आर्य समाज मंदिर नूंह में आर्य समाज स्थापना दिवस पर बड़ा यज्ञ किया गया
City24news/अनिल मोहनियां
नूंह|
आर्य समाज मंदिर नूंह में आर्य समाज स्थापना दिवस पर बड़ा यज्ञ किया गया जिसमें आर्य समाज की स्थापना महर्षि दयानंद सरस्वती ने मुंबई चैत्र शुक्ल पंचमी को सन् 1875 को हुई। आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य शारीरिक आत्मिक सामाजिक उन्नति करना माना गया है संसार का उपकार करना आर्य समाज का कार्य है। इस अवसर पर आर्य समाज की ओर से आचार्य राजेश को अच्छे कार्य करने के लिए सम्मानित भी किया गया। आचार्य राजेश ने कहा आर्य समाज दुनिया की सबसे पुरानी संस्था है जो समय-समय पर समाज को जागृति के लिए काम करती है नारी शिक्षा, वेद पढ़ने का सभी को अधिकार ,धार्मिक पाखंड, अंधविश्वास नशाखोरी, भ्रष्टाचार, जातिवाद, सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आर्य समाज ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है देश को आजाद करने में और आजादी को दिलाने में आर्य समाज की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है आर्य समाज धर्म- पंथ- संप्रदाय और मजहब से दूर रहकर मानव बनो का संदेश देता है। महर्षि दयानंद संसार पर सबसे बड़ा उपकार यह किया है वेदों को लाकर के भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए पुनर्जागरण का काम किया है। आर्य समाज के बारे में लोग विभिन्न धारणाएं रखते हैं कुछ लोग कहते हैं राम और कृष्ण और देवताओं को यह लोग नहीं मानते वास्तव में आर्य समाज मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र को योगीराज श्री कृष्ण को अपना आदर्श मानते हैं और उनके बताए हुए रास्ते पर चलने का काम करते हैं और यह समाज चित्र के नहीं चरित्र की पूजा करता है। आचार्य राजेश ने कहा आर्य समाज जो भारतीय संस्कृति का मूल आधार वेद, दर्शन, उपनिषद, रामायण, मनुस्मृति, ब्राह्मण और आरण्यक ग्रंथ हैं उन सबको मानता है। जो वेद की निंदा करता है वह व्यक्ति नास्तिक है और यह समाज आस्तिक और सत्यवादी है। ज्ञानचंद आर्य आर्य समाज के प्रधान ने कहा आर्य समाज संसार का परोपकार करना इसका मुख्य उद्देश्य रहा है आर्य समाज महर्षि दयानंद ने संस्कार विधि, सत्यार्थ प्रकाश देकर के हम सब परोपकार किया है। ज्ञानचंद आर्य ने कहा आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद ने कहा था किसी मत मतांतर को चलाना हमारा लेश मात्रा भी अभिप्राय नहीं है। ब्रह्मा से लेकर के जैमिनी पर्यंत जो ऋषियों का कार्य है मैं उसी को सही रूप से प्रस्तुत कर रहा हूं। आर्य समाज की प्रधान ने कहा हिंदी भाषा का प्रथम राजकीय भाषा बने और स्वराज और स्वदेशी का सबसे पहले महर्षि दयानंद ने ही अपने जीवन में प्रयोग किया था। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग की बलिदानियों को भी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर
सुरेश आर्य, मनोज गर्ग, शेर सिंह चौहान, नरेंद्र आर्य, कन्हैयालाल शर्मा, विशाल शर्मा मास्टर जय भगवान, मास्टर ओमप्रकाश बत्रा, प्रवीण गर्ग , मास्टर नानक, मास्टर देवी राम, मास्टर गुरदयाल,सूनीता आर्य, कमलेश गर्ग, मिथलेश, वन्दना, शशि गुप्ता आदि
भजन शशि गुप्ता, कन्हैयालाल, कमलेश गर्ग, मिथलेश गर्ग आदि उपस्थित रहे
आर्य समाज के नियमों को भी सभी आर्य समाजियों ने याद किया जो नियम इस प्रकार है-
आर्य समाज के 10 नियम है पहला नियम – सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सबका आदि मूल परमेश्वर है। दूसरा नियम- ईश्वर सच्चिदानंदस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वांतरयामी, अजर, अमर, अभय, नित्य पवित्र और सृष्टि करता है उसी की उपासना करनी योग्य है। तीसरा नियम- वेद सब सत्य विधाओं की पुस्तक है वेद को पढ़ाना पढ़ाना सुनना सब आर्यों का परम धर्म है. चौथा नियम- सत्य को ग्रहण करने में और असत्य को छोड़ने में सर्वदा उद्धत रहना चाहिए। पांचवा नियम- सब काम धर्म अनुसार अर्थात असत्य और सत्य को विचार करके करने चाहिए। छटा नियम- संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है। सातवा नियम- सबसे प्रतिपूर्वक धर्म अनुसार यथायोग्य बरतना चाहिए. आठवां नियम- अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिए। नवा नियम- प्रत्येक को अपनी उन्नति में संतुष्ट न रहना चाहिए किंतु सब की उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए। दसवां नियम- सब मनुष्य को सामाजिक सर्वहितकारी नियम पालने में परतंत्र रहना चाहिए और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतंत्र रहें।