अपनी ही बिसात पर मात खा रहा है विपक्ष

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City24news/संजय शर्मा
भारत का लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यह केवल संख्याओं और मतों का खेल नहीं है, बल्कि एक ऐसी जीवंत प्रक्रिया है जिसमें सत्ता और विपक्ष दोनों की समान रूप से महत्वपूर्ण भूमिका होती है। सत्ता पक्ष जहां शासन संचालन और नीतियों को लागू करने के लिए जिम्मेदार होता है, वहीं विपक्ष लोकतंत्र का प्रहरी बनकर उसके हर कदम पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है, असंतोष को स्वर देता है और जनभावनाओं को दिशा देता है। लेकिन वर्तमान विपक्ष इन भूमिकाओं में नकारा साबित हो रहा है, ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्ष अपनी ही बिसात पर मात खा रहा है, जिस तरह से विपक्ष और विशेषतः कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने वोट चोरी, ईवीएम में गड़बड़ी एवं मतदाता सूचियों के विशेष गहन परीक्षण पर बेतूके एवं आधारहीन आरोप लगाये हैं, उससे संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग की गरिमा एवं प्रतिष्ठा तो आहत हुई ही है, लेकिन विपक्ष की भूमिका भी कठघरे में दिख रही है। यह अच्छा हुआ कि मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कांफ्रेंस कर वोट चोरी सहित ऐसे ही बेहूदा, आधारहीन एवं गुमराह करने वाले राहुल गांधी के आरोपों का न केवल बिन्दुबार जबाव दिया, बल्कि उन्हें बेनकाब करते हुए यह भी कहा कि वे या तो अपने निराधार आरोपों के सन्दर्भ में शपथ पत्र दें या सात दिनों के भीतर देश से माफी मांगें। निश्चित ही राहुल गांधी को ऐसी चेतावनी देना आवश्यक हो गया था, क्योंकि वे अपने संकीर्ण एवं स्वार्थी राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिये लोकतंत्र की संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा को धुंधलाने की सारी हदें पार चुके हैं।

हाल के दिनों में जिस तरह चुनाव आयोग, मतदाता सूची और वोट चोरी के आरोपों को लेकर बहस छिड़ी है, उसने इस प्रश्न को फिर से गहराई से सोचने को बाध्य किया है कि क्या लोकतंत्र में विपक्ष बेबुनियाद आरोप लगाते हुए अपनी भूमिका को प्रश्नों के घेरे में कब तक डालता रहेगा? विपक्ष बिना ठोस प्रमाण के बड़े आरोप लगाकर लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़े कर देता है। क्या जनहित के नाम पर जनता के व्यापक हित से जुड़े सुधारों का विरोध करना विपक्ष का शगल बन गया है? पिछले एक दशक से विपक्ष लोकतंत्र को सशक्त बनाने की अपनी भूमिका की बजाय उसे कमजोर एवं जर्जर करने में जुटा है। उसने सत्ता-पक्ष को घेरने के लिये जरूरी मुद्दों को सकारात्मक तरीकों से उठाने की बजाय विध्वंसात्मक तरीकों से विकास के जनहितकारी मुद्दों को भी विवाद का मुद्दा बनाते हुए सारी हदें पार कर पार दी है। आधार को बैंक अकाउंट से जोड़ने का मामला हो या अनुच्छेद 370 को खत्म करना हो। सीएए-एनआरसी का मामला हो या हाल में चुनाव आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन परीक्षण अभियान हो। विपक्ष मोदी सरकार के इन विकासमूलक सुधारों को जनहित के खिलाफ बताते हुए मुखर विरोध कर रहा हैं, जो लोकतंत्र को धुंधलाने की एक बड़ी साजिश प्रतीत होती है। निश्चित ही विपक्ष की इस खींचतान में सबसे बड़ी क्षति जनता की आस्था की होती है। जब चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं की निष्पक्षता संदिग्ध बनाई जाती है, तो लोकतंत्र की नींव हिलने लगती है। लोकतंत्र में हार-जीत से भी बड़ा मुद्दा चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वसनीयता होता है।

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