बसन्त पंचमी पर मंदिरों में हुआ पूजा-अर्चना का आगाज

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-युवाओं ने खेतों में जाकर रबि फसल में दिखाया उत्साह
City24news/सुनील दीक्षित
 कनीना | बसंत पंचमी के त्योंहार पर रविवार को मंदिरों में पूजा-अर्चना का आगाज हुआ। इसके साथ युवाओं ने खेतों में जाकर रबि फसल के संग उत्साह दिखाया। इस बारे में पंडित ताराचंद कौशिक ने बताया कि बसंत पंचमी भारतीय संस्कृति में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार है जिसमे हमारी परम्परा, भौगौलिक परिवर्तन,सामाजिक कार्य तथा आध्यात्मिक पक्ष सभी का सम्मिश्रण है, हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को यह त्यौहार मनाया जाता है। वास्तव में भारतीय गणना के अनुसार वर्ष भर में आने वाली 6 ऋतुओं,बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर में बसंत को ऋतुराज माना गया है। बसंत पंचमी ऋतु परिवर्तन का दिन भी है। इस दिन से प्राकृतिक सौन्दर्य निखारना शुरू हो जाता है, पेड़ों पर नयी पत्तिया और कलियां खिलना शुरू हो जाती हैं। पूरी प्रकृति एक नवीन ऊर्जा से भर उठती है।
बसंत पंचमी को विशेष रूप से ज्ञान की देवी मां सरस्वती जयंती के रूप में मनाया जाता है। विद्यार्थी माता सरस्वती की पूजा उपासना कर उनसे विद्या बुद्धि प्राप्ति की कामना करते हैं। इस दिन पीले वस्त्र पहनने और खिचड़ी बनाने और बांटने की प्रथा भी प्रचलित है तो कहीं आकाश में रंगीन पतंगे उड़ने की परम्परा भी प्रचलित है।
बसंत पंचमी के दिन स्वयं सिद्ध मुहूर्त और अनबूझ विवाह भी माना गया है। कोई भी शुभ मंगल कार्य करने के लिए पंचांग शुद्धि की आवश्यकता नहीं होती। इस दिन भवन नींव पूजन, गृह प्रवेश, वाहन खरीदना, व्यापार आरम्भ करना, सगाई और विवाह आदि मंगल कार्य किये जाते हैं। भक्त लोग, ज्ञान प्राप्ति और सुस्ती, आलस्य एवं अज्ञानता से छुटकारा पाने के लिये, आज के दिन देवी सरस्वती की उपासना करते हैं। विद्यालयों में भी आज के दिन सुबह के समय माता सरस्वती की पूजा की जाती है। सुबह-सवेरे सरस्वती पूजा का समय श्रेष्ठ माना जाता है।  
 प्रातःकाल स्नान करके पीले वस्त्र धारण कर मां सरस्वती की प्रतिमा को सामने कलश स्थापित कर पहले गणेश जी का पंचोपचार विधि से पूजन करने उपरांत सरस्वती का ध्यान करना चाहिए। सरस्वती पूजन के अवसर पर माता सरस्वती को पीले रंग का फल चढ़ाएं। प्रसाद के रूप में मौसमी फलों के अलावा बूंदिया अर्पित करना चाहिए। इस दिन सरस्वती माता को मालपुए एवं खीर का भी भोग लगाया जाता है।

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