सनातन को मजबूत करने के लिए ‘शस्त्र व शास्त्र’ की शिक्षा जरूरी-सूबे सिंह

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-भारतीय संस्कृति को बताया विश्व में महान
-स्वर्ग व नरक दूर के लोक नहीं बल्कि कर्मों से होता है विभाजन
City24News/सुनील दीक्षित

कनीना | ऋषियों की तपोभूमि ‘भारत’ ने मानवता को दसवां दर्शन प्रदान किया है। जिसे मनुष्य के सामूहिक जीवन जीने की पद्धति और अधिक शक्तिशाली हुई है। यह विचार डाॅ सूबे सिंह सत्यदर्शी ने कनीना में आयोजित पत्रकार सम्मेलन के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि अनादिकाल से संचालित सनातन धर्म आज भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है, भले ही इससे विभिन्न धर्मों की शाखाएं प्रस्फुटित हुई हों। उन्होंने कहा कि काफी उतार-चढाव आने के बाद भी भारतीय संस्कृति विश्व में महान रही है। सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उनकी ओर से समाज में ‘शस्त्र व शास्त्र’ की शिक्षा दी जा रही है। उन्होंने कहा कि संस्कृति की जीवन शक्ति धर्म है, धर्म के बिना संस्कृति निर्जीव हो जाती है और धर्म की आत्मा दर्शन है। दर्शन वही है जो वास्तविक सत्य को प्रदर्शित करता है।
डाॅ सुबेसिंह पिछले समय से नारनौल में समाज को जागरूक करने की शिक्षा दे रहे हैं। 70 वर्ष के जीवनकाल में उनकी आध्यात्मिक यात्रा ‘नवीन दर्शन’ पर आकर पूर्ण हो गई है। जो मानव कल्याण और चेतना के उतरोतर विकास को समर्पित है। इस यात्रा में उन्होंने पाया कि ‘सृष्टिकर्ता’ का सुमिरन कर प्रत्येक व्यक्ति जिन्दगी को उत्सव बनाकर हर पल का आनन्द ले। उनका मानना है कि ईश्वर कण-कण में नहीं है, किंतु कण-कण ईश्वर का ही है। मानव का अस्तित्व तीन आयामों में विकसित होता है, शरीर, प्राण और आत्मा। संसार उन शक्तियों द्वारा संचालित होता है जो चतुर्थ आयाम में कार्य करती हैं, जो इंद्रिय बोध से परे हैं। इसी प्रकार आत्मा है, पर प्रत्येक जीव में आत्मा नहीं है। जो प्राणी दुराचारी एवं हिंसा को बढावा देते हैं उनमें ‘दया-आत्मा’ नहीं मानी गई है। मोक्ष में अमरता, स्वतंत्रता, अधिकार और परमानंद ये चारों एक साथ विद्यमान माने गए हैं। पूर्णता प्राप्त होने तक मनुष्य जन्म लेता रहता है। उनके विचार में ‘स्वर्ग’ और ‘नरक’ कोई दूर के लोक नहीं हैं। वे यहीं पृथ्वी पर विद्यमान हैं। जिसका निर्माण कर्मों से होता है। जो सम्पूर्ण सत्य जानने के बाद किए जाते हैं।
आकाश के नीचे और पृथ्वी के ऊपर, किसी भी कर्म के घटित होने के लिए चार तत्व कारण, समय, साधन और सिद्धांत पहले से निश्चित होते हैं। बिना कारण कोई कार्य नहीं किया जा सकता। व्यक्ति को पूर्णता प्राप्त होने के बाद ईश्वर द्वारा दिव्य शरीर प्रदान किया जाता है। उसी दिव्य शरीर के माध्यम से ग्रहों के बीच तात्कालिक यात्रा संभव होती है। उन्होंने कहा कि हम पृथ्वी पर केवल इंद्रिय-भोग, मरने-मारने, अत्याचार करने, स्वर्ग, नरक, मोक्ष तथा लोक-परलोक के लिए नहीं बल्कि पृथ्वी पर पूर्णता की प्राप्ति के लिए आए हैं। इस मौके पर कमलेश वशिष्ठ, डाॅ राजेश त्रिपाठी, मुकेश शर्मा उपस्थित थे।
कनीना-सनातन धर्म को सुदृढ बनाने के लिए जानकारी देते डाॅ सुबेसिंह सत्यदर्शी व अन्य।

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