तीर्थंकर आदिनाथ ने सृष्टि को ब्रह्मलिपि,अंक विद्या ,असि, मसी,व 72 कलाओ का दिया ज्ञान: रजत

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भगवान आदिनाथ का एक सूत्र कृषि करो या ऋषि बनो: रजत जैन
City24news/अनिल मोहनिया
नूंह | तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर है जिन्हे आदिनाथ भी कहा जाता है। जिनका जन्म मिति चैत्र कृष्ण नोवीं को अयोध्या के राजा नाभिराय व माता मरु देवी के घर हुआ। सर्वजातीय सेवा समिति के उपाध्यक्ष व समाजसेवी रजत जैन ने उक्त जानकारी देते हुए बताया की भगवान आदिनाथ की आयु 84 लाख पूर्व,व ऊँचाई लगभग 500 धनुष ( लगभग2000 मीटर)की थी।उन्होंने लगभग एक लाख वर्ष तक तप किया।रजत ने बताया की लगभग एक वर्ष तक तीर्थंकर आदिनाथ निराहार रहे।अक्षय तृतीया के दिन हस्तिनापुर में राजा श्रेयांस ने उन्हें गन्ने का रस प्रदान किया ओर उन्होंने अपना उपवास खोला।जैन ने बताया की तीर्थंकर आदिनाथ ने ब्रह्मलिपि (भाषा) असि (सैनिक कार्य )मसी (लेखन कार्य) विद्या शिल्प (विविध वस्तुओं का निर्माण)ओर वाणिज्य( व्यापार)के लिए प्ररित किया।72 कलाओ का ज्ञान भी सृष्टि को दिया।इससे पूर्व कल्पवृक्षो से जरूरतें पूर्ण हो जाती थीं।उन्होंने अहिंसा का ज्ञान भी सृष्टि को दिया। रजत ने बताया की संपूर्ण आर्य खण्ड में लगभग 99हजार वर्ष तक धर्म विहार किया।जब उनकी आयु के 14 दिन शेष रह गये तो कैलाश पर्वत जाकर समाधि में लीन हो गये।शुभतिथि माध कृष्ण चतुर्दशी के दिन निर्वाण अर्थात मोक्षपद प्राप्त किया।उन्होंने सृष्टि को आत्मा का ज्ञान दिया।उनका एक सूत्र कृषि करो या ऋषि बनो।

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