हरियाणा हरित घोषणापत्र 2024 पर नूह ज़िले में हुई चर्चा

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City24news/अनिल मोहनिया
नूंह | हरियाणा राज्य के इतिहास में पहली बार, नागरिकों ने इस साल विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दलों को प्रस्तुत करने के लिए एक हरित घोषणापत्र तैयार करने की महत्वपूर्ण पहल की है। अरावली पर्वतमाला के संरक्षण के लिए काम कर रहे ग्रामीण और शहरी नागरिकों और पारिस्थितिक विशेषज्ञों के एक समूह ‘पीपल फॉर अरावली’ ने पारिस्थितिक और वैज्ञानिक मूल्यों पर आधारित, विकास के दृष्टिकोण को सामने लाने की दिशा में पहले कदम के रूप में, हरियाणा के लिए हरित घोषणापत्र 2024 का प्रारंभिक ड्राफ्ट तैयार किया है।

पिछले कुछ हफ़्तों से पीपल फॉर अरावल्लीस की टीम हरियाणा के अलग अलग ज़िलों में विशेषज्ञों और ग्रामीण और शहरी लोगों से मिल रही है ताकि उनके सुझाव इस ग्रीन मैनिफेस्टो में डालें। 29 जुलाई 2024 को पीपल फॉर अरावल्लीस टीम नूह ज़िले में लोगों से मिली और इस ग्रीन मैनिफेस्टो के लिये उनके सुझाव लिए.

इब्राहिम ख़ान, नूंह जल बिरादरी के अध्यक्ष ने कहा,  

“हम हरित घोषणापत्र – 2024 को अपना समर्थन देते हैं। देश में सबसे कम वन आवरण (राष्ट्रीय औसत 21% के मुकाबले 3.6%), अत्यधिक जल संकट और गर्मी की स्थितियों का सामना करने वाले राज्य के निवासी मांग करते हैं कि हमारे निर्वाचित जनप्रतिनिधियों और नीति निर्माताओं द्वारा निर्णय लेने में राज्य के सभी प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों और निवासियों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाए. हरित घोषणापत्र -2024 में यह कहा गया है कि हमारे पर्यावरण का स्वास्थ्य लोगों, पशुओं और वन्यजीवों के स्वास्थ्य को परिभाषित करता है। यूनाइटेड नेशन्स ने चेतावनी दी है कि दुनिया एक गंभीर जलवायु संकट के कगार पर खड़ी है। हरियाणा के निवासी भीषण गर्मी के प्रकोप से और वर्षा वितरण में बदलाव के साथ जलवायु परिवर्तन के परिणाम भुगत रहे हैं। इस साल मई और जून के महीने में हरियाणा राज्य को गंभीर गर्मी व लू की स्थिति का सामना करना पड़ा, जिसमें सिरसा में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया और राज्य के अधिकांश हिस्सों में तापमान 45 से 50 डिग्री सेल्सियस के बीच में रहा। गर्मी व लू के कारण लोगों के जीवन, आजीविका, मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर भारी असर पड़ा है.”

इब्राहिम खान ने यह भी कहा कि नूंह जिला पहले ही पानी की कमी से जूझ रहा है, ऊपर से जिले मे भारी संख्या मे बूचड़ खाने खुलवाये जा रहे हैं जो दिन रात धरती के पेट को खाली कर रहे हैं। यदि नूंह जिले मे बूचड़ खानों को बंद नहीं कराया गया तो जल्द ही नूंह जिला पानी की एक एक बूंद को तरसेगा।

वहीं डॉ. मोहम्मद रफ़ीक, सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ता, नूंह ने कहा कि “हरियाणा हरित घोषणापत्र – 2024 इस समय की माँग है। हरियाणा राज्य जलवायु कार्य योजना के अनुसार, जोखिम प्रोफाइल के संदर्भ में, हरियाणा के 22 जिलों में से 95% का उच्च और मध्यम जलवायु जोखिम स्कोर है, जिसमें नूंह सबसे संवेदनशील जिला है। जलवायु परिवर्तन पर इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की ताज़ा रिपोर्ट से पता चलता है कि मानव गतिविधि द्वारा छोड़ी गई ग्रीनहाउस गैसों ने पहले ही दुनिया को 1.1°C तक गर्म कर दिया है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहमति लक्ष्य 1.5°C ग्लोबल हीटिंग को बनाए रखने की लड़ाई 2020 के इस दशक के अंतर्गत, हमारे राजनीतिक नेताओं की निगरानी में जीती या हारी जाएगी। जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालिक मिश्रित प्रभावों से हरियाणा के सभी निवासी और विशेष रूप से युवा सबसे अधिक नकारात्मक रूप से प्रभावित होंगे। इन खतरों के सामने, यह महत्वपूर्ण है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, प्रकृति को बहाल करने और हरियाणा राज्य के लिए एक जलवायु लचीली अर्थव्यवस्था बनाने के लिए ठोस प्रयास किया जाए, जिसमें युवा लोग और हमारी बेजुबान वनस्पतियां और जीव-जंतु पनप सकें”।

ग्रीन मेनिफेस्टो -2024 में कहा गया है कि हरियाणा राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 8.24% (3,64,154 हेक्टेयर) क्षरण हो गया है, जिसका अर्थ है कि भूमि की उत्पादकता में गिरावट आई है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान हुआ है और खाद्य एवं जल सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। हरियाणा पानी की कमी वाला राज्य है। पिछले कुछ वर्षों में वार्षिक वर्षा के विश्लेषण से राज्य में नकारात्मक उतार चढ़ाव का पता चलता है। अत्यधिक दोहन के कारण भूजल तेजी से घट रहा है। हरियाणा में वार्षिक भूजल निकासी इसके निकाले जाने योग्य भूजल संसाधनों का 137% है। 

जब हरित घोषणापत्र की चर्चा नूह जिले के गांव खोरी-खुर्द में हुई, तब वहाँ के लोगों ने बताया कि भिवाड़ी इंडस्ट्रीज एरिया के कचरे को लाकर अवैध रूप से संचालित कबाड़ गोदामों में रात को जलाए जा रहे है l हानिकारक रासायनिक पदार्थ से वन्यजीव जंतुओं, पर्यावरण और अरावरली को नुकसान पहुंच रहा है l ग्रामीणों के अनुसार इस इलाक़े में आंखो में जलन,गले में घुटन और अस्थमा के मरीजों की पुष्टि हुई है। ग्रामीणों के मुताबिक केई बार लिखित में प्रशासन को शिकायत दी गई है, शिकायतों के बाद कुछ कबाड़ गोदाम सिर्फ कागजों में बन्द हुए, धरातल पर नही। 

नीलम अहलूवालिया, पीपल फॉर अरावली संगठन की संस्थापक सदस्य ने कहा, “खोरी खुर्द गाँव के रहने वाले किसान चिंतित हैं कि पानी प्रदूषित होने से उनकी फसलें और पशुधन प्रभावित हैं. गाँव वालों की माँग है कि जहरीले कचरे की अवैध डंपिंग यहाँ बंद किए जाएं। यह माँग हरित घोषणापत्र – 2024 में डाली जाएंगी ताकि निवासियों की भलाई और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा हो सके”।

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