प्रशासनिक तंत्र की तय हो जवाबदेही…

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City24News/नरवीर यादव
फरीदाबाद
| गोवा में साल के आखिरी दिनों और अगले साल की छुट्टियां मनाने का मन बना चुके सैलानियों में इस बार हिचक हो सकती है। वजह है, यहां के मशहूर नाइट क्लब ’बर्क बाय रोमियो लेन’ में लगी आग, जिसमें पांच सैलानी समेत पच्चीस लोगों की दर्दनाक मौत हो गई है।
दुर्घटनाएं कह कर नहीं आतीं, लेकिन उनकी रोकथाम की मुकम्मल तैयारी से शायद ही किसी को इनकार हो। लेकिन समंदर के किनारे से छनकर आती रोशनियों के बीच स्थित गोवा के इस नाइट क्लब में लगी आग और उसमें गई निर्दोष जान ने सबसे बड़ा सवाल उस प्रशासनिक तंत्र पर लगाया है, जिस पर इस हादसे की रोकथाम की जिम्मेदारी थी। बताया जा रहा है कि अनधिकृत ढंग से इस नाइट क्लब का निर्माण किया गया था। इस अनधिकृत निर्माण को तोड़ने के लिए गोवा की संबंधित पंचायत ने निर्देश भी दे रखा है। आग लगने की दशा में उसके रोकथाम और बचाव को लेकर इस नाइट क्लब में कोई मुकम्मल इंतजाम नहीं था। इतना ही नहीं, यह क्लब बेहद संकरी जगह पर है, जहां आसानी से जाना संभव नहीं है।
भारत में एक चलन स्वीकार कर लिया गया है। नियमावलियां तो खूब बनाई गई हैं। लेकिन वे सिर्फ दस्तावेजों के लिए हैं। जिन्हें इन नियमावलियों को लागू करने की जिम्मेदारी है, जिन पर इन नियमावलियों को तोड़ने वालों को उचित कानूनी प्रक्रिया के तहत दंडित करने-कराने की जवाबदेही है, अक्सर वे इससे आंखें मूंद लेते हैं। कई बार नियम तोड़ने वालों से संबंध पलकों को मोड़ने का जरिया बनते हैं तो कई बार रिश्वत की रकम का बोझ पलकों को झुकने के लिए मजूबूर कर देता है। भारत के प्रशासनिक तंत्र का बड़ा हिस्सा इसी तरह की मानसिकता में काम करता है। वह दुर्घटनाओं और हादसों का इंतजार करता है। वह तभी जागता है, जब हादसे हो जाते हैं, उनमें मासूम जानें चली जाती हैं। तब उन्हें नियमों की तेजी से याद आने लगती है। प्रशासनिक तंत्र की बंद आंखे तब ऐसे खुल जाती हैं, जैसे भगवान शिव का तीसरा नेत्र खुलता है। तब उसे अनधिकृत निर्माण भी दिखने लगता है, तब उसे कार्रवाई की भी सूझने लगती है। कार्रवाई होती भी है। गोवा के ‘बर्क बाय रोमियो लेन’ क्लब के मालिकों पर भी होगी, लेकिन इसका असर कितनी देर तक रहेगा, कहना मुश्किल है। क्योंकि वक्त बीतते-बीतते कार्रवाई में ढिलाई भी शुरू हो सकती है और अगर किसी सामाजिक संस्था, किसी राजनीतिक व्यवस्था या किसी न्यायिक व्यवस्था की निगाह उस पर नहीं पड़ी तो कार्रवाई धीरे-धीरे टलती चली जाएगी, उसकी तासीर ठंडी होती जाएगी और फिर हो सकता है कि नियमों को तोड़ने वाले किसी और जगह नियम तोड़कर ऐसा ही किसी और नाम से नाइट क्लब चलाने लगें।
भारत में अंग्रेजों ने प्रशासनिक ढांचा अपने राजकाज को चलाने के लिए बनाया था। उसे लंबी अवधि तक बनाए रखने के लिए बनाया था। देखते ही देखते यह तंत्र स्टील फ्रेम में तब्दील होता चला गया। वैसे भी जर्मन दार्शनिक मैक्स वेबर इसे स्टील फ्रेम ही बताते हैं। संविधान सभा ने भारत के भावी प्रशासनिक तंत्र की रूपरेखा को लेकर चर्चा की थी। उसने इस पर गंभीर विमर्श किया था। संविधान सभा में प्रशासनिक तंत्र पर व्यापक चर्चा हुई, जिसका उद्देश्य एक ऐसा ढांचा तैयार करना था जो स्वतंत्र भारत के लिए प्रभावी, निष्पक्ष और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति जवाबदेह हो । संविधान सभा के सदस्यों को संदेह था कि भारत की भावी नौकरशाही भारतीय मूल्यों और भारतीय व्यवस्था के अनुरूप नहीं हो पाएगी। इसी लिए संविधान सभा में तत्कालीन सदस्यों ने नौकरशाही की भूमिका पर ना सिर्फ व्यापक चर्चा की, बल्कि उसकी राजनीतिक तटस्थता, कार्यक्षमता, जवाबदेही और नए स्वतंत्र राष्ट्र के लोकतांत्रिक ढांचे में उसकी स्थिति सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया । इन बहसों का उद्देश्य एक ऐसी सिविल सेवा प्रणाली स्थापित करना रहा, जो संविधान के सिद्धांतों के प्रति निष्ठावान हो और लोगों की सेवा के लिए प्रतिबद्ध हो।

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