प्रदूषण पूरे देश के लिये चेतावनी
City24News/नरवीर यादव
फरीदाबाद | राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली आज जिस घातक पर्यावरण संकट से गुजर रही है, वह केवल एक शहर की समस्या नहीं, बल्कि पूरे देश के लिये चेतावनी है। विडंबना यह है कि इस संकट के नाम पर जो तात्कालिक उपाय लागू किए जाते हैं, उनका सबसे बड़ा खामियाजा वही तबका भुगतता है, जिसकी इसमें सबसे कम भूमिका होती है-गरीब और श्रमिक वर्ग। इसी पीड़ा को शब्द देते हुए सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि अमीरों की जीवनशैली से पैदा हुई मुश्किलों का सामना गरीबों को करना पड़ता है। यह टिप्पणी न केवल कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और नैतिक चेतना को झकझोरने वाली भी है। दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की पीठ ने यह मर्मस्पर्शी टिप्पणी की। वरिष्ठ अधिवक्ता और न्यायमित्र अपराजिता सिंह की दलीलों पर गौर करते हुए अदालत ने स्पष्ट कहा कि ग्रैप-4 जैसी सख्त पाबंदियों का सबसे ज्यादा असर गरीबों पर पड़ता है। निर्माण कार्य रुकते हैं, दिहाड़ी मजदूरों की रोजी-रोटी ठप हो जाती है, जबकि प्रदूषण पैदा करने वाली जीवनशैली में शामिल संपन्न तबके पर अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ता। मुख्य न्यायाधीश ने साफ शब्दों में कहा कि समस्या की जड़ अमीरों की जीवनशैली है और समाधान भी वहीं से शुरू होना चाहिए। उन्होंने भरोसा दिलाया कि अदालत ऐसे प्रभावी और लागू करने योग्य आदेश पारित करेगी, जिन्हें जरूरत पड़ने पर सख्ती से लागू भी किया जा सकेगा।
महानगरों में लोगों की अपनी अलग जीवनशैली होती है, जिन्हें वे बदलना नहीं चाहते। यही वजह है कि समस्या अमीरी की वजह से होती है, लेकिन झेलना गरीब को पड़ता है। दरअसल, अदालत की सोच रही है कि हमारा परिवेश-पर्यावरण साफ-सुथरा रहे, इसके लिये हम सबको अपने कुछ सुखों का त्याग करना होगा, अपने जीवन को पर्यावरण के अनुकूल ढालना होगा एवं प्रकृति-एवं पर्यावरण के प्रति सकारात्मक रवैया अपना होगा। यह जानते हुए कि पर्यावरण पर आने वाले संकट व प्रदूषित हवा का अमीर-गरीब पर समान असर पड़ता है फिर भी अमीर लोग इससे बेपरवाह रहते हैं। निस्संदेह, शीर्ष अदालत ने समाज की दुखती रग पर हाथ रखा है। चौड़ी होती सड़कें, नए फ्लाईओवर और हाईवे बनने के बावजूद जाम और प्रदूषण कम नहीं हो रहे। कारण साफ है निजी वाहनों का बेहिसाब इस्तेमाल। एक व्यक्ति, एक कार का चलन न केवल सड़क की जगह घेरता है, बल्कि कार्बन उत्सर्जन को भी कई गुना बढ़ाता है। कभी ऑड-इवन जैसी योजनाओं पर चर्चा हुई, कार-पूलिंग की बात चली, लेकिन सार्वजनिक परिवहन को सस्ता, सुगम और भरोसेमंद बनाने की इच्छाशक्ति लगातार कमजोर रही।
आज एसी, कूलर और अन्य वातानुकूलन साधनों का बढ़ता उपयोग भी पर्यावरण संकट को गहराता जा रहा है। इससे बिजली की खपत बढ़ती है, तापमान में वृद्धि होती है और अप्रत्यक्ष रूप से प्रदूषण का दायरा फैलता है। उद्योगों में भी पर्यावरणीय नियमों का ईमानदार पालन नहीं होता। जल संकट इसका एक और क्रूर उदाहरण है-जहां झुग्गी-बस्तियों में पीने के पानी की किल्लत है, वहीं पॉश कॉलोनियों में लॉन सींचे जाते हैं, कारें धुलती हैं और स्विमिंग पूल भरे रहते हैं। कुदरत ने हवा, पानी और संसाधन सभी के लिये दिए हैं, लेकिन अमीरी के असमान दखल ने इनके वितरण को अन्यायपूर्ण बना दिया है। राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप तो करते हैं, लेकिन ठोस और दीर्घकालिक समाधान सामने नहीं आते।
