाद ना केवल उनका निर्वाहन किया ब्लकि पार्टी के बुरे समय में अध्यक्ष पद संभाला फिर इसके बाद उन्होंने कॉंग्रेस की केंद्र में सरकार बनाई और लगातार दो बार सफलतापूर्वक गठबंधन सरकार बनाने में सार्थक और सकारात्मक भूमिका निभाई।

भारतीय राजनीति में उन्होंने त्याग और बलिदान को प्रधानमंत्री पद से ऊपर रखकर खुद को एक अलग पहचान देने का फैसला किया और उन्होंने सत्ता छोड़कर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया।

इसी फैसले ने सोनिया गांधी को भारतीय राजनीति के इतिहास में एक बड़ी छाप छोड़ने के लिए याद किया जाएगा।

सोनिया गांधी ने 2004 की जीत के बाद प्रधानमंत्री पद से इनकार कर सत्तारूढ़ गठबंधन और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का नेतृत्व किया, जिन्हें सूचना का अधिकार, खाद्य सुरक्षा विधेयक और मनरेगा जैसे अधिकार-आधारित विकास और कल्याण योजनाओं के गठन और बाद में कार्यान्वयन का श्रेय दिया जाता है।  किसानों के हज़ारों करोड़ के कर्ज़ माफ़ी में सोनिया गांधी के योगदान को सभी जानते हैं।

त्याग, बलिदान और निस्वार्थ भावना के दम पर ही 2004 से 2014 तक सोनिया गांधी भारत के सबसे प्रभावशाली राजनेता के रूप में उभरी। अलग अलग पत्रिकाओं ने उन्हें सबसे शक्तिशाली लोगों और महिलाओं की सूची में स्थान बनाया। 2013 में, फोर्ब्स पत्रिका द्वारा सोनिया गांधी को दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिलाओं में 21वां और 9वां सबसे शक्तिशाली महिला का दर्जा दिया गया था। 2007 में, उन्हें इसी पत्रिका द्वारा दुनिया की तीसरी सबसे शक्तिशाली महिला नामित किया गया और 2007 में विशेष सूची में उन्हें 6वां स्थान दिया गया था। 2010 में, फोर्ब्स पत्रिका द्वारा गांधी को ग्रह पर नौवें सबसे शक्तिशाली व्यक्ति के रूप में स्थान दिया गया था। 2012 में फोर्ब्स की शक्तिशाली लोगों की सूची में उन्हें 12वां स्थान दिया गया था। सोनिया को 2007 और 2008 के लिए टाइम द्वारा दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में भी नामित किया गया था। न्यू स्टेट्समैन ने 2010 में दुनिया के 50 सबसे प्रभावशाली शख्सियतों के अपने वार्षिक सर्वेक्षण में सोनिया गांधी को 29वें नंबर पर सूचीबद्ध किया था।

सोनिया गांधी को उनके दो दशक के राजनीतिक सफर कांग्रेस के लिए एक स्वर्णिम रूप में तो याद किया जाएगा यह कोई नहीं झुठला सकता। फिर एक महिला होने के बाद भी उन्होंने कांग्रेस को विपरीत परिस्थितियों में 10 साल तक सत्ता में पहुंचाया ये भी एतिहासिक है। सदी का सबसे बड़ा त्याग और बलिदान का उदहारण देकर प्रधानमंत्री जैसे पद को ठुकराया, इसे भारतीय राजनीति के इतिहास में सोनिया गांधी ने अपने साहसिक फैसले से ही दर्ज कराया। 

इतने लंबे समय राजनीति में शीर्ष पर रहने के बावजूद बिना किसी आरोप के देश की सेवा करना निसंदेह एक बड़ी उपलब्धि है जो आसान नहीं होती है। राजनीति में उनके द्वारा स्थापित मानक आदर्श हैं जिन्हें पाने की कोशिश अन्य राजनेताओं को भी करनी चाहिए।

आज के दशक में बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व जिस तरह सत्ता के लिए लालायित रहता है फिर चाहे नैतिकता का ही बलिदान क्यों नहीं देना पड़े उस दौर में प्रधानमंत्री पद ठुकराने वाली सोनिया गांधी को सलाम तो बनता ही है। आज के नेताओं को त्याग, बलिदान और संघर्ष के लिए सोनिया गांधी का अनुसरण जरूर करना चाहिए।

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