डिजिटल क्रांति और कार्य की क्षमता

0

City24News/नरवीर यादव
फरीदाबाद
| एक समय था जब शीर्ष या पहली दूसरी कतार के अधिकारियों की जिम्मेदारी अधिक होती थी और उनके लिए समय सीमा नहीं होती थी पर अब तो वर्चुअल सुविधाओं के चलते दिन हो या रात रविवार हो या शनिवार कभी भी कहीं भी एक मैसेज मात्र से आपको एक्टिव होकर कैमरे के सामने आना पड़ता है। दरअसल कोरोना काल ने यह परिवर्तन दिया है। भारत सहित दुनिया के देशों में अभी भी कार्मिकों के लिए कार्यदिवस पांच या छह दिवस के हैं तो कार्यसमय भी मानने को तो सुबह 9.30 से सायं बजे 6 या दूसरे शब्दों में औसतन लगभग सात घंटे का है पर डिजिटल क्रान्ति ने सबकुछ बदल कर रख दिया है। देखा जाए तो अब असीमित कार्य दिवस का दौर आ गया है। वास्तविकता तो यह है कि डिजिटल डिवाइसों के उपयोग के बाद से कमोबेस कार्यदिवस 24 गुणा 7 हो गये हैं तो कार्य समय भी तय समय सीमा के बंधन से मुक्त हो गया है। माइक्रोसॉफ्ट द्वारा कराये गये वर्क ट्रेंड इंडेक्स स्पेशल रिपोर्ट 2025 में यह खुलासा हो गया है कि अब कार्मिक चाहे वह किसी भी स्तर का हो के लिए चाहे निजी क्षेत्र में हो या सरकारी क्षेत्र में तय समय सीमा बीते जमाने की बात हो गई है। ई-मेल, चैट, वर्चुअल या हाईब्रिड मीटिंग्स, सोशल मीडिया संदेश आदि को समग्र रुप से देखने से अब कार्मिक 24 घंटे का कार्मिक हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार सुबह छह बजे से ही व्यक्ति अपनी ई-मेल टटोलने लगता है तो सर्वाधिक प्रोडक्टिविटि का समय 11 बजे के लगभग में काम के स्थान पर ई-मेल का प्रेशर 54 प्रतिशत तक बढ़ जाता है सायं तीन बजे बाद ई-मेल, चैट या अन्य संदेशों की आवक कम होने लगती है। वैश्विक औसत की बात की जाये तो 100 से अधिक ई-मेल से दो चार होना पड़ता है कार्मिक को। हर दो मिनट में मेल, चैट या अन्य संदेश कार्मिक के कार्य में बाधा उत्पन्न करता है। इसका कारण यह होता है कि उसे काल, ई-मेल या संदेश चैक करने या उससे दो चार होना ही पड़ता है। हालात यह है कि रात को भी ई-मेल या संदेश का सिलसिला जारी रहने से अब कार्यालयीय वातावरण से दूर परिवार के व्यैयक्तिक क्षण तो कल्पना की बात होती जा रही है।
डिजिटल युग को देखते हुए अब कार्मिकों के कार्यदिवस को नए सिरे से रिडिजाइन करने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है। इसका प्रमुख कारण कार्मिकों शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ना और सामाजिकता और वैयक्तितता पर विपरीत प्रभाव पडना प्रमुख हो जाता है। समय बेसमय मोबाइल या इसी तरह की डिवाइस पर अंगुलियां चलाने से प्रभावित हो रहे हैं। काम का दबाव, सूचनाओं के संग्रहण में ही समय जाया होने, वर्चुअल मीटिंग्स में सार्वजनिक रुप से जलालत की संभावना, आंखों में सूखापन और सामाजिक व व्यक्तिगत संबंध बाधित होना आम होता जा रहा है। इसका साइड इफेक्ट संत्रास, कुंठा, तनाव, डिप्रेशन आदि के रुप में सामने आने लगा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *