खेल खेल में हो जाता था योग व्यायाम कसरत: महावीर नम्बरदार

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 पारंपरिक खेलों के खेलने से शरीर बनता है हष्ट पुष्ट व बलवान: महावीर
City24news/अनिल मोहनिया
नूंह | पहले के समय में खेल खेल में ही योग,व्यायाम,कसरत हो जाता था लेकिन बदलते परिवेश में समय के साथ साथ खेलो का स्वरूप भी बदल गया है।सामरिकता के रंग में पारंपरिक खेल लुप्त होते जा रहे हैं उनका स्थान नए खेलो ने ले लिया है। उक्त विचार 79 बसंत देख चुके हरियाणा नंबरदार एसोसिएशन के पूर्व जिला अध्यक्ष व बुजुर्ग समाजसेवी महावीर प्रसाद जैन नम्बरदार ने बताया की वो भी क्या दिन थे जब अपने कार्यों से निवृत्त होकर सभी मित्रवर झुंड (टोली) बनाकर खेलों को खेला करते थे। यादों के झरोखों में झांककर उन्होंने बताया की घर व विद्यालय (पाठशाला) का कार्य करने के पश्चात खेलने के लिए जाया करते थे। प्रतिदिन नित नये खेल खेला करते थे। उन्हें भूख,प्यास की कोई चिंता नही होती थी। मगर आज के वक्त में किसी को खेल खेलने की फुर्सत नहीं है यदि है भी तो आधुनिक खेलों को खेलने की। हमारे जमाने में किल किल काटिया, पेट गुट्टी, अष्टा चंगा,बर्फी ,चोपड़, हवाई जहाज, गुड्डा गुड़िया ,लुकाछिपी, चोर सिपाही, शीतल, घोड़ा वाला, पिट्टू गरम,विष अमृत,ऊँच नीच का पापडा,खो खो, कबड्डी आदि खेल खेलते थे। आज भी उन बातों को सोच कर मन आनंदित व रोमांचित हो जाता है। उन खेलों को आज भी खेलने का मन स्वाभाविक रूप से करता है।

महावीर ने बताया की मित्रवरो के दो गुट बनाकर गुड्डा गुड़िया की शादी करवाते थे, सबको शादी का निमंत्रण पत्र देते थे, अपने हाथों से गुड्डा गुड़िया के वस्त्र सील कर उनको पहनाकर दूल्हा-दुल्हन बनाते थे ,पेट गुट्टी में दोनों तरफ चार चार लड़कों को खड़ा करके एक की मुट्ठी में कंकर छुपा देते थे किसी एक को उसे ढूंढने के लिए कहते, किलकिल काटिया में पत्थर से चुपचाप किसी एक स्थान पर पंक्तियां खींच कर दूसरी टीम से उसे ढूंढने का लिये कहते, चौपड़ में खाने में बने होते थे । उसे कौड़ियों से खेलते । चियो को जमीन पर घिसकर कर एक तरफ से सफेद कर देते उससे अष्टा चंगा खेलते। ना हमें काम की चिंता होती ना पढ़ाई की। जिससे हमारा मानसिक व शारीरिक विकास मजबूती से होता। यही कारण है आज भी इस उम्र में आज के बच्चों से ज्यादा हष्ट पुष्ट है।आज के जमाने के बच्चे पढ़ाई में व्यस्त रहते हैं उन्हें खेल खेलने की फुर्सत कहां आज वे खेल खेलते भी है तो उनके खेलने का अंदाज पूरी तरह से बदल गया है उनके लिए कंप्यूटर व मोबाइल में खेल खेलना ही प्राथमिकता के खेल ज्यादा है। इसी वजह से उनका शारीरिक विकास नहीं हो पाता है क्योंकि बच्चों को ना तो पौष्टिक आहार मिलता है न ही उछल कूद मेहनतकश वाले खेल, यही कारण है की आज का बच्चा शारीरिक रूप व मानसिक रूप से कमजोर होने की वजह से बीमारियों से जल्दी गिर जाते हैं।

क्या कहना है चिकित्सक का :- वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी फिरोजपुर झिरका के डॉक्टर कृष्ण कुमार ने बताया की पारंपरिक खेलों से व्यक्ति का शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक व बौद्धिक विकास भी होता है। इन खेलों को खेलने से व्यक्ति का सारा शरीर हिलता ढुलता (मूमेंट करता)है। जो व्यक्ति को शारीरिक व मानसिक मजबूती प्रदान करता है आज के आधुनिक खेलों में ऐसी विशेषताएं नहीं है। बच्चों को खेलकूद प्रतियोगिता में बढ़ चढ़कर भाग लेना चाहिए जिससे की शारीरिक विकास के साथ-साथ उनका मानसिक विकास भी हो सके।

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