अरावली बची रहेगी, तो दिल्ली हरी-भरी रहेगी: लुकमान रमीज़
समाचार गेट/संजय शर्मा
फरीदाबाद। सुप्रीम कोर्ट के अरावली पहाड़ियों की परिभाषा बदलने वाले आदेश के बाद इस फैसले का विरोध हो रहा है। इस फैसले के बाद अरावली की जमीन के बड़े हिस्से को कमर्शियल एक्टिविटी और माइनिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। राजनीतिक दलों के विरोध के साथ ही एक्टिविस्ट और पर्यावरणविद इस कदम के खिलाफ रैली कर रहे हैं। कांग्रेस के जोनल अध्यक्ष माइनोरिटी डिपार्टमेंट हरियाणा प्रदेश एवं कोर्डिनेटर हरियाणा प्रदेश जिला मेवात प्रभारी ओबीसी सेल से लुकमान रमीज़ ने कहा है कि अरावली को बचाना दिल्ली के अस्तित्व के लिए जरूरी है, और इस पर्वत श्रृंखला को दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के लिए एक प्राकृतिक ढाल बताया। उन्होंने कहा कि अगर अरावली बची रहेगी, तो दिल्ली हरी-भरी रहेगी! अरावली को बचाना कोई विकल्प नहीं बल्कि एक संकल्प है। लुकमान रमीज ने कहा है कि लगातार गिरावट से राजधानी में वायु प्रदूषण, जैव विविधता का नुकसान और अत्यधिक तापमान और भी खराब हो जाएगा।
ये कदम दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक अरावली के इकोलॉजिकल बैलेंस के लिए नुकसानदायक साबित होगा। यह कदम 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक समिति की सिफारिशों को मंजूरी देने के बाद उठाया गया है।
अन्य विपक्षी नेताओं ने भी गंभीर पर्यावरणीय नुकसान की चेतावनी दी है, जबकि बीजेपी ने इस आलोचना को गुमराह करने वाला बताया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बाद विरोध शुरू हो गया है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने हरियाणा के गुरुग्राम और राजस्थान के उदयपुर में अरावली पहाड़ियों की ऊंचाई पर आधारित नई परिभाषा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने चेतावनी दी कि इस बदलाव से देश की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक के इकोलॉजिकल संतुलन को नुकसान पहुंच सकता है।
