बढ़ता प्रदुषण- घटता स्वास्थ्य और हमारा कर्तव्य

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City24news/ओम यादव
फरीदाबाद
| अभी अभी दीपावली का त्यौहार गया है और वायु प्रदूषण मनुष्य के लिए विकट होता जा रहा है। सर्वप्रथम हम दीपावली पर ही चर्चा करते हैं। सभी को पता है कि दीपावली दीयों का त्यौहार है। इसके पीछे और भी अनेक मत हैं जिनमें अमावस्या की रात्रि के कारण प्रकाश करने का भी पक्ष रखा जाता है। लेकिन सर्वसाधारण रूप से दीपावली मनाने के पीछे एक कारण श्री रामचंद्र भगवान का अयोध्या लौटना माना जाता है। यदि हम भगवान श्री रामचंद्र जी के आदर्शों की चर्चा करें तो उनका जीवन सदा जनकल्याण को समर्पित रहा है। अपने पिता के वचन की पालना के लिए सहर्ष 14 वर्ष का बनवास स्वीकार किया। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र ने सदा नैतिकता को सर्वोपरि माना और जीवन में धारण किया। ऐसे में भगवान श्री रामचंद्र जी के आदर्शों का हमें सम्मान करना चाहिए। उनके आदर्शो को अपने जीवन में धारण करना चाहिए। दीपावली की रात ही नहीं उससे कुछ दिन पूर्व और अब तक भी लोग पटाखे आदि जलाकर वायु प्रदूषित कर रहे हैं। इसके साथ ही ध्वनि प्रदूषण भी सामान्य जन के लिए असुविधा का कारण बना हुआ है। ये त्यौहार ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदुषण प्रदुषण के लिए नहीं बना है। यह बात लोगों की समझ में नहीं आ रही है। यही मुख्य समस्या है। मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम चंद्र जी के जीवन का तो सार ही मर्यादा से पूर्ण और जीवों के कल्याण के लिए था न किसी को पीड़ा पहुँचाने का। कैसे मान लें कि पटाखे फोड़कर लोगों को प्रदूषित वातावरण देकर हम उनके दिखाए मार्ग पर चल रहे हैं। दूसरी और यदि हम दूसरे दृष्टिकोण से देखते हैं तो जो धन हम पटाखों में व्यय करते हैं, केवल उतने ही धन को परोपकार के लिए व्यय कर दें तो जो भीतर का आनद और सुख शांति मिलेगी वह कहने सुनने से परे की बात है।

एक अन्य दृष्टिकोण से वाहनों द्वारा छोड़े गए धुंए ने भी मनुष्य के जीवन को दुष्कर कर दिया है। आज एक व्यक्ति के घर में कई कई वाहन है। जितने व्यक्ति घर में हैं उतने ही वाहन उनके पास हैं। वाहनों का धुआं, कारखानों का धुआं, निर्माणाधीन भवन और सड़कों का प्रदुषण, कूड़े करकट के ढेर में प्रतिदिन आग का लगाना, खेतों में आग यह एक सामान्य बात होकर रह गई है। प्राय: लोग इन बातों को बहुत ही हल्के में लेते हैं और यह नहीं सोचते कि ऐसे छोटे छोटे धुंए के कारण वायुमंडल और वातावरण प्रदूषित हो रहा है। अभी दिल्ली में प्रदुषण के कारण आसपास के कई किलोमीटर के क्षेत्र में लोगों में श्वांस के रोग, फेफड़ों के रोग और कैंसर जैसे भयानक रोग सामने आ रहे हैं।

इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए क्या करना होगा? यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है। यदि देखा जाए तो ऐसे बहुत अधिक उल्लेख सामने आ रहे हैं जिनमें सरकारी विभागों में भी कूड़े करकट के ढेर में आग लगाने से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। प्रत्येक व्यक्ति केवल अधिकारों की ही चर्चा करता है। उसको प्रकृति ने अमूल्य वरदान के रूप में जल वायु आकाश अग्नि और पृथ्वी दिए हैं उनका नित्य शोषण कर रहा है। यदि व्यक्ति केवल प्राकृत से छेड़छाड़ ही न करे तो यह भी एक बहुत बड़ी सेवा होगी। आज मानव प्रकृति द्वारा दिए गए वरदान का धन्यवाद नहीं करता अपितु उन्हें नष्ट करने में लगा हुआ है। व्यक्ति को अपने कर्तव्यों को भी पालन करना होगा।      
मानव केवल और केवल लेना न सीखे प्रकृति को कुछ देना भी सीखे। केवल छोटे छोटे कार्य करके हम प्रकृति की सेवा कर सकते हैं। उदाहरण के लिए अपने और बच्चों के जन्मदिन पर अथवा किसी अन्य सुअवसर पर पौधारोपण कीजिए। उन पौधों की देखभाल कीजिये। परिवार के आवश्यकतानुसार ही ईंधन चलित वाहन रखें। एक वाहन में केवल एक व्यक्ति यात्रा न करे बल्कि ऐसे समय में सार्वजनिक वाहन का प्रयोग करे। ईंधन चलित वाहन के स्थान पर साइकिल का प्रयोग करना सर्वश्रेष्ठ सिद्ध हो सकता है। साइकिल की सवारी सबसे उत्तम है क्योंकि यह प्रदूषण रहित होने के साथ साथ स्वास्थ्य और विशेष रूप से घुटनों के लिए बहुत अधिक लाभदायक सिद्ध हो रही है। वाहनों में स्वच्छ ईंधन का प्रयोग और उनका उचित रखरखाव कीजिए। कूड़े करकट में आग न लगाएं अपितु उनका निपटारा कीजिए। निर्माण सामग्री को ढककर रखिए। औद्योगिक इकाइयों को चाहिए कि वे प्रदुषण रहित ईंधन व्यवस्था करें ताकि जीवन सुरक्षित रहे।   

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