सुभाष चंद्र बोस का जीवन समस्त समाज के लिए प्रेरणादायक : दिनेश कुमार उर्फ पालाराम

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city24news@अशोक कुमार कौशिक
नारनौल। आज नेता जी सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती के उपल्क्ष में कांग्रेसी नेता दिनेश कुमार उर्फ पालाराम ने सुबास पार्क ,नारनौल पर नेता जी सुभाष चंद्र बोस जी की प्रतिमा पर फूल माला अर्पण की। दिनेश कुमार (पालाराम ) जी ने बताया कि नेता जी का जीवन समस्त समाज के लिए प्रेरणादायक है। उन्होंने देश के लिए जो सर्वोच्च बलिदान दिया,वह  हम सब के लिए एक संदेश देने का काम करता है।

दिनेश कुमार उर्फ पालाराम ने बताया कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस अगस्त 1939 में बग्घी पर बैठकर लालगंज पहुंचे। मिलिट्री ग्राउंड पर में जनसभा करके आजादी की अलख जगाई थी।स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जिले के आजादी के दीवानों की सक्रियता ने देश के नायक नेताजी को कलकत्ता से आने को मजबूर कर दिया था। जनसभा में ग्रामीणों की बड़ी हिस्सेदारी देख नेताजी ने उस समय आयोजक शिवमूर्ति दुबे से पूछा था कि गांवों में स्वतंत्रता की इतनी तेज आंधी क्यों है, तो उन्होंने कहा था कि अब देश जाग चुका है और अंग्रेजों को भारत छोड़ना ही होगा। आजादी के आंदोलन में जनपद के उपरौध क्षेत्र के ग्रामीणों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

वर्ष 1938 में त्रिपुरा में कांग्रेस के अधिवेशन में क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानी शिवमूर्ति दुबे शामिल हुए थे। इस दौरान उनकी मुलाकात नेताजी सुभाषचंद्र बोस से हुई। सेनानी शिवमूर्ति दुबे ने नेताजी को लालगंज में सभा करने के लिए आमंत्रित किया। नेताजी ने आग्रह को स्वीकार करते हुए लालगंज आए।

वर्ष 1941 में जब अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो के नारे के साथ आंदोलन शुरू हो चुका था। पूरे देश में नौजवान अंग्रेजों के विरोध में संगठित हो रहे थे। उसी दौरान लालगंज के पतुलखी गांव के पं शिवमूर्ति दुबे, कठवार गांव के रविनंदन दुबे, पं. केदारनाथ तिवारी, पं. केदारनाथ मालवीय, पं. राजमणि दुबे, सैठोले कोल ने हजारों लोगों के साथ लालगंज थाने को घेर लिया था। इनको गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं शिवमूर्ति दुबे, पं रविनंदन दुबे जमींदार परिवार से जुड़े थे लेकिन देश की आजादी के लिए सभी सुखों का त्याग दिया और जेल में यातनाएं सही। लालगंज थाने के मुख्य द्वार के पास अशोक स्तंभ लाट है। इस शिलालेख पर पं. शिवमूर्ति दुबे, पं. रविनंदन दुबे, पं. राजमणि दुबे, पं. केदारनाथ तिवारी, पं. केदारनाथ मालवीय, सैठोले कोल का नाम अंकित हैं।

हम जो आज खुली हवा में सांस ले रहे है वह नेता जी जैसे स्वंत्रता सैलानियों की ही बदौलत ले रहे हैं। उनके साथ सतीश सोनी, भारत, अर्जुन, रोहन, दिविक, टिंकु, हर्षित, गौरव, चिराग आदि मौजूद थे।

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