कभी ना खत्म होने वाला अक्षयपात्र

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City24News/नरवीर यादव
फरीदाबाद
| महाभारत में एक कथा आती है..जुए में अपना सबकुछ हारने के बाद पांडव वनवास काट रहे हैं..उसी दौरान वे सूर्य की उपासना करते हैं..सूर्य देव प्रसन्न होकर युधिष्ठिर को एक पात्र देते हैं..उस पात्र की विशेषता है कि उसमें रखा भोजन कभी खत्म ही नहीं होता…वह सदा भरा ही रहता है। अक्षय का अर्थ ही होता है, जिसका कभी क्षय ना हो, यानी जिसमें कभी कोई कमी ना हो..कहना न होगा कि इस्कॉन का अक्षय पात्र भी पांडवों के अक्षय पात्र की तरह हो गया है..भूखे, बेसहारा, गरीब, बेघर बुजुर्ग माताओं, आंगनबाड़ी और स्कूली बच्चों की भूख मिटाने का आज यह बड़ा सहारा बन गया है। साल 2000 में शुरू इस संकल्प ने चौथाई सदी की यात्रा पूरी कर ली है।
अक्षय पात्र सोलह राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों के करीब 24 लाख बच्चों को नियमित रूप से उनके स्कूलों में भोजन करा रहा है। साल 2001 में सर्वोच्च न्यायालय ने स्कूली बच्चों को मध्यान्ह भोजन योजना को लागू करने का आदेश दिया। देश की सर्वोच्च अदालत में दायर एक जनहित याचिका में कहा गया था कि खाद्य निगम के गोदामों में काफी मात्रा में अन्न सड़ जाता है। उस अन्न के जरिए मध्यान्ह भोजन योजना लागू की जा सकती है। सर्वोच्च न्यायालय को यह तर्क जंचा और उसके ही आदेश पर समूचे देश के स्कूलों में दोपहर में बना हुआ भोजन देना जरूरी कर दिया गया। इसके पहले केंद्र की नरसिंह राव सरकार ने 15 अगस्त 1995 को राष्ट्रीय पोषण योजना की चुने हुए ब्लॉकों में शुरूआत की, जिसके तहत स्कूली बच्चों को मध्यान्ह भोजन मुहैया कराना शुरू हुआ । बाद में इसके तहत बच्चों को मुफ्त चावल दिया जाने लगा। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद अब पका हुआ खाना देना अनिवार्य कर दिया गया। अब इसका नाम प्रधानमंत्री पोषण कार्यक्रम कर दिया गया है।
अक्षय पात्र फाउंडेशन की शुरुआत के पीछे अंतरराष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावनामृत संघ यानी इस्कॉन के संस्थापक स्वामी प्रभुपाद का भी एक संकल्प कार्य कर रहा है। स्वामी प्रभुपाद पश्चिम बंगाल के मायापुर में भगवान कृष्ण के भजन में लीन रहते थे। एक बार उन्होंने अपनी खिड़की से देखा, कूड़े में फेंके भोजन को लेकर कुत्ते और कुछ बच्चों में खींचतान चल रही थी। यह कारूणिक दृश्य देखकर प्रभुपाद परेशान हो गए। उन्होंने तब संकल्प लिया कि वे ऐसी व्यवस्था करेंगे, जिसकी वजह से उनके आसपास कोई भूखा रहने को मजबूर ना हो सके। इस्कॉन के मंदिरों में यह व्यवस्था अहर्निश अब तक जारी है। उनके यहां भोजन के वक्त कोई भूखा नहीं रहता।

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