नूंह के सामान्य बस अड्डे पर सर्द रात में रियलिटी चेक , रेन बसेरा की सुविधा अधूरी, नवजात शिशु संग परिवार ठंड में मजबूर

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City24News/अनिल मोहनिया
नूंह | कड़ाके की ठंड का मौसम जारी है, लेकिन जरूरतमंदों के लिए बनाई गई रेन बसेरा व्यवस्था ज़मीनी स्तर पर कितनी कारगर है इसका अंदाजा नूंह के सामान्य बस अड्डे पर किए गए रियलिटी चेक से लगाया जा सकता है। देर रात जब बस अड्डे की स्थिति का जायजा लिया गया तो वहां राजस्थान से आया एक परिवार फर्श पर ही अपने सामान के साथ लेटा मिला। सबसे चिंताजनक बात यह रही कि इस परिवार के साथ तीन दिन का एक नवजात शिशु भी मौजूद था, जो बिना किसी गर्माहट के ठंडे फर्श पर मां की गोद में पड़ा था।

बस न मिलने पर ठहरना पड़ा बस अड्डे पर

परिवार के मुखिया प्रताप से बातचीत में उन्होंने बताया कि वे राजस्थान से दिल्ली जाने के लिए निकले थे, लेकिन समय पर बस न मिलने के कारण उन्हें रात बस अड्डे पर ही गुजारनी पड़ रही है। परिवार के मुखिया ने बताया कि सुबह 3 बजे दिल्ली के लिए बस जाती है, और उसी के इंतजार में वे यहां ठहर गए हैं।

तीन दिन के नवजात की हालत पर चिंता

ठंड के बीच कंबल और उचित व्यवस्था न होने के कारण नवजात शिशु की स्थिति बेहद दयनीय नजर आई। जन्म के कुछ ही दिन बाद किसी भी बच्चे के लिए इतनी ठंड में खुले में रहना जोखिम भरा होता है। लेकिन मजबूरी के चलते परिवार वहीं फर्श पर सिमटा बैठा मिला।

चौकीदार ने कहा—रेन बसेरा बताया था, पर परिवार यहीं लेट गया

जब इस बारे में बस अड्डे पर मौजूद चौकीदार जोगिंदर से बात की गई तो उन्होंने पुष्टि करते हुए कहा कि परिवार राजस्थान से आया है और दिल्ली जाने की प्रतीक्षा कर रहा है। रेन बसेरा की सुविधा के बारे में पूछे जाने पर चौकीदार ने कहा कि वह परिवार को इसकी जानकारी दे चुका था, लेकिन वे यहीं बस अड्डे पर ही लेट गए।

यह घटना कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े करती है—

क्या रेन बसेरा की सुविधा जरूरतमंदों तक समय पर पहुंच भी रही है?

रात के समय गश्त दल या जिम्मेदार विभाग ऐसी स्थिति पर ध्यान क्यों नहीं देता?

नवजात शिशु जैसे संवेदनशील मामलों में क्या तत्काल राहत देने की कोई व्यवस्था है?

कड़ाके की ठंड में रैन बसेरा का उद्देश्य ही जरूरतमंदों को सुरक्षित आश्रय देना है। लेकिन बस अड्डे पर ठंड से ठिठुरते इस परिवार की स्थिति स्पष्ट करती है कि जमीनी स्तर पर अभी भी बहुत कुछ सुधार की जरूरत है। प्रशासन को चाहिए कि रेन बसेरा व्यवस्था को और प्रभावी बनाया जाए, ताकि कोई भी परिवार—खासकर नवजात बच्चों के साथ—ठंड में फर्श पर रात बिताने को मजबूर न हो।

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