खेतों में फसल अवशेष न जलाएं किसान : उपायुक्त प्रशांत पंवार 

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सरकार द्वारा किसानों को पराली की गांठे बनाने पर दिया जा रहा है प्रति एकड़ 1 हजार रुपये का अनुदान
City24news/अनिल मोहनिया
नूंह | उपायुक्त प्रशांत पंवार ने बताया कि कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की ओर से फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर जिला के गांव-गांव में पहुंचकर किसानों को खेतों में फसल अवशेष न जलाने बारे जागरूक किया जा रहा है। उन्होंने किसानों से अपील की कि वे फसल अवशेषों का समुचित प्रबंधन करने के लिए आधुनिक कृषि यंत्रों का उपयोग करें, कहीं पर भी खेतों में फसल अवशेष न जलाएं।

उपायुक्त ने फसल अवशेषों में आग लगाने की घटनाओं का जिक्र करते कहा कि मानव स्वास्थ्य से जुड़े इस मुद्दे को लेकर अब सर्वोच्च न्यायालय, एन.जी.टी. और प्रदूषण नियंत्रण विभाग गम्भीर है और ऐसे मामलों में भारी जुर्माना और सजा का प्रावधान कर दिया है। अगर कोई फसल अवशेष जलाता पाया जाता है तो वह पर्यावरण के नुकसान की भरपाई देने के लिए उत्तरदायी होगा। 

उन्होंने बताया कि खेतों में आग लगाने वाले लोग नासमझी करते हैं, जिससे जमीन की सेहत और पर्यावरण दोनों बिगड़ते हैं, और भी कई तरह के नुकसान हैं। इन सब बातों को देखते सरकार फसल अवशेष प्रबंधन पर करोड़ो रूपये खर्च कर किसानों को ऐसी कृषि मशीनरी के साथ जोड़ रही है, जिसमें ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं और अवशेष मिट्टी में ही मिलकर जमीन में पोटाश और नाइट्रोजन की मात्रा को संतुलित बना देते हैं। बड़ी संख्या में कस्टम हायरिंग सेंटर या कृषि बैंक खोले जा चुके हैं, जहां से कोई भी किसान बहुत ही वाजिब किराए पर इन यंत्रो को लेकर अपने खेतों में प्रयोग कर सकता है। उन्होंने बताया कि प्रशासन ने एक ओर कदम बढ़ाकर पंचायतों को हैप्पी सीडर, एमबी प्लो, रोटावेटर और मल्चर जैसे कृषि यंत्र दिए हैं, जहां से कोई भी किसान जरूरत अनुसार पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर अपना टै्रक्टर लाकर नि:शुल्क रूप से खेत में ले जा सकता है। फसल अवशेष प्रबंधन से जुड़े कृषि यंत्रों पर सरकार द्वारा 50 प्रतिशत से लेकर 80 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है। उन्होंने यह भी बताया कि पराली की गांठे बनाने पर प्रति एकड़ 1 हजार रुपये का अनुदान दिया जा रहा है।

उपायुक्त ने फसल अवशेष न जलाने के उपायों के बारे में बताया कि पराली को मशीन से काटकर पशुओं का चारा बनाना, पराली को गत्ता मिल में बेचकर धन कमाना, पराली को कम्पोस्टिंग करके जैविक खाद बनाना तथा खुंदों को काटने या जलाने की बजाए जीरो टीलेज मशीनों द्वारा गेहूं की सीधी बिजाई करना इत्यादि शामिल हैं।

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