वर्धमान ने जनमानस में नवचेतना, ऊर्जा, उमंग ,उत्साह, हर्षोल्लाह का संचार किया: रजत जैन

-तीर्थंकर महावीर ने दिया प्राणिमात्र को जिओ और जीने दो का संदेश:जैन
-भगवान महावीर ने जैनधर्म के अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय), ब्रह्मचर्य पंचशील के सिद्धांत बताएं : रजत जैन
City24news/अनिल मोहनिया
नूंह | अहिंसा के पथदर्शक भगवान महावीर स्वामी ,जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर का जन्म 2623 वर्ष पूर्व कुंडलपुर में हुआ। पूर्व अध्यक्ष व समाजसेवी रजत जैन ने उक्त जानकारी देते हुए बताया की पूर्व में जब सारी सृष्टि में हाहाकार मचा हुआ था । जनमानस अपने आचरण से पथ भ्रष्ट होकर अधार्मिक कार्यों में अधिक संग्लन होने लगी तो ईसा से 599 वर्ष पूर्व चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी को कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ व रानी त्रिशला के घर वर्धमान नामक बालक का जन्म हुआ। रजत जैन ने बताया की तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का 2624 वां जन्म कल्याण दिवस मना रहे हैं। जब सृष्टि घोर अंधकार व निराशा के गहरे सागर में डूबी हुई थी तो इस वर्धमान ने जनमानस में नवचेतना,ऊर्जा, उमंग, उत्साह,हर्षोल्लास का संचार किया । जैन धर्म के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म: के मार्ग पर चलकर, समस्त प्राणिमात्र के आत्मकल्याण के लिए, जिओ ओर जीने दो का अमर संदेश दिया व जनमानस को अहिंसा का मार्ग प्रशस्त कर , जनकल्याण की भावना जनजन के मन मे जागृत कर जनता को घोर निराशा, अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश सागर में डूबकी लगवाकर ज्ञान का प्रकाश चहुँओर फैलाया। तीर्थंकर महावीर ने जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए,(1) अहिंसा,(2) सत्य (3) अपरिग्रह (4) अचौर्य (अस्तेय) (5) ब्रह्मचर्य । उन्होंने छुआछूत, ऊंचनीच, वैरभाव, भेदभाव के अन्याय को समाप्त करने के लिए कहा की व्यक्ति जन्म से नहीं कर्म से श्रेष्ठ होता है ।रजत ने बताया की भगवान महावीर का आत्मधर्म जगत, प्रत्येक आत्मा के लिए एक समान था । दुनिया की सभी आत्मा एक ही है, हमे दूसरों के प्रति भी वही विचार रखे ,जो स्वयं को पसंद हो । 30 वर्ष की आयु में धन वैभव, राजशाही, ठाटबाट छोड़कर तपस्वी जीवन धारण कर वैराग्य ले लिया । बाद में यही बालक वर्धमान,तीर्थंकर महावीर कहलाया ओर जैन धर्म के अंतिम 24वें तीर्थंकर बने।72वर्ष की आयु में मोक्ष को प्राप्त हुए।इसलिए प्राणिमात्र को एक दूसरे के प्रति सद्भावना,व मैत्रीभाव रखना चाहिए।अहिंसा के पथ पर चलकर, जीओ ओर जीने दो के सिद्धांत को अपनाकर, अपना व प्राणिमात्र का आत्मकल्याण करना चाहिए।