अरावली संरक्षण के लिए प्रधानमंत्री के नाम सौंपा जाएगा ज्ञापन

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-: सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत नई परिभाषा अरावली संरक्षण के मूल उद्देश्य के विपरीत है।
-: 100 मीटर ऊंचाई वाले प्रावधान को समाप्त कराने की जाएगी मांग। 
City24News/सुनील दीक्षित

नूंह | अरावली पर्वतमाला के संरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के खिलाफ प्रदेशभर में पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों में नाराजगी देखने को मिल रही है। 20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पर्वतमाला की परिभाषा को लेकर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओइएफसीसी) के नेतृत्व वाली समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया है। नई परिभाषा के अनुसार स्थानीय भू-आकृति से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली भूमि को ही अरावली पहाड़ियां माना जाएगा।

इस निर्णय को अरावली संरक्षण के लिए घातक बताते हुए सामाजिक संगठन एवं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में सक्रिय मिशन सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट ने केंद्र सरकार से गंभीरता से पुनर्विचार की मांग की है। इसी क्रम में ट्रस्ट की ओर से 22 दिसंबर 2025 को दोपहर के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक ज्ञापन एसडीएम के माध्यम से सौंपा जाएगा।

मिशन सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष अख्तर अलवी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत नई परिभाषा अरावली संरक्षण के मूल उद्देश्य के विपरीत है। उन्होंने कहा कि इस फैसले के चलते अरावली क्षेत्र का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा कानूनी संरक्षण से बाहर हो गया है, जो अत्यंत चिंताजनक है। यह निर्णय वर्ष 1992 की अरावली अधिसूचना तथा एनसीआर प्लान-2021 द्वारा प्रदान किए गए संरक्षण को भी कमजोर करता है।

अख्तर अलवी ने कहा कि अरावली पर्वतमाला केवल पहाड़ों का समूह नहीं, बल्कि यह जल, जंगल, जमीन और पर्यावरण संतुलन की जीवनरेखा है। यदि अरावली संरक्षण से छेड़छाड़ की गई तो इसके गंभीर दुष्परिणाम सामने आएंगे। इससे भूजल स्तर में गिरावट, तापमान में वृद्धि और पर्यावरणीय असंतुलन जैसी समस्याएं और गहरी होंगी। उन्होंने मांग की कि केंद्र सरकार अरावली संरक्षण के हितों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से रखे और 100 मीटर ऊंचाई वाले प्रावधान को समाप्त कराते हुए अरावली को पूर्ण कानूनी संरक्षण प्रदान करे।

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