श्रीमद् भागवत महापुराण के सप्तम दिवस पर रुक्मणि विवाह सुदामा चरित्र काह हुआ वर्णन

City24news/सुमित गोयल
फरीदाबाद | श्री सियाराम हनुमान मंदिर ब्राह्मण वाडा के प्रांगण में श्रीमद् भागवत महापुराण के सप्तम दिवस कथा वाचिका सुश्री कृष्णा संध्या जी ने भक्तों को रुक्मणि विवाह सत्यभामा विवाह का चरित्र सुनाया। उन्होंने कहा कि सभी कहते हैं कि उन्होंने सभी गोपियों से शादी नहीं की बल्कि उन सभी को अपनाया था।उन्होंने कथा को आगे कहते हुए सुदामा चरित्र का वर्णन बताया कि मित्रता कैसे निभाई जाए यह भगवान श्री कृष्ण सुदामा जी से समझ सकते हैं । उन्होंने कहा कि सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर अपने बचपन के सखा सुदामा से मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे। उन्होंने कहा कि सुदामा ने द्वारिकाधीश के महल का पता पूछा तो लोग उनकी हालत देखकर उनकी हंसी उड़ाने लगे।जब सुदामा जी महल की ओर बढ़ने लगे तो द्वार पर द्वारपालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के मित्र हैं इस पर द्वारपाल महल में गए और प्रभु से कहा कि कोई उनसे मिलने आया है। अपना नाम सुदामा बता रहा है जैसे ही द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना प्रभु सुदामा सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे।कृष्णा जब अपने बाल सखा सुदामा से मिलने चले तो कही उनका पीताम्बर गिरा तो कही उनके गले का हार गिरा।कृष्ण ने सुदामा सखा को देखकर उसे अपने सीने से लगा लिया। सुदामा ने भी कन्हैया कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाया दोनों की ऐसी मित्रता देखकर सभा में बैठे सभी लोग अचंभित हो गए। कृष्ण सुदामा को अपने राज सिंहासन पर बैठाया। उन्हें कुबेर का धन देकर मालामाल कर दिया। जब जब भी भक्तों पर विपदा आ पड़ी है। प्रभु उनका तारण करने अवश्य आए हैं। कथा व्यास पीठाधीश्वर ने कहा कि जो भी भागवत कथा का श्रवण करता है उसका जीवन तर जाता है।