अरावली संरक्षण को लेकर प्रधानमंत्री के नाम सौंपा गया ज्ञापन, पर्यावरणविदों व सामाजिक संगठनों ने जताई कड़ी नाराजगी

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– पर्यावरणविदों ने कहा इस नई परिभाषा से अरावली का लगभग 90 प्रतिशत क्षेत्र कानूनी संरक्षण से हो जाएगा बाहर, जिससे पर्यावरणीय संतुलन को होगा गंभीर खतरा उत्पन्न।
City24News/अनिल मोहनिया

नूंह | अरावली पर्वतमाला के संरक्षण को लेकर मिशन सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट तथा विभिन्न सामाजिक व पर्यावरण संगठनों के प्रतिनिधियों ने सोमवार को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम एक ज्ञापन एसडीएम लक्ष्मीनारायण को सौंपा। यह ज्ञापन नवाब शमशुदीन स्टेडियम से शुरू हुए शांतिपूर्ण मार्च के बाद लघु सचिवालय परिसर पहुंचकर सौंपा गया। मार्च के दौरान पर्यावरण संरक्षण से जुड़े नारे लगाए गए और अरावली को बचाने की मांग उठाई गई।

यह ज्ञापन 20 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली पर्वतमाला की परिभाषा को लेकर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओइएफसीसी) के नेतृत्व वाली समिति की सिफारिशों को स्वीकार किए जाने के विरोध में सौंपा गया। नई परिभाषा के अनुसार स्थानीय भू-आकृति से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली भूमि को ही अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा माना जाएगा। पर्यावरणविदों का कहना है कि इस नई परिभाषा से अरावली का लगभग 90 प्रतिशत क्षेत्र कानूनी संरक्षण से बाहर हो जाएगा, जिससे पर्यावरणीय संतुलन को गंभीर खतरा उत्पन्न होगा।

मीडिया से बातचीत करते हुए मिशन सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष अख्तर अलवी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार की गई यह सिफारिशें अरावली संरक्षण के हित में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि यह निर्णय वर्ष 1992 की अरावली अधिसूचना और एनसीआर प्लान 2021 के तहत दिए गए संरक्षण को कमजोर करता है। अरावली पर्वतमाला उत्तर भारत के लिए जल, जमीन, जंगल और जैव विविधता की रीढ़ है। यदि इसके संरक्षण से छेड़छाड़ की गई तो इसके दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ियों को भुगतने पड़ेंगे।

पर्यावरणविद फजरुदीन बेसर ने कहा कि अरावली केवल पहाड़ों की श्रृंखला नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र के पर्यावरणीय संतुलन की जीवन रेखा है। नई परिभाषा से खनन, निर्माण और औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन होगा। उन्होंने यह भी बताया कि अरावली संरक्षण को लेकर जनजागरूकता फैलाने और सरकार का ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से 25 दिसंबर गुरुवार को शहर के अंबेडकर चौक पर एक सांकेतिक धरना दिया जाएगा।

जल बिरादरी के अध्यक्ष हाजी इब्राहिम ने कहा कि अरावली पर्वतमाला सदियों से इस क्षेत्र की जल व्यवस्था को संतुलित बनाए हुए है। अरावली के कारण वर्षा जल का प्राकृतिक संचयन होता है और भूजल स्तर बना रहता है। यदि अरावली का संरक्षण कमजोर किया गया तो न केवल कुएं और ट्यूबवेल सूख जाएंगे, बल्कि किसानों और आम नागरिकों को पीने के पानी के लिए भी संघर्ष करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि जल संकट केवल भविष्य की समस्या नहीं, बल्कि इसके संकेत अभी से दिखाई देने लगे हैं।

डॉ. अशफाक आलम ने कहा कि अरावली का संरक्षण सीधे तौर पर जनस्वास्थ्य से जुड़ा हुआ विषय है। अरावली के जंगल व पहाड़ क्षेत्र को ठंडक प्रदान करते हैं और प्रदूषण को रोकने में सहायक हैं। यदि अरावली क्षेत्र में अंधाधुंध निर्माण और खनन को अनुमति दी गई तो तापमान में लगातार वृद्धि होगी, वायु प्रदूषण बढ़ेगा और इसके कारण दमा, हृदय रोग तथा अन्य गंभीर बीमारियों में इजाफा होगा। उन्होंने कहा कि पर्यावरणीय असंतुलन का सबसे अधिक असर गरीब और ग्रामीण आबादी पर पड़ेगा।

सामाजिक कार्यकर्ता आरिफ खान बघोला ने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह इस निर्णय पर पुनर्विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अरावली संरक्षण के पक्ष में मजबूती से अपना पक्ष रखे और 100 मीटर ऊंचाई से संबंधित प्रावधान को समाप्त करवाए। सभी वक्ताओं ने एक स्वर में केंद्र सरकार से मांग की कि अरावली पर्वतमाला के संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए और इसके प्राकृतिक स्वरूप, जैव विविधता तथा जल स्रोतों को बचाने के लिए ठोस और प्रभावी कदम उठाए जाएं। इस मौके पर इस्माइल प्रधान, रिजवान बिलाकपुर, किल्ली पहलवान बीवां, यूनुस नावली, ओमप्रकाश भटेजा, भूषण भटेजा, शमीम खान, सोनू सैन, महेश कुमार शर्मा, जफरुद्दीन गूमल, बिलाल अहमद, डालचंद नहलिया आदि उपस्थित रहे।

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