विद्युतीकरण की राह पर चलते हुए भारतीय रेल ने लगाया शतक

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-भारी सामान ढोने व यात्रियों की सुविधा के लिए रेलवे के लगातार बढते कदम
City24news/सुनील दीक्षित
 कनीना | अप्रैल 1853 को भारत में पहली बार रेल, लोहपथगामिनी रवाना की गई। उसके बाद लगातार विस्तार होता गया। वर्तमान समय में भाप वाले इंजन की बजाय ब्राडगेज रेलमार्ग पर बिजली के इंजन रेलसेवा को संचालित कर रहे हैं। बीकानेर मंडल के अंतर्गत रेलवे इलेक्ट्रिफिकेशन,रेलवे बोर्ड के अपर सद्स्य डॉ जयदीप गुप्ता ने बताया कि करीब 72 वर्ष बाद 3 फरवरी 1925 को भारतीय रेल ने एक और अध्याय जोड़ते हुए पहली बार छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से कुर्ला, मुंबई तक अपनी यात्रा बिजली से संचालित रेल को झंडी दिखाई। साल 2025 में भारतीय रेल विद्युतीकरण के 100 साल पूरे कर गई है। ब्रॉड गेज नेटवर्क के 100 फीसदी विद्युतीकरण के लक्ष्य को पूरा करनेे की ओर अग्रसर है।  
हालांकि, बिजली से संचालित इंजन को भारत ने 1925 में पहली बार अपनाया था। कोयला संचालित इंजन के मुकाबले ये कम रखरखाव के साथ प्रदूषण रहित थे, जो भारी मात्रा में सामान लाने व ले जाने सहित तीव्र ढलान पर आसानी से पंहुच सकते थे। आरंभिक दिनों में विद्युतीकरण की लागत अधिक थी, लेकिन शहरी यातायात और मुंबई जैसे महानगर के लिए यह विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध हुई। जबकि भाप वाले इंजन पुणे और नासिक की ओर  तीव्र ढलानों को संभालने में असमर्थ थे। 1904 में बॉम्बे प्रेसीडेंसी सरकार के मुख्य अभियंता डब्ल्यूएच व्हाइट ने मुंबई में दो प्रमुख रेल नेटवर्क, ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे व बॉम्बे बड़ौदा एंड सेंट्रल इंडिया रेलवे के विद्युतीकरण करने का प्रस्ताव रखा। हालांकि प्रथम विश्व युद्ध की वजह से इस परियोजना को अस्थायी रूप से रोक दिया गया, लेकिन 1920 तक बॉम्बे-पुणे, इगतपुरी और वसई लाइनों के विद्युतीकरण की योजनाओं को मंजूरी मिल गई।
उन्होने बताया कि 3 फरवरी 1925 को भारत की पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन ने 1500 वोल्ट डायरेक्ट करंट पर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और कुर्ला के बीच 16 किलोमीटर की दूरी तय की गई। यह भारतीय रेल के स्वच्छ और आधुनिक परिवहन की शुरुआत का प्रतीक बनी। इस कदम के साथ, भारत दुनिया का 24वां और एशिया का तीसरा देश बन गया जहां बडे नेटवर्क के साथ इलेक्ट्रिक रेल सेवाएं संचालित कीं।

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