नए साल 2026 में करें नशे पर प्रहार, युवा पीढ़ी को इससे बचाना समय की मांग।

0

City24News/अनिल मोहनिया
नूंह | समाज के बदलते परिवेश में कुछ अलग करने की चाह, मानसिक तनाव, कम समय में अधिक कमाने, बेरोजगारी और बहुत से गैर जरूरी शौक ऐसे कारण है जो नशे के प्रचलन को लगातार बढ़ा रहे हैं। इसका शिकार हमारी युवा पीढ़ी हो रही है। नशा करना युवाओं के लिए एक फैशन की तरह बन गया है जो दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। एक वक्त था जब नशे के लिए पंजाब ही जाना जाता था लेकिन अब हरियाणा व उसका नूंह जिला भी नशे की गिरफ्त में जकड़ते जा रहे हैं। दुर्भाग्य ये भी है कि यहां नशे से लड़ने के लिए पर्याप्त संसाधन और सुविधाएं मौजूद नहीं हैं।

भारत में हर साल लगभग 20 लाख लोग तंबाकू से होने वाली बीमारियों के कारण मर जाते है और लगभग 5 लाख लोग हर वर्ष शराब के कारण मर जाते है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 28 करोड़ लोग किसी न किसी मादक पदार्थ का सेवन कर रहे है जिनमे से 16 करोड़ लोग शराब और 12 करोड लोग अन्य मादक पदार्थों का सेवन कर रहे है। इस रिपोर्ट के ही अनुसार इनमे से लगभग 6 करोड लोग नशा छोड़ना चाहते है पर वो सुविधाएं न मिलने के कारण ऐसा नहीं कर पा रहे है। जो पीड़ित नशा छोड़ना चाहते हैं उनके लिए ज़रूरी सुविधाएं नहीं होना चिंतनीय है। ये सरकार और प्रशासन का दायित्व है कि नशा छोड़ने वालों के लिए हर मुमकिन सहयोग दे। 

करोड़ों बच्चे सूंघने वाले नशे कर रहे है जिनमे व्हाइटनर और सिलोचन जो की जूते चिपकाने पंचर बनाने और फर्नीचर बनाने में काम आता है, इनमे स्ट्रीट चाइल्ड बहुत ज्यादा है जो कि अधिकतर सूंघने वाले नशे करते है। ये मासूम बच्चे बड़े होकर असामाजिक तत्व बनते है और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहते है। 

यदि हम इस बात पर विचार करें की क्यों ये स्थिति आती है तो हम पाएंगे कि इसका मुख्य कारण नशे की समस्या के बारे में समाज में व्याप्त गलत धारणाएं है। हमारे समाज में नशे की समस्या को एक बुरी लत या एक सामाजिक बुराई के तौर पर देखा जाता है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन 1964 में एडिक्शन को बीमारी घोषित कर चुका है।

हमारे समाज में जब कोई व्यक्ति एडिक्ट हो जाता है तो उसको ठीक करने के लिए सबसे पहले पीटा जाता है,जब पिटाई से काम नहीं होता तो फिर पूजा पाठ और बाबा भभूत से उसको ठीक करने की कोशिश की जाती है, जब ये सब तरीके असफल हो जाते है तो आखिरी में ये कहा जाता है कि इसकी शादी कर दो शादी के बाद ये ठीक हो जायेगा।

क्या हम किसी और बीमारी को ऐसे ठीक करने की कोशिश करते है ?

नशे की बीमारी में भी पीड़ित को अन्य बीमारियों की तरह ही उपचार की आवश्यकता होती है, कोई बीमार व्यक्ति अपना उपचार स्वयं नहीं कर सकता है जबकि हम शुरू से उसके दिमाग में ये बात भर देते है कि वो खुद ठीक हो सकता है वो बेचारा खुद ही अपना उपचार करता रहता है जिसका कोई नतीजा नहीं निकलता है।

अतः एकदम से नशे बंद करने के लिए चिकित्सकीय सहायता की आवश्यकता होती है और इसके बाद ही उनको साइकोलॉजिकल प्रोग्राम एवं काउन्सलिंग की मदद से ही नशे से दूर रखा जा सकता है।

किसी भी चिकित्सा शास्त्र में ऐसी कोई दवाई उपलब्ध नहीं है जिनको खिलाकर नशे छुड़वाए जा सकें।

नशे की लत में परिवार के सदस्यों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, किसी प्रियजन को नशे की लत में डूबते देखना बेहद दर्दनाक अनुभव होता है। आप उस व्यक्ति की कितनी परवाह करते हैं, यह तो स्वाभाविक है, लेकिन उनका व्यवहार आपको क्रोधित, असहाय, दोषी, भयभीत, अकेला, थका हुआ और निराश महसूस करा सकता है। अक्सर, लत से ग्रस्त व्यक्ति अपने द्वारा किए जा रहे विनाश से अनजान होता है, जिससे मदद प्राप्त करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो जाता है।  

नशा हर किसी को प्रभावित करता है। जीवनसाथी, माता-पिता, बच्चे और भाई-बहन। किसी व्यक्ति के नशे की लत से जुड़ी आदतों को लेकर लगातार चिंता और तनाव से दोस्तों और परिवार के सदस्यों पर मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से बुरा असर पड़ सकता है। तनाव बढ़ जाता है और झगड़े आम बात हो जाती है। उचित इलाज के बिना, नशा आपके घर, काम और पारिवारिक जीवन को तबाह कर सकता है।

नशे की लत से ग्रस्त व्यक्ति एक चलती-फिरती बम की तरह होता है। उनका अनियमित व्यवहार और तर्कहीन निर्णय परिवार के सदस्यों के साथ लगातार मतभेद का कारण बनते हैं। शराब या नशीली दवाओं को अपनी प्राथमिकता बनाकर, व्यसनी व्यक्ति दूसरों को अपराधबोध कराता है और भावनात्मक रूप से उनका शोषण करता है। मस्तिष्क पर नशीले पदार्थों के प्रभाव के कारण, उनमें क्रोध के प्रकोप की संभावना अधिक होती है।

मौजूदा समय में देश की कुल आबादी में 35 साल से कम उम्र के युवाओं की संख्या लगभग 65 फीसदी है। ऐसे में अगर युवाओं के बीच नशे का चलन बढ़ता है तो यह देश के लिए आने वाले समय में गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। युवाओं को नशे की लत से बचाने के लिए सरकारों को व्यापक अभियान चलाने की विशेष जरूरत है।

नशे के खिलाफ सभी को लामबंद होना पड़ेगा वो चाहे सामाजिक संस्थाएं हो, राजनैतिक दल हो, आम नागरिक हो, प्रशासन हो , सभी को एक मंच पर आकर नशे के खिलाफ काम करना पड़ेगा तब जाकर कहीं नशे को खत्म या कम किया जा सकेगा। 1996 में हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल ने नशे (शराब) के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू की थी (1 जुलाई 1996 से)। यह उनके कार्यकाल का एक बड़ा कदम था, क्योंकि उन्होंने नशे को खत्म करने के वादे पर जनता से समर्थन लिया था। हालांकि, इस नीति के लागू होने के कुछ ही समय बाद अवैध शराब की तस्करी और राजस्व का नुकसान, जिसके कारण अंततः उनकी सरकार को इस फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ा और यह प्रतिबंध हटाना पड़ा। 

आज फिर शराब बंदी और नशे बंदी के खिलाफ एकजुट होकर साहसिक कदम उठाया जाना चाहिए। मैं खुद 2026 के साल में नशे के खिलाफ नूंह में लोगों को जागरूक करने के लिए प्रतिबद्ध हूं। हाल ही में हुए शीतकालीन विधानसभा सत्र में मैंने नशे के मुद्दे को गंभीरता से सदन में उठाया था, क्योंकि नशे से पीड़ित लोगों को हम सभी की मदद की जरूरत है।

अगर समय रहते हुए हमने नशे का नाश नहीं किया तो नशा हमारे समाज का नाश कर देगा। आप सभी को नए साल की शुभकामनाएं और आप नए साल में ये प्रण लें कि कम से कम एक इंसान को नशे के चंगुल से बाहर निकालने में मदद करेंगे और समाज को नशे के खिलाफ जागरूक करेंगे। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *