जाहरवीर गोगा की, राजस्थान के ददरेवा में लगता है विशाल मेला

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हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात, राजस्थान व पश्चिम बंगाल से पंहुचते हैं भक्तजन
City24news/सुनील दीक्षित
कनीना | जाहरवीर गोगा की कहानी बहुत रोचक है, मान्यता है कि उनके धाम ददरेवा,नोहर-भादरा पर जाने से सभी कष्ट दूर होते हैं ओर मनोकामना पूर्ण होती है। गोगा नवमी के अवसर पर प्रति वर्ष भाद्धों मास में लगने वाले विशाल मेले में हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात, राजस्थान, पश्चिम बंगाल तथा मध्यप्रदेश से श्रधालु आते हैं। इस वर्ष ये मेला 27 अगस्त को आयोजित होगा।
इतिहास बताता है कि करीब 900 वर्ष पूर्व ददरेवा,राजस्थान में राजा उमराव सिंह राज करते थे उनके दो पुत्र थे, बड़े का नाम नेवर व छोटे का नाम जेवर था। नेवर दोदाखेड़ी नामक रियासत का राजा था तथा जेवर ददरेवा में राज करते थे। नेवर की पत्नी का नाम काछल व जेवर की पत्नी का नाम बाछल था। जो दोनों सगी बहनें थी। लम्बा अरसा गुजरने के बाद भी उन्हें कोई संतान नहीं हुई। संतान प्राप्ति के लिए राजा पंडितों के कहने पर सो यज्ञ करवाते हैं। लेकिन इच्छा पूरी नहीं हुई। फिर नो लाख पौधों से युक्त, एक नोलखा बाग लगवाते हैं तथा उसमें मंदिर, कुंए, तालाब व बावड़ी बनवाते हैं। एक दिन राजा रानी जब बाग देखने जाते हैं तो बाग सूख जाता है, कुंए, तालाब, बावड़ी सब सूख जाते हैं। ऐसा देखकर राजा उदास रहने लगते हैं। एक दिन राजा दरबार से महलों में आ रहे थे तो मार्ग में एक औरत मिलती है जो राजा का चेहरा न देखे मुंह फेर कर जा रही थी इस घटना पर राजा ने औरत से पूछा तो उसने कहा कि महाराज आपको कोई संतान नहीं है यदि मैं आपका चेहरा देख लूं तो मुझे आज का खाना नसीब नहीं होगा। राजा बड़े दुखी हुए ओर स्त्री के घर खाना भिजवाने की बात कहकर महलों में आ गए।
राजा महलों में बड़े दुखी होकर बिस्तर पर गिर पड़े। तो उदास देखकर महारानी बाछल ने उदासी का कारण जानना चाहा। राजा जेवर ने पूरी घटना रानी को बताई। रानी ने राजा को दूसरी शादी करवाने की सलाह दी। जिस पर राजा सहमत नहीं हुए। राजा ने अगले दिन वन में जाकर तप करने का निश्चय किया। राजा जेवर के रानी बाछल को राजपाट सौंपकर जंगल में तप करने निकल गए। ईधर बाग में गुरू गोरखनाथ 1400 शिष्यों के साथ बाग में साथ आ पंहुचते हैं। उनके पद रखते ही नोलखा बाग अचानक हराभरा हो जाता है। कुंए बावड़ी व तालाब में पानी आ जाता है। बाग का माली दौडकर यह संदेश रानी बाछल को देता है जिससे उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता।
गुरू गोरख नाथ बाग में तपस्या करने बैठ जाते हैं रानी बाछल भी बाग में पंहुचकर साधु संतो की सेवा में जुट जाती है। एक दिन गुरू गोरख नाथ ने रानी बाछल से उनके दुखी रहने का कारण पूछा तो, बाछल ने कहा कि गुरूजी मुझे पुत्र प्राप्ति का वरदान दो। गोरखनाथ ने कहा कहा कि कल सुबह 4 बजे हम यहां से प्रस्थान करंगें इस अवसर पर तुम यंहा पर आकर पुत्र प्राप्ति का आर्शिवाद ले लेना। इस बात की जानकारी बड़ी रानी काछल को लगी तो उसने अपनी ननद के हाथों बाछल के वो कपड़े मंगवा लिए जिन्हें पहनकर बाछल गुरू गोरख नाथ की सेवा के लिए गई थी। काछल ने मध्य रात्री को ही गुरू गोरख नाथ के डेरे में जाकर पुत्र प्राप्ति का वर मांग लिया। गुरू ने कहा कि  पुत्री तुम तो आधी रात को ही यहां पर पंहुच गई। तो काछल ने कहा कि गुरू जी खुशी-खुशी नींद नहीं आई। गुरू गोरख नाथ ने दो जो के दाने देते हुए कहा कि घर जाकर इन्हें खा लेना दो पुत्र होगें।
सुबह के 4 बजे तो रानी बाछल बाग में पंहुची, गुरू गोरखनाथ वहां से उठकर चल पड़े थे। रानी पीछे से आवाज लगाती पंहुची। अपने कहे अनुसार वर देने की मांग की। यह सुन गुरू गोरखनाथ का पारा सातवें आसमान पर पंहुच गया। ओर कहा कि पुत्री दो पुत्रों के आर्शिवाद से भी आपको संतुष्टि नहीं हुई। बाछल ने कहा कि मैं तो आपके कहे अनुसार 4 बजे आपके पास आई हूं। गुरूजी के कहने पर बाछल ने काछल के वरदान को भी अभिशाप में न बदली करने की अर्ज की। गुरू गोरखनाथ ने बाछल को गूगल देते हुए कि इसे घोलकर पी लेना महाबली वीर पुत्र की प्राप्ति होगी। आपके उदर से पैदा हुआ पुत्र काछल के जौ के दानों से उत्पन्न दो पुत्रों अर्जन व सुर्जन को मारेगा। वाछल ने महलों में आकर गूगल को घोलकर एक गिलास स्वयं पी लिया, एक कसोरा सत्यवती ब्राह्मणी को,एक कटोरा जमादारनी सेविका को तथा घोड़ी के दाने पर छिडक कर उसे खिला दिया। गुरूजी की कृपा से चारों गर्भवती हो जाती हैं। कुछ दिन बाद वाछल के गर्भवती होने का समाचार सारे शहर में फैल जाता है। एक दिन बांदी बाछल के ससुर के पास में जाती है और बाछल के गर्भवती होने का संदेश देती है। तो राजा क्रोध से लाल-पीले हो जाते हैं। कहते हैं मेरा पुत्र जेवर तो वन में तप करने गया है तथा रानी गर्भवती है। बदचलन होने का आरोप लगा उसे घर से निकाल गाड़ीवान को बुला उसके पीहरसिरसापट्टम के लिए रवाना कर देते हैं। मार्ग में प्रतीक नाग उसे डसने का प्रयास करता है। किंतु गाड़ी के नीचे आने से वह कुचला जाता है ओर अंत में वह बैल को काट लेता है। बैल मर जाता है। गाड़ीवान बाछल को अकेली छोडकर दौड़ जाता है। बाछल रोने लगती है तो मां की पीड़ा सुनकर उसके गर्भ में पल रहे गोगा ने कहा कि आपकी चोटी के दो बाल तोडकर बैल के सींग पर बांध दो। बैल जीवित हो जायेगा। बाछल ने ऐसा ही किया और गाड़ी में बैठकर अकेली ही सिरसापट्टम पंहुच गई। रहते-सहते 12 साल का अरसा बीत गया। एक दिन रात को गोगा जी माता बाछल के सपने में दिखाई दिए। ओर कहा कि मां तुम भी परेशान हो मैं भी परेशान हंू। मां ने कहा बेटा मैं तो आपकी वजह से ही परेशान हूं। तुम्हारा जन्म लेने का समय कब का बीत गया। गोगा ने कहा कि मां मैं नाना के घर जन्म नहीं लूंगा। चाहे कितना ही समय व्यतीत हो जाए। मैं ददरेवा में ही जन्म लूंगा। इस पर मां ने कहा कि बेटा ऐसा चाहते हो तो तुम अपने पिता से जाकर कहो कि वो मुझे यहां से ददरेवा लेकर जाए। मैं अकेली वहां नहीं जा सकती। बेटे ने कहा ऐसा ही होगा मां।
ईधर कुछ समय पहले ही राजा जेवर भी तप करके घर लौट आए थे। राजा को दरबारी ने ही बता दिया था कि रानी बाछल को गर्भवती होने पर उसे घर से निकाल दिया है। जेवर लोकलाज के भय से चुप रहे। एक रात गोगाजी उनके सपने में आता है और कहता है पिता जी आप जब तक मेरी माता को यहां पर नहीं लेकर आओगे तब तक तुम ऐसे ही तड़पते रहोगे। इस कार्य में और देरी हुई तो मैं ददरेवा की ईंट से ईंट भिड़ा दूंगा। स्वपन में बेटे का यह संदेश सुन सुबह उठते ही राजा ने प्रभावाड़ी से गाड़ी मंगवा सिरसापट्टम पंहुच जाते हैं। रानी बाछल को घर लेकर आते हैं। कुछ दिन बाद बाछल के गर्भ से गोगा ने जन्म लिया। काछल ने दो पुत्रों अर्जन व सुर्जन को जन्म दिया। सत्यवती ब्राह्मणी की कोख से होरासिंह व नाहर सिंह पाडें ने जन्म लिया। नीली घेड़ी से नीला बछेरा तथा जमादारनी से लालचंद नामका लडका उत्पन्न हुआ। मोसी की पत्नी से हज्जु पैदा हुआ। ईधर एक युद्ध में नेवर मारे गए। काछल भी अपने दोनों पुत्रों उर्जन व सुर्जन को बाछल के हाथों सौंप कर स्वर्ग सिधार जाती है। उर्जन-सुर्जन का पालन भी रानी बाछल ही करती थी। अपने एक स्तन का दूध उर्जन-सुर्जन को पिलाती तो दूसरे का दूध गोगा को पिलाती। उनके बड़े होने के साथ ही उर्जन-सुर्जन व गोगा में गतिरोध बढने लगा। उसके बाद एक युद्ध में राजा जेवर सिंह भी मारे गए। राजकाज का कार्य रानी बाछल ही चलाने लगी। गोगा की शादी रानी श्रीयल से कर दी गई। एक दिन प्रतीक नाग ने रानी श्रीयल को डस लिया। गोगा ने गुरू गोरख नाथ का स्मरण कर एक तेल का कढाव चढा स्मरण किया तो सभी नाग उसमें आकर गिर भस्म होने लगे। प्रतीक नाग ने आकर रानी श्रीयल का विष सींच पुनरू जीवित करने की शर्त रख गोगा से माफी मांगी।
रानी श्रीयल महलों में आ पंहुची। ईधर एक दिन अफगान के दूत ने राजा गोगा के पास पंहुचकर संदेश दिया कि वह युद्ध के लिए तैयार हो जाए, उनकी सेनाओं ने बागड़ देश को चारों और से घेर लिया है। गोगा ने इस युद्ध में वीरता का परिचय दिया और कुछ ही समय में अफगान सेना का संहार कर राजा को बंदी बना लिया। अफगान के राजा ने गोगा से प्राणों की बख्शीश मांगते हुए कहा कि हम लड़ाई नहीं करना चाहते थे लेकिन अर्जुन-सुर्जन के कहने पर ये सब करना पड़ा। राजा गोगा ने उसे बख्शीश दे दी। महलों में आकर उर्जन-सुर्जन को देश के गद्दार कहते हुए ललकारा। गोगा ने दोनों भाईयों का तलवार से वध कर दिया। माता बाछल ने इसका विरोध-क्रोध करते हुए गोगा को घर से निकले जाने का तथा कभी भी मुंह नहीं दिखाने की करूणानंदन चीख पुकारी। गोगा ने ऐसा ही किया। गोगा के वन में चले जाने से ईधर श्रीयल का मन दुहाग महल में नहीं लग रहा था वहीं वन में रहकर गोगा भी विरह वेदना से पीडि़त हो जाता है। अब तो गोगा रात को नीले घोड़े पर सवार होकर अपनी पत्नी श्रीयल के पास चला आता है तथा भौर होने पर चला जाता है। हरियाली तीज पर माता बाछल दासियों से रानी श्रीयल को बागों में झूला झुलाने को कहती है तो श्रीयल ने श्रंगार कर झूले का आंनद लिया। दासियों ने माता बाछल से कहा कि रानी श्रीयल का पति गोगा यहां पर न होते हुए वह श्रंगार किए हुए है। माता बाछल क्रोध से लाल हो गई ओर श्रीयल पर कुलटा, बदचलन होने का आरोप लगा उसे भी घर से बाहर जाने का फरमान किया तो श्रीयल ने बाछल से विनती की, कि माता जी रात को आपका पुत्र गोगा मेरे पास आता है तथा भौर होने पर घोड़े पर सवार होकर चला जाता है। माता बाछल ने रानी श्रीयल से कहा कि रात को गोगा आए तो मुझे दिखाना। रानी श्रीयल ने कहा ठीक है। अगले दिन गोगा भौर होने पर जब जाने लगा तो रानी श्रीयल ने अपनी माता बाछल से गोगा को देखने को कहा। इस बात का पता गोगा को लगा तो उसने अपना नीला घोड़ा दौड़ा दिया। पीछे से माता बाछल व रानी श्रीयल, गोगा को आवाज देकर पीछा करती हैं। लेकिन गोगा रानी बाछल के कहे हुए वचनों पर अडिग था। वह अपनी माता को मुंह नहीं दिखाना चाहता था। जब ये जान लिया कि माता बाछल उनका पीछा नहीं छोड़ेगी तो उन्होंने गुरू गोरखनाथ का स्मरण कर धरती में समा जाने की फरियाद की। गुरू गोरखनाथ की कृपा से जमींन फट गई ओर गोगाजी नीले घोड़े सहित उसमें समा गए। जिस दिन गोगा जमींन में समाए उस दिन भाद्धो मास की नवमी तिथि थी। आज यह धार्मिक स्थान राजस्थान में अपना विशेष आर्क षण रखता है। यहां पर पूर भाद्धो माह में विशाल मेला लगता है। जिसमें दूर-दूर से भक्तजन आकर मन्नतें मांगते हैं। रेल प्रशासन द्वारा 20 अगस्त से रेवाडी जंक्सन से महेंद्रगढ-सादुलपुर के रास्ते दो जोडी मेला स्पेशल ट्रेनों का संचालन किया है। जिसमें पूर्व दिशा से आने वाले श्रधालुओं को राहत मिली है।

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