प्रयागराज महाकुंभ से लौटकर सुनील दीक्षित की रिपोर्ट

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 13 जनवरी से शुरू हुआ महाकुंभ बढ रहा समापन की ओर
महाशिवरात्री पर 26 फरवरी को को होगा अंतिम शाही स्नान

मेला प्रशासन ने 13 अखाडों के साधुओं को जमींन की थी अलाट
प्रयागराज महाकुंभ से लौटकर सुनील दीक्षित की रिपोर्ट

City24news/सुनील दीक्षित
कनीना । प्रयागराज में 12 वर्ष बाद बीती 13 जनवरी 2025 से आयोजित हुआ महाकुंभ मेला अब समापन की ओर बढ रहा है। मेले में यूपी की योगी आदित्यनाथ की सरकार द्वारा सुरक्षा तथा सफाई की अच्छी व्यवस्था की गई थी। जिसके चलते श्रधालुओं को पेयजल, शौचालय सहित सर्दी से बचाव के लिए कहीं भटकने की जरूरत नहीं पडी। जगह-जगह लेडीज एवं जैंट्स के लिए अलग-अलग अस्थाई शौचालय की व्यवस्था की गई थी जिनके नजदीक ही नल का जल उपलब्ध कराया गया था। इसके साथ ही सफाई के लिए नगरनिगम के कर्मचारी व अधिकारी मुस्तैद थे। हरेक प्वाईंट पर सूखे व गीले कचरे के लिए डस्टबिन लगाए गए थे। अधिकारियों द्वारा मेले की लगातार मोनिटरिंग की जा रही थी। एक दिन में 50 लाख से अधिक श्रधालुओं द्वारा संगम तट सहित विभिन्न घाटों पर डुबकि लगाई गई। मेले में मोनी अमावस्या के अवसर पर भगदड मचने के बावजूद भी श्रधालुओं का दिनरात पंहुचना जारी रहा। हरियाणा के महेंद्रगढ जिले से प्रयागराग महाकुंभ पंहुची मीडिया कर्मियों विजय कुमार शर्मा, सुनील कुमार दीक्षित, दलीप सिंह, एडवोकेट जितेंद्र शर्मा, डाॅ राजेश त्रिपाठी, विक्रम सिंह सारथी व रोशन लाल शर्मा की सात सद्सीय टीम ने मेला क्षे़त्र, संगम स्थल, घाट पर स्नान व्यवस्था, अखाडों में रात्री ठहराव के लिए किए गए बंदोबस्त व वीआईपी मूवमेंट का बारीकी से अवलोकन किया।
संगम स्थल पर भीड बढने के चलते श्रधालुओं को स्नान कर घाट खाली करने के लिए निर्देशित किया जा रहा था वहीं सुरक्षा को लेकर पुलिस व सेना के जवान लगातार नजर बनाए हुए थे। एनडीआरएफ की टीमें नौका पर सवार होकर डुबकि लगाने वाले श्रधालुओं पर ध्यान रख रही थी। अपर मेलाधिकारी विवेक चतुर्वेदी ने बताया कि महाकुंभ मेला 2025 की विधिवत शुरुआत 13 जनवरी से हुई थी। उसके बाद समय-समय पर आयोजित शाही स्नान के समय भीड अधिक रही। अखाडों के साधुओं ने पेशवाई के माध्यम से स्नान किया। देश तथा विभिन्न प्रदेशों के वीआईपी कैटेगरी के लोगों ने भी स्नान कर पूजा-अर्चना की। आमजन की ओर से भी श्रधालु गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर डुबकि लगाते दिखई दिए। वीआईपी मूवमेंट के लिए घाट पर अलग से व्यवस्था की गई थी। भीड बढने पर ऐसे पुल को बंद कर दिया जाता था तथा कम होने पर खोल दिया जाता था।
इस महाकुंभ को हिंदू ओर सनातन धर्म का सबसे बड़ा उत्सव माना गया है। सरकारी आंकडे के मुताबिक अब तक करीब 50 करोड लोग कुंभ में डुबकि लगा चुके हैं। आधुनिक इलाहाबाद में ’प्रयाग’ हिंदुओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थल माना जाता है। लेकिन संगम में संगम का महत्व सबसे पवित्र है जहां पवित्र गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती मिलकर एक हो जाती हैं।
अमृत की 4 बूंदो से प्रसिद्व हुए 4 तीर्थ
बताया जाता है कि भगवान विष्णु अमृत का कुंभ ’घड़ा’ लेकर जा रहे थे, तभी हाथापाई हुई और चार बूंदें छलक गईं। जो प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन के चार तीर्थों पर जा गिरी। कालांतर में चारों तीर्थ स्थान के रूप में प्रसिद्व हुए। तीर्थ वह स्थान है जहाँ भक्त मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। इन स्थानों पर यह आयोजन प्रत्येक तीन साल में कुंभ मेले के रूप में आयोजित होता है। जो प्रत्येक तीर्थ पर बारी-बारी से आयोजित किया जाता है। प्रयागराज के संगम को तीर्थराज, ’तीर्थों का राजा’ के रूप में जाना जाता है और यहाँ हर बारह साल में एक बार कुंभ आयोजित किया जाता है, जो सबसे बड़ा और सबसे पवित्र है। एक महीने से अधिक समय तक चलने वाले इस महाकुंभ में एक विशाल तंबूनुमा बस्ती का निर्माण किया जाता है, जिसमें झोपड़ियाँ, चबूतरे, नागरिक सुविधाएँ, प्रशासनिक और सुरक्षा उपाय शामिल होते हैं। इसे सरकार, स्थानीय अधिकारियों और पुलिस द्वारा शानदार तरीके से आयोजित किया जाता है। यह मेला विशेष रूप से धार्मिक तपस्वियों-साधुओं और महंतों -की असाधारण उपस्थिति के लिए प्रसिद्ध है, जो जंगलों, पहाड़ों और गुफाओं में दूर-दराज के ठिकानों से आकर्षित होकर आते हैं। एक बार जब ज्योतिषी शुभ स्नान,समय या कुंभयोग निर्धारित कर लेते हैं, जिसमें सबसे पहले नागा साधुओं की सेना पानी में उतरती है, जो अपने नग्न शरीर को राख से ढकते हैं लंबी जटाओं में बाल रखते हैं। साधु, अपने आप को आस्था के संरक्षक के रूप में देखते हैं, एक आक्रमणकारी सेना की तरह धूमधाम और बहादुरी के साथ निर्धारित समय पर संगम पर पहुँचते हैं।  
संगम तट
इस स्थान पर गंगा का भूरा पानी यमुना के हरे पानी से मिलता है, साथ ही पौराणिक सरस्वती भी मिलती है, जो अदृश्य है लेकिन माना जाता है कि वह भूमिगत बहती है। यह सिविल लाइंस से लगभग 7 किमी दूर स्थित है, जहाँ से अकबर किले की पूर्वी प्राचीर दिखाई देती है। पवित्र संगम की ओर विस्तृत बाढ़ के मैदान और कीचड़ भरे तट फैले हुए हैं। नदी के बीच में पुजारी पूजा करने के लिए छोटे-छोटे चबूतरों पर बैठते हैं और उथले पानी में श्रद्धालुओं की पूजा-अर्चना में मदद करते हैं। संगम के पानी में डुबकी लगाना हिंदू धर्मावलंबियों के लिए सबसे पवित्र तीर्थ माना जाता है। महाकुंभ के दौरान संगम वास्तव में जीवंत हो उठता है।
महाकुंभ में ठहरने के लिए रहे व्यापक प्रबंध
प्रयागराज में महाकुम्भ 2025 के लिए मेला क्षेत्र में 13 अखाड़ों की बसावट की गई थी। जिन्हें सेक्टर व प्लाट नम्बर तक आबंटित किए गए थे। इनमें आने वाले श्रधालुओं के रात्री विश्राम, भोजन व बुनियादी सुविधाओं की व्यवस्था की गई थी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर कुम्भ मेला प्रशासन ने अखाड़ों के संतों की सहमति से मेला क्षेत्र में छावनी बसाने के लिए सभी 13 अखाड़ों सहित अन्य को भूमि आवंटित की गई थी। करीब 40 दिन चलने के बाद 26 फरवरी, 2025 को महाशिवरात्रि के शाही स्नान के साथ मेला संपन्न होगा।

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