बहन-भाई के स्नेह का प्रतीक है भैया दूज पर्व-ताराचंद

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– इस दिन यमुना नदी में स्नान करने पर भाई-बहन को मिलती है मुक्ति  
– ‘कायस्थ समाज’ के लोग करते हैं बहीखाते व देव चित्रगुप्त की पूजा
City24news/सुनील दीक्षित 

कनीना | कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को मनाये जाने वाले ‘भैया दूज’ के इस पर्व को “यम द्वितीया” के नाम से भी जाना जाता है। दीपावली पर्व के दूसरे दिन मनाये जाने वाले इस त्योहार पर मृत्यु के देवता यमराज की पूजा होती है। इस बारे में पंडित ताराचंद जोशी बुहाना ने बताया कि इस दिन बहन अपने भाई को घर आमंत्रित कर तिलक करती है। ऐसा माना जाता है कि जो भाई इस दिन यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से अपनी बहन का आतिथ्य स्वीकार करता है, तो उसे और उसकी बहन को यम का भय नही रहता। ये पर्व भाई के प्रति बहन के स्नेह का प्रतीक होता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों के लिए खुशहाली व उज्जवल भविष्य की कामना करती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार यमी (यमुना) अपने भाई यम से मिलने के लिए व्याकुल थी, जो आज ही के दिन यमदेव ने अपनी बहन यमी को दर्शन दिए थे। साथ ही यमराज ने अपनी बहन को वरदान दिया, कि इस दिन जो भाई बहन यमुना नदी में स्नान करेंगे, उन्हें मुक्ति मिल जाएगी। इसलिए इस दिन भाई और बहन का यमुना में नहाने का भी विशेष महत्व माना जाता है। इसके अलावा यमी ने अपने भाई से एक वचन भी लिया था कि जिस प्रकार यम उनके घर आये हैं, उसी प्रकार आज के दिन हर भाई अपनी बहन के पास जाए। वस्तुतः इस पर्व का मुख्य उद्देश्य भाई और बहन के बीच अटूट प्रेम और सद्भाव माना गया है।
इसके अलावा इस दिन कायस्थ समाज के लोग अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा करते हैं। कायस्थ लोग स्वर्ग में धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त का पूजन सामूहिक रूप से तस्वीरों और मूर्तियों के माध्यम से करते है, साथ ही वे इस दिन अपने सभी बही खातों की भी पूजा करते हैं। चित्रगुप्त ब्रह्मा के पुत्र है, ये पृथ्वीवासियों के पापों और पुण्यों का लेखा-जोखा रखते हैं। दोपहर के समय उनकी पूजा करना अधिक शुभ माना जाता है। इस दिन बेरी पूजन और गोधन कूटने की भी प्रथा है। जिसमे गोबर से मानव मूर्ति का निर्माण किया जाता है, और उसकी छाती पर ईट रख कर स्त्रियाँ उसे मुसली से तोडती हैं।
भैया दूज की ‘पौराणिक कथा’
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान सूर्य नारायण की पत्नी संज्ञा अपने पति सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण अपनी छाया मूर्ति का निर्माण करती है, और छाया को अपनी संतानों यमराज और यमी को सौंप कर चली जाती हैं। छाया को यमराज और यमी से कोई स्नेह नही था, किन्तु दोनों भाई बहनों में विशेष स्नेह था। बड़े होने पर भी यमी अपने भाई के घर जाती और उनका सुख दुःख पूछती, साथ ही वो अपने भाई यमराज से बार-बार अपने घर आने का निवदेन करती थी, किन्तु अपने कार्यो में व्यस्त होने की वजह से यमराज उनके निवेदन को टालते रहे। इस दिन भी यमुना ने यमराज को अपने घर भोजन का निमंत्रण दिया और उनसे वचन ले लिया कि वो अपने मित्रो के साथ इस बार जरुर आयेंगे। यमराज ने भी सोच विचार किया और देखा कि वो सबके प्राणों को हरते है, तो कोई भी उन्हें अपने पास बुलाना नही चाहता, किन्तु उनकी बहन बार-बार उनको सदभाव से बुला रही है, तो उनका ये धर्म बनता है, कि वो अपनी बहन के पास जायें। तब वो अपनी बहन के घर गये, यमुना का अपने भाई को देखकर खुशी का ठिकाना नही रहा। उसने स्नान करके स्वयं अपने हाथों से अपने भाई की पसंद के पकवान बनाएं और स्वयं ही उन्हें परोसा। अपनी बहन के आतिथ्य को देखकर यमराज भी बहुत प्रसन्न हुए, और उन्होंने यमुना से कोई वरदान मांगने के लिए कहा। इस पर यमुना ने बड़े ही प्यार से अपने भाई को कहा कि भाई। आप हर वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो, और मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई का सादर सत्कार करे, और उसका टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे। इस पर यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य आभूषण दिए और वापस यमलोक लौट गये। इसी दिन से भाई दूज के व्रत की परंपरा बन गई। इसलिए भाई दूज के दिन यमराज और यमुना का पूजन किया जाता है। इस दिन के पीछे एक कथा ये भी है, कि इससे पहले वाले दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था, और इस दिन वो अपनी बहन सुभद्रा के पास गये थे। तब सुभद्रा ने अपने भाई श्री कृष्ण का तिलक करके उनका स्वागत किया था, और उनके लिए उनकी पसंद के पकवान भी बनाए थे।

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