आत्म शुद्धि के लिए तपस्या व साधना करना उत्तम तप धर्म : रजत जैन
City24news/अनिल मोहनिया
-*तप में तपाकर कर्म मल रहित करना ही उत्तम तप धर्म : रजत जैन*
-तप प्रत्येक प्राणी को धारण करना चाहिए :रजत जैन
नूंह | सांसारिक विषय भोगों की इच्छाओं से मुक्त होकर अनादि कर्म बंधन से सिद्ध स्वरूप निर्मल आत्मा को प्रकार के अनशनादि बारह प्रकार के तप में तपाकर कर्म मल रहित करना ही उत्तम तप है। जैन धर्म के 10 धर्मों में तप सातवा धर्म है। सर्वजातीय सेवा समिति के उपाध्यक्ष व समाजसेवी रजत जैन ने बताया की कर्मों क्षय करने के लिए तप करना आवश्यक है।तप का अर्थ है तपाना। आचार्यों ने इसको निरोधस्तप अर्थात इच्छाओं को रोकना (निरोध) तप है। रजत ने बताया कि मुनियों के द्वारा जिस स्थान पर तप किया जाता है व स्थान पूज्य हो जाता है, इस पवित्र तप को प्रत्येक प्राणी को धारण करना चाहिए।आत्म शुद्धि के लिए व इच्छाओं को रोकना निरोध करना उत्तम तप धर्म है।तप भेद के कुल 12,प्रकार होते है।जिनमे6,बहिरंग तप,6,अंतरंग तप । बहिरंग तप: अनशन, उनोदर,परिसंख्यान,रस परित्याग,विविक्त,शायनासन,और काय कलेश। अंतरंग तप: प्रायश्चित,विनय,स्वाध्याय,ध्यान ,वैयावृत्ति, और व्युत्सर्ग। तप की प्रधानता मुनिश्वरों के लिए होती है। रजत ने बताया की गृहस्थ भी अगर तप करता रहता है तो कष्ट आने पर उसे भय नहीं लगता है।आत्मशुद्धि के लिए तपस्या और साधना करना ही उत्तम तप धर्म है।