महाशिवरात्री पर्व पर बागोत में लगा मुख्य मेला

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शिवालयों में शिवलिंग पर जलाभिषेक करने वालों की रही भीड
सुरक्षा को लेकर पुलिस कर्मचारियों ने संभाला मोर्चा

City24news/सुनील दीक्षित
कनीना । महाशिवरात्रि पर्व के उपलक्ष्य में कनीना-दादरी मार्ग स्थित गांव बागोत में बुधवार को क्षेत्र का मुख्य मेला आयोजित किया गया। जिसमें दूर-दराज से श्रधालुओं ने बम-बम के जयकारों के बीच प्राकृतिक स्वयंभू शिवलिंग पर जलाभिषेक किया। जलाभिषेक करने वालों की सुबह से ही भीड जुटना शुरू हो गई थी। जो दिन बढने के साथ-साथ बढती गई। नतीजतन करीब तीन-चार घंटे कतार में रहने के बाद श्रधालुओं द्वारा जलाभिषेक किया गया। श्रधालुओं की सुरक्षा के लिए गर्भगृह में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे वहीं पुलिस कर्मचारी नजर बनाए हुए थे। मेले में अभी तक किसी प्रकार की अप्रिय घटना के समाचार नहीं है। एंबुलेंस,फायर ब्रिगेड,गोताखोर सहित स्वास्थ विभाग की सेवाओं को अलर्ट मोड पर रखा गया था।
शिव मंदिर के मठाधीश मंहत रोशनपुरी ने बताया कि इस मेले में दूर-दराज से हजारोें शिवभक्तों ने हिस्सा लिया। हर की पौडी हरिद्वार से कांवड लेकर आए शिवभक्तों ने गंगाजल अर्पित किया। बागोत के अलावा महाशिवरात्री के मौके पर सत्यनारायण मंदिर गुढा, शिव मंदिर उन्हाणी, कनीना, धनौंदा सहित विभिन्न मंदिरों में शिवभक्तों द्वारा जलाभिषेक किया गया। इस मौके पर डाॅ संजय कुमार, बिमला देवी, बबली, भारती, रजनी देवी, रजत, मयंक, दलीप सिंह, साक्षी, नम्बरदार सुनील कुमार, राहुल शर्मा, राजीव यादव सहित अनेकों शिवभक्त उपस्थित थे।
ऋषि पिप्लाद की तपोभूमि
नागेंद्र शास्त्री ने एक किवंदती के माध्यम से बताया कि ऋषि पिप्लाद ने यहां पर तपस्या की थी। राजा दिलीप को कोई संतान नहीं थी। जिससे वे दुखी रहते थे, ओर दुख के निवारण के लिए अपने कुलगुरू वशिष्ठ के पास गए ओर अपना दुखद वृतांत सुनाया। गुरू वशिष्ठ ने पिप्लाद ऋिषि के आश्रम में नंदिनी नामक गाय व कपिला बछडी को उपवास रखकर जंगल में चराने,भोजन कराने को कहा। राजा दिलीप प्रतिदिन उपवास रखकर उन्हें चराने जंगल में जाते। एक दिन शंकर भगवान ने राजा की परीक्षा लेने के मकसद से बाघ का स्वरूप धारण कर बछडी पर धावा बोल दिया। राजा की नजर जब बाघ पर पड़ी तो हाथ जोडकर प्रार्थना करते हुए कहा कि वे गाय-बछडी को छोडकर उन्हें अपना भक्ष्य बना लें। उनका मानना था के बछडी को खाने देते तो उन पर गाय का श्राप लगता ओर गाय को खायेगा तो उनकी तपस्या पूरी नहीं हो सकेगी। ऐसा कहकर उन्हें अपने आप को बाघ के सामने पटक दिया।
’बाघ’ से बना ’बाघेश्वारधाम’
कुछ समय बाद कोई हरकत नहीं होने पर उन्होंने सिर उठाकर देखा तो उनके सामने ’बाघ’ के स्थान पर भोले शंकर खड़े थे। इस किवंदती के बाद इस स्थान का नाम ’बाघेश्वर धाम’ पड़ा। यहां पर प्रतिवर्ष फाल्गुन माह की त्रयोदशी को महाशिवरात्री तथा सावन माह की त्रयोदशी को शिवरात्री के अवसर पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। जिला प्रशासन की ओर से मेले में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं। आपात स्वास्थ सेवाओं को लेकर शिवमंदिर के साथ में स्वास्थ विभाग की ओर से अस्पताल संचालित कर व चिकित्सकों की ड्यूटी लगाई जाती है। मेेले के दौरान अस्थाई पुलिस चैकी खोली जाती है। किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए पुलिस कर्मचारियों को तैनात किया जाता है। जिला उपायुक्त डाॅ विवेक भारती ने बताया कि कांवड मेले को लेकर सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए गए हैं।
प्राकृतिक शिवलिंग की महिमा
यहां पर प्राकृतिक स्व्यंभू शिवलिंग है। जिनकी महिमा निराली है। उस दौरान अनजाने में गांव की महिलाएं खेतों में जाते समय शिवलिंग को पत्थर समझकर घास खुदाई करने वाले लोहे के उपकरण,खुर्पे को घिसकर धार देती थी। इस शिवलिंग को झज्जर के नवाब फकरुद्दीन ने अपनी सेना को उखाडने का आदेश दिया था। लेकिन सेना इसे उखाडने में असफल रही। खुदाई के दौरान वहां पर काले सर्प व जहरीले जानवर निकले। जिससे सैनिक कार्य छोडकर भाग खडे हुये थे। राजा ने यहां पर पशु मेला आयोजित करने का हुक्म दिया। जब पशु मेला लगा था तो भयकंर औलावृष्ठि हुई ओर अनेकों पशु बे-मौत मारे गए। उसके बाद राजा ने गंगा जल लेकर जलाभिषेक करते हुए पुनरू मेले की शुरूआत की। उसके बाद से यहां पर कांवड़ मेला आयोजित किया जाने लगा। शिवभक्त प्रतिवर्ष सावन माह में आयोजित होने वाले मेले में शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं।
केतकी के फूल को मिला शाप
एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचियता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा करत रहे वहीं भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ बता रहे थे। तभी वहां पर एक शिवलिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं में सहमति से फैसला हुआ कि जो भी इस शिवलिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग का छोर ढूंढने लगे। छोर न मिलने के कारण विष्णु जी लौट आए लेकिन ब्रह्माजी भी सफल नहीं हुए। परंतु उन्होंने विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पंहुच गए हैं। उन्होंने केतकी के फूल को इस बारे में साक्षी बताया। ब्रह्माजी के असत्य कहने पर वहां स्वयं शिव भगवान प्रकट हुए ओर उन्होंने ब्रह्माजी का एक सिर काट दिया ओर केतकी के फूल को पूजा से वंचित रहने का श्राप दिया। इस घटना के बाद पूजा में केतकी के फूलों का इस्तेमाल नहीं होता।

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