नगर निगम की लापरवाही से बेसहारा पशु दे रहे जान

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City24news/कविता गौड़
फरीदाबाद। नगर निगम की लापरवाही से बेसहारा पशु लोगों की जान के दुश्मन बन रहे हैं। कूड़े के अवैध डंपिंग पॉइंट और उनमें मुंह मारते आवारा पशुओं की वजह से लोग आए दिन दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं। स्वच्छता अभियान चलाने का दावा करने वाले नगर निगम की लापरवाही के कारण शहर भर में जगह जगह कूड़े के ढेर लगे हुए हैं। जिनमें आवारा पशु मुंह मारते हुए कभी अचानक सड़क पर दौड़ पड़ते हैं। जिससे अक्सर वाहन चालक खासकर दोपहिया वाहन चालक इनकी चपेट में आकर घायल हो जाते है। कई बार लोगों की जान भी चली जाती है। ताजा मामले में ग्रेटर फरीदाबाद की भारत कालोनी स्थित खेड़ी रोड पर एक बेसहारा सांड की टक्कर लगने से एक बाइक सवार रवि नामक युवक गंभीर रूप से घायल हो गया। जिसकी इलाज के दौरान अस्पताल में मौत हो गई। यह शहर में कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी बेसहारा पशुओं के कारण अनेक लोगों की जान जा चुकी है। लेकिन इसके बावजूद निगम द्वारा कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है।

दुर्घटनाओं का कारण बन रहे पशु

अक्सर आवारा पशुओं का झुंड बीच सडक पर इक्टठा हो जाता है। जिससे अक्सर जाम लगने की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। बीच सडक पर घूमने वाले इन पशुओं के कारण सबसे ज्यादा दोपहिया वाहन चालक घायल होते है। कई बार इन पशुओं को बचाने के चक्कर में कार और अन्य वाहन दुर्घटना कर बैठते हैं। दिन में तो वाहन चालक इन पशुओं को देख कर थोड़ा बहुत सम्भल भी जाते हैं। लेकिन रात के अंधेरे में इनकी वजह से वाहन चालकों की मुश्किलें ज्यादा बढ़ जाती है। रात होने पर बेसहारा गोवंश बीच सडक पर या सडक किनारे जहां जगह मिलती है, वहीं बैठ जाते हैं। जिससे दुर्घटना का खतरा और बढ़ जाता है। अंधेरे में दूर से यह आवारा पशु वाहन चालकों को नजर नहीं आते हैं। ऐसे में वाहन चालक इनसे टकरा कर दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं।

सड़कों पर रहते हैं हजारों गोवंश

शहर में करीब दस हजार बेसहारा गाय और सांड सड़कों पर घूमते नजर हैं। इनमें से करीब दस प्रतिशत गाय आवारा की श्रेणी में आती हैं। यह वह गाय होती है, जिनके मालिक दूध निकालने के बाद उन्हें चरने के लिए सड़कों पर छोड़ देते हैं। शहर के विभिन्न रिहायशी इलाकों में सैंकड़ों लोगों ने गाय पाली हुई है। इन लोगों के पास गाय को रखने के लिए जगह नहीं होती। पशु पालक इन गायों का दूध निकालने के बाद उन्हें सड़कों पर छोड़ देते हैं। सड़कों पर घूमने वाली अन्य शेष गाय बेसहारा की श्रेणी में आती हैं। इनमें वह गाय शामिल है, जो दूध देने के योग्य नहीं रह जाती या बीमार होती है। ऐसी गाय को लोग सडकों पर छोड़ देते हैं। सड़कों पर भारी संख्या में सांड भी घूमते हुए दिखाई देते हैं।

गौशालाओं में जगह की कमी

जिले की गोशालाओं में जरूरत के मुताबिक स्थान और गोवंश के लिए सुविधाओं का भारी अभाव है। गांव मवई में स्थित शहर की सबसे बड़ी गोपाल गोशाला में करीब 1200 गायों को रखने की व्यवस्था हैं। लेकिन यहां जगह का अभाव होने के बावजूद करीब दो हजार गोवंश को रखा गया है। ऊंचा गांव में पकड़ कर लाई जाने वाली गायों को रखने के लिए एक फाटक बनाया हुआ है। इस जगह पर करीब 200 गायों को रखने की व्यवस्था है। लेकिन यहां पर करीब 500 गायों को रखा गया है। इस फाटक को भी अब गोशाला का नाम दे दिया गया है। गांव फज्जूपुरा में एक गोशाला का निर्माण करवाया गया है। यहां पर गोवंश को रखना शुरू कर दिया है। लेकिन गोशालाओं में गायों को निगम का दस्ता नहीं बल्कि गोरक्षक पहुंचाते हैं। सरकार ने गदपुरी गांव में गोशाला बनाने के लिए जगह दी है। लेकिन वहां अभी निर्माण नहीं हुआ है।

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