अनेक नेता हैं भारतीय राजनीति के ‘आया राम गया राम’

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  • पहले ‘पलटीमार’ नीतीश कुमार नहीं, ये भी हैं दलबदलू
  • गयालाल सबसे पहले बने थे ‘आया राम गया राम’ 

city24news@अशोक कुमार कौशिक
भारतीय राजनीति में नेताओं का पार्टी बदलना बड़ा आम हो गया है। सालों तक किसी पार्टी से जुड़े रहने के बावजूद नेता मनमाफिक सम्मान नहीं मिलने पर पाला बदलते देखे गए हैं। नेताओं, विधायकों या सांसदों के लिए पहले भी यह कोई बड़ी बात नहीं थी और आज भी कुछ ऐसा ही है। इस तरह के नेताओं और विधायकों को ‘दलबदलू’ या ‘पलटीराम’ कहा जाता है। भारत में पाला बदलने की इस प्रवृत्ति के लिए ‘आया राम गया राम’ वाक्य का भी इस्तेमाल होता है। पूरे देश व हरियाणा में ऐसे नेताओं की भरमार है। अगर सब की चर्चा करेंगे तो आलेख थोड़ा बड़ा हो जाएगा।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीते दिन राज्य में इंडिया महागठबंधन से रिश्ता तोड़ भाजपा के साथ सरकार बना ली। नीतीश के दोबारा एनडीए के साथ मिलने पर हर कोई उन पर निशाना साध रहा है। उन्हें ‘पलटीराम’ की संज्ञा दी गई है। पूरा विपक्ष उन पर हमलावर है।

दलबदलूओं के लिए ‘पलटीराम’ से पहले एक और मुहावरा ‘आया राम, गया राम’ प्रसिद्ध था। 

इसी बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी उनपर कटाक्ष करते हुए उन्हें ‘आया राम गया राम’ बताया। खरगे ने कहा कि नीतीश के जाने का उन्हें अंदाजा था। बार-बार पार्टी बदलने वाले ‘पलटीराम’ नीतीश कुमार पहले ऐसे व्यक्ति नहीं है उनसे पहले भी कई राजनेता इस तरह का ‘नौंटकी’ कर चुके हैं। लेकिन देश में कुछ लोग ऐसे हैं जो आया राम गया राम हैं।

नीतीश पर इस कटाक्ष के बाद राजनीति में एक बार फिर से ‘आया राम गया राम’ की यादें ताजा हो गई हैं।

आइए जानते हैं, कैसे भारत की राजनीति में इस ‘आया राम गया राम’ जुमले की शुरुआत हुई…

हरियाणा से जुड़ा है किस्सा

दरअसल, ‘आया राम गया राम’ हमारी राजनीति में एक लोकप्रिय जुमला बन गया है। इसके पीछे भी एक रोचक किस्सा है। बात वर्ष 1967 की है, जब हरियाणा के जब हरियाणा के नेता गया लाल ने कपड़ों की तरह पार्टियां बदली और इस जुमले को अमर बना दिया।

हरियाणा के पलवल जिले के हसनपुर विधानसभा से विधायक चुने गए गया लाल ने 9 घंटे में ही तीन बार पार्टी बदल दी थी। पहले तो गया लाल कांग्रेस से यूनाइटेड फ्रंट में आए, फिर थोड़ी देर में वो वापस कांग्रेस में आ गए। इसके 9 घंटे बाद वो फिर यूनाइटेड फ्रंट में चले गए। गया लाल का हृदय परिवर्तन यहीं नहीं थमा और वो फिर से कांग्रेस में चले गए।

कांग्रेस में आने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता राव बीरेंद्र सिंह ने गया लाल के साथ चंडीगढ़ में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। बीरेंद्र सिंह ने गया लाल का परिचय कराते हुए कहा, गया राम अब आया राम हैं। इस किस्से के बाद से दलबदलुओं के लिए ये वाक्य भारतीय राजनीति में खूब चला।

अंत तक पार्टी बदलते रहे गया लाल

अपने राजनीतिक सफर के अंत तक गया लाल पार्टी बदलते रहे थे। यूनाइटेड फ्रंट और कांग्रेस के बाद गया लाल ने 1972 में आर्य सभा का दामन थाम लिया। इसके दो साल बाद वो चरण सिंह के नेतृत्व वाले भारतीय लोक दल में शामिल हुए। फिर 1977 में वो जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े। गया लाल ने अपना अंतिम चुनाव 1982 में एक निर्दलीय के तौर पर लड़ा और वो हार गए।

बेटे उदय भान ने भी जारी रखा पार्टी बदलना

गया लाल का निधन वर्ष 2009 में हुआ। उनके बाद बेटे उदय भान ने भी उनकी तरह दलबदल की राजनीति जारी रखी। उदय भान 1987 में लोक दल-भाजपा के संयुक्त उम्मीदवार बने थे। इसके बाद वो 1991 में जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़े। साल 2000 में वो निर्दलीय विधायक बने और राष्ट्रीय लोक दल में शामिल हो गए। इसके बाद वो 2004 में कांग्रेस में चले गए, वो अभी तक कांग्रेस में ही हैं और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभाले हैं।

ये नेता भी बने ‘पलटीराम’-‘आया राम गया राम’

1977 में जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव जीते कर्नल राम सिंह दक्षिणी हरियाणा के चर्चित चेहरे रहे। पहली ही जीत ने उन्हें शिक्षा मंत्री बनाया। फिर 1978 में उन्हें स्पीकर बना दिया गया। भजनलाल के साथ इन्होंने भी पलटी मार कर कांग्रेस का दामन थामा। 1982 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट में मिलने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की और परिवहन मंत्री बने और कांग्रेस में शामिल हो गए। 1991 में उन्हें कांग्रेस की टिकट पर महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव में उतरा गया। जहां से जीत कर वह केंद्र में बंजर भूमि विकास राज्य मंत्री बने। उनकी पटरी भजनलाल से नहीं बैठ पाई और उन्होंने भूपेंद्र सिंह हुड्डा तथा चौधरी वीरेंद्र सिंह डूंमर खां के साथ मिलकर विरोध के सुर बुलंद किये।

1980 में भजन लाल जनता पार्टी को छोड़कर 37 विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे और बाद में राज्य के मुख्यमंत्री बने।

1990 में उस समय भजन लाल की ही हरियाणा में सरकार थी। बीजेपी के के.एल.शर्मा कांग्रेस में शामिल हो गए थे। उसके बाद हरियाणा विकास पार्टी के चार विधायक धर्मपाल सांगवान, लहरी सिंह, पीर चंद और अमर सिंह धानक भी कांग्रेस में शामिल हो गए।

हरियाणा के निर्माता कहे जाने वाले चौधरी बंसीलाल ने भी कांग्रेस को छोड़कर हरियाणा विकास पार्टी का गठन किया। 1996 में हरियाणा विकास पार्टी और बीजेपी गठबंधन ने सरकार बनाई। बाद में हरियाणा विकास पार्टी के 22 विधायकों के पार्टी छोड़ने की वजह से बंसी लाल को इस्तीफा देना पड़ा। हरियाणा विकास पार्टी के 22 विधायक आईएनएलडी में शामिल हो गए थे। उसके बाद बीजेपी की मदद से ओम प्रकार चौटाला ने राज्य में सरकार बनाई थी।

2009 के चुनाव में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। कांग्रेस और इंडियन नैशनल लोक दल (आईएनएलडी) दोनों सरकार बनाने की कोशिश कर रही थी। उस समय हरियाणा जनहित कांग्रेस के पांच विधायक सतपाल सांगवान, विनोद भयाना, राव नरेंद्र सिंह, जिले राम शर्मा और धर्म सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए थे। तब कांग्रेस का नेतृत्व भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सौंपा गया। 

2014 के बाद कांग्रेस में एकाएक भगदड़ की स्थिति बनी। इसमें कुछ प्रमुख चेहरों ने तत्कालिक कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ मतभेद चलते कांग्रेस को छोड़ दिया। इन में चौधरी वीरेंद्र सिंह, राव इंद्रजीत, अशोक तंवर, रणजीत सिंह चौटाला सहित अनेक नेताओं ने कांग्रेस को छोड़ा। चौधरी विजेंद्र सिंह  डूमरखां और राव इंद्रजीत सिंह भाजपा में चले गए। चौधरी रणजीत सिंह ने टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा और 2019 में भाजपा के साथ आ गए। 10 साल के मुख्यमंत्री काल में भूपेद्र सिंह हुड्डा ने अनेक कांग्रेसी पार्टी छोड़ने पर विवश कर दिया।

हरियाणा की राजनीति में चर्चित दलित चेहरे और राहुल गांधी के सिपहसालार रहे अशोक तंवर ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मतभेद के चलते कांग्रेस को छोड़ा। उन्होंने भी ‘पलटीराम’ होने का कीर्तिमान बनाया। उन्होंने अपना संगठन बनाया। बाद में वह ममता बनर्जी की पार्टी में गए। फिर केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का दामन थामा। उनको केजरीवाल का साथ भी रास नहीं आया और बाद में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया।

पलटीराम – आया राम गया राम’ राजनीति का केंद्र रहा है दक्षिणी हरियाणा

कांग्रेस से राजनीति की शुरुआत करने वाले रामपुरा हाउस के ‘राव राजा’ इंद्रजीत सिंह ने तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा से मतभेद के चलते 2014 में कांग्रेस को बाय-बाय कह दिया। 2019 के बाद अनेक बार उनको लेकर चर्चा चली कि वह भाजपा को भी छोड़ सकते हैं। उन्होंने फिर से इंसाफ मंच को सक्रिय किया और इसकी कमान अपनी पुत्री आरती राव को सौंप दी। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के साथ भी वह कदमताल नहीं कर पाए थे। भाजपा नेता भूपेंद्र यादव तथा पूर्व सांसद सुधा यादव को पार्टी द्वारा महत्व दिया जाना बताया गया। नांगल चौधरी के विधायक डॉक्टर अभय सिंह पूर्व स्पीकर संतोष यादव वी राव नरवीर सिंह को अहम पद दिए जाने के बाद व्यथित दिखे। मुख्यमंत्री बनने की कसक उनके दिल में कांग्रेस के समय से रही है। जिसे वह रह रह कर समय-समय पर इजहार करते रहे हैं।

पार्टी में पहले जैसा उनका मान सम्मान व महत्व न होने के कारण भी यह चर्चाएं जोरों पर रही। यद्यपि अब उनके सुर बदले हुए हैं। वह भाजपा के शीर्ष नेतृत्व प्रधानमंत्री मोदी व हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को अब विकास पुरुष बताते नहीं थकते।

दक्षिणी हरियाणा में अनेक नेता दलबदलू- पलटीराम की श्रेणी में

इस श्रेणी में राव नरेंद्र सिंह भी है। राव बंसी सिंह सिंह के अचानक निधन के बाद कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीते। बाद में कांग्रेस छोड़कर जनहित कांग्रेस के साथ चले गए। फिर वापस कांग्रेस में आ गए। इसके साथ देवीलाल परिवार से जुड़ी रही संतोष यादव भी पलटीमार श्रेणी में आती है जो आजकल बीजेपी में है। यहां दो ओर चेहरों की चर्चा करते हैं राव निहाल सिंह तथा चौधरी फुसाराम। राव निहाल सिंह ने कांग्रेस को छोड़ कांग्रेस जे के सहारे चुनाव लड़ा, देवीलाल की कृपा से वह चुनाव जीते। इसी तरह ‘कांग्रेस जे’ और चौधरी देवीलाल के सहारे चुनाव जीतने वाले चौधरी फुसाराम इसी श्रेणी में है जो बाद में चौधरी भजनलाल के साथ कांग्रेस में चले गए। बाद में उनके पुत्र चौधरी मूलाराम निर्दलीय विधायक बने जो कभी देवीलाल परिवार के संपर्क में रहे। आज वह कांग्रेस में है।

पलटी मारने में पूर्व निर्दलीय विधायक राधेश्याम शर्मा पीछे नहीं रहे। कांग्रेस में फिर भाजपा में फिर कांग्रेस में आ गए। याद रहे कि उनके भाई पंडित कैलाश चंद शर्मा ओम प्रकाश चौटाला की सरकार में मंत्री रहे हैं। 

छात्र संघ चुनाव के बाद राजनीति मे उतरे नरेश यादव कांग्रेस के युवा जिला प्रधान रहे। बाद में उन्होंने चौधरी बंसीलाल की हविपा का दामन थामा। फिर निर्दलीय विधायक बनकर उन्होंने चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा को समर्थन दिया। बाद में चुनाव के समय वह कांग्रेस में शामिल हो गए। टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने कांग्रेस को छोड़ दिया।

पलटी मारने में माहिर नेताओं में राव नरवीर सिंह कांग्रेस से हविपा, इनलो, कांग्रेस और अब भाजपा के सफर के साथ अब भाजपा का दामन थामे हुए हैं। जगदीश यादव इनेलो से कांग्रेस और अब भाजपा में है। कभी मंत्री रहे एमएल रंगा इनेलो को छोड़कर कांग्रेस में चले गए। अभी कांग्रेस में ही है। 

नांगल चौधरी से विधायक डॉक्टर अभय सिंह यादव 2014 के चुनाव से राजनीति में आए। भाजपा के टिकट मिलने से पूर्व उनकी कोठी पर इनेलो का हरा झंडा लहरा रहा था। बाबा रामदेव की कृपा से उनको भाजपा की टिकट मिला, उसके बाद में भगवा रंग में ही रंगे हुए हैं। राव इंद्रजीत सिंह के साथ कांग्रेस छोड़ 2014 में भाजपा में शामिल हुए ओम प्रकाश यादव एडीओ व बावल से विधायक डा बनवारी लाल ने रामपुरा हाउस के आशीर्वाद से सत्ता का स्वाद चखा। अभी भगवा रंग में रंगे हुए हैं।

देश में ​​अब भी जारी है सिलसिला

साल 2016 में पीपुल्स पार्टी के 43 में से 33 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे। पहले कांग्रेस विधायक पीपुल्स पार्टी में चले गए थे और बाद में बीजेपी में चले गए थे। साल 2018 में गोवा में कांग्रेस के दो विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे। अभी है भगवा रंग में रंगे हुए हैं।

​ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 18 साल बाद बदली पार्टी

मध्य प्रदेश के दिग्गज नेता और कांग्रेस से सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से अपना 18 साल पुराना नाता तोड़कर कुछ महीनों पहले बीजेपी का दामन थाम लिया। फिर बीच में ऐसी खबरें भी उड़ी थीं कि वह बीजेपी भी छोड़ सकते हैं।

कांग्रेस नेता अरविंदर सिंह लवली भी इस सूची में हैं। वो कांग्रेस से भाजपा और फिर कांग्रेस में आए हैं।

वहीं, हाल ही में कर्नाटक चुनाव में भाजपा छोड़ कांग्रेस में आए पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार भी इस सूची में आ गए हैं। वो एक बार फिर भाजपा में शामिल हो गए हैं।

 

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