बूचड़खाने खराब कर रहे मेवात का पर्यावरण 

0

अरावली को बचाने के लिए पीपल फॉर अरावली ने सौंपी रिपोर्ट 
मेवात आरटीआई मंच ने राज्यपाल व मुख्यमंत्री को भेजा पत्र 
सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद हो रहा अवैध खनन
City24news/अनिल मोहनिया
नूंह । मेवात क्षेत्र के बूचड़खानों को लेकर एक रिपोर्ट प्रदेश के राज्यपाल, मुख्यमंत्री समेत केंद्र सरकार के मंत्रियों को सामाजिक संगठन मेवात आरटीआई मंच ने भेजी है। जिसमें बूचड़खानों से पर्यावरण और कृषि योग्य भूमि को खतरा बताया गया है। वहीं ‘पीपल फॉर अरावली’ समूह की रिपोर्ट का समर्थन जलपुरुष डॉ. राजेंद्र सिंह, विशेषज्ञ डॉ. देविंदर शर्मा, कई राज्यों के सेवानिवृत्त आईएफएस और आईएएस समेत विभिन्न संगठनों ने किया है। जबकि अरावली क्षेत्र में खनन पर 2009 से सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध लगाया हुआ है लेकिन गुरुग्राम और नूंह जिलों में रेत व पत्थर का अवैध खनन होता है। हाल ही में प्रदेश के नूंह, फरीदाबाद, गुरुग्राम, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, चरखी दादरी और भिवानी जिले में अरावली पर्वत की जमीनी रिपोर्ट हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी व वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव को सौंपीं है। आज 5 जून का दिन दुनिया भर में विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है।

मेवात आरटीआई मंच के संरक्षक सुबोध कुमार जैन ने कहा कि मेवात क्षेत्र में धड़ल्ले से लगाए जा रहे बूचड़खानों के कारण क्षेत्र की आबोहवा खराब होती जा रही है। अभी तो कुछ बूचड़खाने ही शुरू हुए हैं। जिस दिन सभी बूचड़खाने बनकर तैयार हो जाएंगे तो, लोगों को सांस लेना मुश्किल होगा। बूचड़खानों से निकलने वाले दूषित पानी से जमीनें बर्बाद हो रही है।

बिरादरी नूंह के अध्यक्ष हाजी इब्राहिम खान का कहना है कि इसमें कोई दोराय नहीं है कि बूचड़खानों से पर्यावरण में दुर्गंध फैल रही है मक्खियों की तादाद बढ़ गई है। ग्रामीण मुंह पर कपड़ा लगाकर निकलते हैं। उन्होंने कहा कि, 

‘पीपल फॉर अरावली’ की रिपोर्ट में बताया कि

अरावली पहाड़ियां जिस गति से नष्ट हो रही हैं उससे इलाका रेगिस्तान बनने जा रहा है। अरावली एकमात्र ढाल हैं जो थार रेगिस्तान को हरियाणा में फैलने से रोकतीं हैं। यह अपनी प्राकृतिक दरारों के साथ, पहाड़ियां हर साल प्रति हेक्टेयर 2 मिलियन लीटर पानी जमीन में डालने की क्षमता रखती हैं। जलवायु कार्य योजना के अनुसार हरियाणा के 22 जिलों में से 95 फीसदी में ‘उच्च और मध्यम जलवायु जोखिम स्कोर’ है जिसमें अरावली का नूंह जिला सबसे अधिक असुरक्षित है। 

विश्वविख्यात जल संरक्षण विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र सिंह ने कहा, हमारे नेताओं को एक ऐसा कानून बनाने पर विचार करना होगा जो ‘उत्तर पश्चिमी भारत की जीवन रेखा अरावली को नष्ट करना न केवल एक अपराध हो बल्कि इसकी कठोर सजा भी हो। यह कानून अरावली की रक्षा करने में विफल रहने वाले सरकारी अधिकारियों पर भी लागू होना चाहिए। उन्होंने बताया कि अरावली क्षेत्र में अवैध खनन, वनों की कटाई, वृक्षों की कटाई, अवैध अतिक्रमण, वन्यजीवों का शिकार, कचरा डंपिंग और जलाना तथा अन्य गैर-वनीय गतिविधियां न हो। नूंह अरावली में अवैध खनन के 30 से अधिक स्थानों की जानकारी दी गई है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *