‘क्रैक: जीतेगा तो जिएगा’ की कहानी का रिव्यू

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City24news@भावना कौशिश

मुंबई | एक्टर विद्युत जामवाल ने एक्शन हीरो के रूप में इंडस्ट्री में अपना एक मुकाम बनाया है। हर फिल्म के साथ वे अपनी उसी इमेज को और मजबूत करने की कोशिश करते हुए दिखते हैं। ऐसा ही कुछ वह अपनी नई फिल्म ‘क्रैक: जीतेगा तो जिएगा’ में भी कर रहे हैं। दिक्कत यह है कि सारा जोर एक्शन पर देने के चक्कर में वो कहानी पर ध्यान देना भूल गए हैं। फिल्म में यूं तो नायक का कोड नेम क्रैक (खिसका हुआ) है, लेकिन असल में इस कहानी में ही काफी सारे ‘क्रैक’ (झोल) हैं।

‘क्रैक: जीतेगा तो जिएगा’ की कहानी

कहानी मुंबई में साधारण परिवार में जन्मे सिद्धार्थ दीक्षित उर्फ सिद्धू (विद्युत जामवाल) की है, जो पहले ही सीन में ट्रेन से बाहर लटककर, उसके ऊपर चढ़कर डेयरडेविल स्टंट करते हुए एंट्री मारता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि विद्युत के ‘जम्मवालियंस’ (फैन क्लब), जिन्हें यह फिल्म समर्पित की गई है, इसकी नकल नहीं करेंगे। सिद्धू के पिता उसकी इस स्टंटबाजी के परेशान हैं, क्योंकि इसी के कारण वह अपने बड़े बेटे निहाल (अंकित मोहन) को खो चुके हैं। लेकिन सिद्धू का सपना पोलैंड में होने वाले एक्स्ट्रीम स्पोर्ट मुकाबले मैदान में भाग लेकर उसे जीतना चाहता है, क्योंकि यही उसके भाई निहाल का भी सपना था।

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खास बात यह है कि इस मैदान में स्टंटबाजी का कोई साधारण मुकाबला नहीं होता, बल्कि हर पारी में आगे बढ़ने के लिए आपको जान की बाजी लगानी पड़ती है। निहाल भी इसी खेल में अपनी जान गंवा देता है। इसलिए, सिद्धार्थ उसके सपने को सच करने मैदान पहुंच जाता है। यहां उसका सामना होता है, शो रनर देव (अर्जुन रामपाल) से और दुनियाभर से चुने गए स्टंटबाजों के बीच शुरू होता है मैदान का खूनी खेल। अब इस मैदान का विजेता कौन बनेगा? इस बारे में आपको ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी और यही प्रिडिक्टिबिलिटी फिल्म एक और बड़ी कमजोरी है।

‘क्रैक: जीतेगा तो जिएगा’ मूवी रिव्‍यू

वैसे तो राइटर्स ने कहानी में एक्शन के साथ-साथ भाई को खोने का इमोशन, सिद्धू का सोशल मीडिया इंफ्लूएंशर आलिया (नोरा फतेही) के साथ रोमांस, प्लूटोनियम और न्यूक्लियर बम के साइड ट्रैक वाला रोमांच, सब डालने की कोशिश की है, पर सब कुछ काफी सतही तरीके से लिखा गया है। डायलॉग तो ऐसे हैं कि इंसान सिर पीट ले। कई डबल मीनिंग डायलॉग्स मन खराब कर देते हैं। इनमें से कुछ इतने घिसे-पिटे हैं कि एक्टर के बोलने से पहले आप खुद पूरा कर दें।

यही नहीं, मैदान के खेल के जो नियम हैं, वे भी अनूठे या अनदेखे नहीं लगते। कभी यह चर्चित कोरियन सीरीज ‘स्क्विड गेम’ का सस्ता वर्जन लगता है, तो कभी ‘खतरों के खिलाड़ी’ का अपग्रेडेड वर्जन। फिर भी, एक्शन फिल्म का अकेला दमदार पक्ष है। एक्शन कोरियोग्राफर केरी ग्रेग ने फिल्म में कुछ अच्छे सीक्वंस दिए हैं। विद्युत जामवाल और अर्जुन रामपाल अपनी कसी हुई कद-काठी के कारण एक्शन सीन्स में अच्छे भी दिखते हैं।

बात करें, एक्टिंग की तो एक्शन सीन्स में विद्युत ने अपनी महारत फिर साबित की है, पर उनका टपोरी अंदाज इतना नहीं फबता। अर्जुन रामपाल ने अपनी भूमिका ईमानदारी से निभाई है। पुलिस अफसर पैट्रिशिया के रोल में एमी जैक्सन अच्छी दिखती हैं, पर नोरा फतेही से एक्टिंग करवाने की कोशिश ज्यादती लगती है  (स्रोत: समाचार एजेंसी)

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