केंद्र और प्रदेश सरकार की ओर से फसल अवशेष प्रबंधन के लिए उठाए जा रहे सराहनीय कदम: उपायुक्त

– उपायुक्त ने किसानों से पूसा-44 की जगह धान की कम अवधि में तैयार होने वाली किस्मों को अपनाने का किया आह्वान।
– सीएक्यूएम की ओर से एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में की गई है धान की कम अवधि वाली किस्में उगाने की सिफारिश।
– किसानों को कम अवधि में तैयार होने वाली किस्मों को अपनाने के लिए करें जागरूक और प्रोत्साहित।
City24news/अनिल मोहनिया
नूंह | वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग के निर्देशों की अनुपालना में हरियाणा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की ओर से किसानों से पूसा-44 की जगह धान की कम अवधि में तैयार होने वाली किस्मों को अपनाने का आह्वान किया है ताकि धान की पराली को खुले में जलाने पर प्रभावी रूप से नियंत्रण किया जा सके। उपायुक्त विश्राम कुमार मीणा ने जानकारी देते हुए बताया कि केंद्र और प्रदेश सरकार की ओर से फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सराहनीय कदम उठाए जा रहे हैं। राज्य सरकार की ओर से फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सभी संभावित विकल्पों की खोज की गई है। इस दिशा में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में धान की पराली को खुले में जलाने पर प्रभावी नियंत्रण के लिए धान की कम अवधि वाली किस्मों को अपनाने की सिफारिश की गई है। सीएक्यूएम ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की मदद से एनसीआर क्षेत्रों के लिए कम अवधि में तैयार होने वाली चावल की किस्मों की सिफारिश की है। उन्होंने कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे आगामी धान बुवाई के मौसम में पूसा-44 की बजाए किसानों को कम अवधि में तैयार होने वाली चावल की किस्मों को अपनाने के लिए जागरूक और प्रोत्साहित करें।
उपायुक्त ने किसानों से आह्वान किया कि उन्हें धान की लंबी अवधि की किस्मों जैसे पूसा-44 की के बजाय कम अवधि की धान की किस्मों को अपनाना चाहिए। उन्होंने बताया कि जो किसान कम अवधि की धान की किस्मों को अपनाएगा उन किसानों की फसल जल्द पकेगी और खेत जल्द खाली हो जाएंगे। उन्होंने बताया कि कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने किसानों से धान की किस्म सीओ-51, डीआरआर-52 व डीआरआर-56, एचकेआर-48, एनपी-107-5, चंद्रा, पीआर-126, पूसा बासमती-1509, पूसा बासमती-1692 व पूसा बासमती-1847 अपनाने की सलाह दी है। उन्होंने बताया कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की माने तो किसानों को लंबी अवधि की धान की किस्मों जैसे पूसा-44 तथा अन्य हाइब्रिड किस्मों को छोडक़र उक्त कम अवधि की धान की किस्में लगा सकते हैं, जिनको पकने में लगभग 108-125 दिन दिन लगते हैं। इन किस्मों की कटाई जल्दी हो जाती है और खेत जल्दी खाली हो जाते है तथा अगली फसल के लिए खेत तैयार करने के लिए पर्याप्त समय रहता है।
*ये हैं धान की कम अवधि में पकने वाली फसलें : उपायुक्त*
उपायुक्त विश्राम कुमार मीणा ने बताया कि धान की किस्म सीओ-51 (108 दिन में), डीआरआर-52 व डीआरआर-56 (115 दिन में) एचकेआर-48 (116 दिन में), एनपी-107-5 (118 दिन में), चंद्रा (121 दिन में), पीआर-126 (123 दिन में), पूसा बासमती-1692 (115 दिन में), पूसा बासमती-1509 और पूसा बासमती-1847 (120 दिन में) पककर तैयार हो जाती है। उन्होंने किसानों से आह्वान किया कि वे बचे हुए फसल अवशेषों को आग लगाने की बजाए धान की उक्त किस्मों की बुआई अपने खेतों में करें। उन्होंने बताया कि धान की कम अवधि वाली, लेकिन बेहतर उपज देने वाली किस्मों को अपनाने से दीर्घकालिक और टिकाऊ परिणाम संभव होंगे, जो कटाई के बाद किसानों को लंबी अवधि प्रदान करेंगे। उन्होंने जिला की किसानों से आह्वान किया है कि वे आगामी धान बुवाई के मौसम में केवल लघु अवधि वाली किस्मों, अधिमानत: आईएआरआई द्वारा अनुशंसित चावल के बीजों का उपयोग करने की पहल करें।