नूंह के मूढ़ों की देशभर में धूम, लुहिंगा कला बना कारीगरी का गढ़
City24News/अनिल मोहनिया
नूंह | प्रदेश का नूंह जिला भले ही पिछड़ेपन का शिकार हो, लेकिन यहां के लोगों की कला से तैयार किए जाने वाले मूढ़े और मूढ़ियां उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली-एनसीआर के होटलों में खूब लोकप्रिय हो रहे हैं। जिले के गांव लुहिंगाकला में तैयार होने वाले इन उत्पादों की मांग इतनी बढ़ गई है कि यहां के लोगों के लिए इसकी पूर्ति करना मुश्किल हो रहा है।
पिछले कई दशकों से यह काम यहां लगातार चल रहा है और अब अधिकांश परिवारों के लिए यह पुश्तैनी व्यवसाय बन चुका है। गांव में छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों और महिलाओं तक लगभग हर कोई इस काम में हाथ बंटाता है। देसी कारीगरी से बने इन मूढ़ों की बढ़ती मांग ने लोगों की आय में भी इजाफा किया है।
मूढ़ीबास लुहिंगाकला के निवासी 60 वर्षीय मुहरुद्दीन और अब्दुल मजीद ने बताया कि गांव के करीब दो सौ परिवार मूढ़े और मूढ़ियां बनाने का काम करते हैं। इनमें से अधिकांश परिवार पिछले 20 वर्षों से इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया कि परिवार में आने वाली बहुएं भी एक-दूसरे को देखकर यह कला सीख जाती हैं, जबकि छोटे बच्चे भी माता-पिता का सहयोग करते हैं।
मुहरुद्दीन ने बताया कि दो मूढ़ियों का एक जोड़ा 200 रुपये में बिकता है, जिसमें करीब 150 रुपये की लागत आती है। वहीं, फैंसी मूढ़े और टेबल सेट बनाने में 6 से 7 हजार रुपये तक का खर्च आता है, जिन्हें तैयार होने के बाद 9 से 10 हजार रुपये में बेचा जाता है।
