दूसरों के प्रति क्षमा ओर सहनशीलता का भाव रखना:-उत्तम क्षमा

-आत्मा का मूल गुण है क्षमा :रजत जैन
-जो आत्मा सम्यकदर्शन से युक्त है, उसी के लक्षण उत्तम है:रजत
City24news/अनिल मोहनिया
नूंह | दशलक्षण पर्व को पर्युषण पर्व भी कहते हैं। इस पर्व का अपना विशेष महत्व है। धर्म तो एक ही ही है लेकिन धर्म का स्वरूप दशलक्षण रूप है आत्मा के स्वरूप की प्रतीति पूर्वक चारित्र धर्म की दस प्रकार से आराधना करना दशलक्षण धर्म है। सर्व जातीय सेवा समिति के उपाध्यक्ष रजत जैन ने बताया कि आत्मा के दस प्रकार के सद्भावो के निवास से संबंधित होने से इसे दशलक्षण महापर्व भी कहा जाता है।रजत ने बताया की उत्तम क्षमा धर्म,उत्तम मार्दव धर्म ,उत्तम आर्जव धर्म, उत्तम शौच धर्म उत्तम सत्य धर्म उत्तम संयम धर्म ,उत्तम तप धर्म ,उत्तम त्याग धर्म ,उत्तम आकिंचन धर्म, उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म। उत्तम शब्द का अर्थ सम्यग्दर्शन, सहित होने के लिए कहा गया है, अर्थात जो आत्मा सम्यक्दर्शन से युक्त है,उसी के लक्षण उत्तम कहे है।
उत्तम धर्म क्या हैः क्रोध रूपी बेरी को जीतना उत्तम क्षमा धर्म अंगीकार करना है, क्रोध का अभाव होना ही क्षमा धर्म है।केवल कुछ पल का क्रोध भी जीवम के संयम भाव, संतोष भाव ,निराकुलता भाव, सम्यक्दर्शन,जैसे अमूल्य रत्नों के भंडार को नष्ट करने के लिए काफी है।रजत ने बताया कि क्षमा करना आत्मा का मूल गुण है क्षमा वीरस्य भूषणम् । क्षमा महावीरो का आभूषण है।क्रोध दोनों लोको का विनाश करने वाला होता है बुद्धि भ्रष्ट कर सही गलत का ज्ञान व विवेक भी हनन कर देता है। दूसरों के प्रति क्षमा ओर सहनशीलता का भाव रखना क्षमा भाव है।त्रिकाल ,अशरीर,निर्विकार, तक्तव है, एवं ज्ञान अज्ञेय है। ऐसी रुचि एवं प्रतीति करना महान उत्तम क्षमा धर्म है।