“सर्वाइकल कैंसर के कारण मृत्यु दर में लगभग 63% इजाफ़ा
City24news@भावना कौशिश
फरीदाबाद | सर्वाइकल कैंसर भारतीय महिलाओं में दूसरा सबसे आम कैंसर है, जो जनसंख्या समूह में होने वाले कैंसर का लगभग 18% है। अमृता अस्पताल के डॉक्टर ने बताया की हर साल इस बीमारी के 1,20,000 से अधिक नए मामलों का निदान किया जाता है, जिनमें से 77,000 से अधिक मामले कैंसर की उन्नत स्टेज के कारण, निदान के दौरान मृत्यु का शिकार हो जाते हैं, जिससे मृत्यु दर लगभग 63% हो गई है।
भारत में सर्वाइकल कैंसर के बढ़ते बोझ का एक प्रमुख कारण जागरूकता की कमी और सर्वाइकल स्क्रीनिंग का अभाव है। देर से पता चलने और आवश्यक उपचार तक पहुंचने की अभावता से होने वाली बीमारी और मौत, सर्वाइकल कैंसर के प्रमुख चुनौतियों में से एक है। इसके विपरीत, रोग की प्रारंभिक जांच से कैंसर विकसित होने से पहले गर्भाशय ग्रीवा में परिवर्तनों को पहचानने में मदद कर सकता है। यह मैलिग्नेंट कोशिकाओं के फैलने से पहले गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का पता लगा सकता है और इसे उपचार योग्य बना सकता है।
अमृता हॉस्पिटल की डॉ. नेहा कुमारी ने कहा, “लगभग सभी सर्वाइकल कैंसर के मामलों स्थाई ह्यूमन पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) संक्रमण के कारण हो सकते है। इसमें अन्य जोखिम कारक जैसे की बहुत छोटी आयु में विवाह, अनेक सेक्स पार्टनर, कई बार गर्भधारण करना, जननांग स्वच्छता ना होना, कुपोषण, धूम्रपान, एचआईवी संक्रमण सहित इम्यूनो ऑपरेशन, गर्भनिरोधक गोली का लंबे समय तक उपयोग, और जागरूकता एवं स्क्रीनिंग की कमी शामिल है। चेतावनी के लक्षणों या सर्वाइकल कैंसर के शुरुआती लक्षणों में अनियमित रूप से योनि से रक्तस्राव, मासिक धर्म के बीच में या संभोग के बाद रक्तस्राव, रजोनिवृत्ति के बाद रक्तस्राव और योनि से दुर्गंध युक्त स्राव निकलना शामिल हैं। कुछ रोगी पीठ के निचले हिस्से में दर्द या पेट के निचले हिस्से में दर्द का भी अनुभव करते है।”
पारंपरिक तरीके से गर्भाशय ग्रीवा की स्क्रीनिंग के लिए पैप स्मीयर और एचपीवी टेस्ट की आवश्यकता होती है, जिसके लिए पैथोलॉजी और प्रयोगशाला सेवाएं की ज़रूरत पड़ती हैं, जिसका देश के सभी हिस्सों में, विशेष रूप से दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध होना मुश्किल हैं। इन क्षेत्रों में महिलाओं की जाचं के लिए एक प्रभावी तरीका ‘वीआईए (एसिटिक एसिड के साथ दृश्य निरीक्षण)’ और ‘वीआईएलआई (लुगोल के आयोडीन के साथ दृश्य निरीक्षण)’ हैं। इन तरीकों में एसिटिक एसिड और लुगोल के आयोडीन जैसे पदार्थों का उपयोग किया जाता है, ताकि आँखों से गर्भाशय ग्रीवा में परिवर्तन देखा जा सके। इसका उपयोग करके, गर्भाशय ग्रीवा में किसी भी प्रकार की असमान्यताएं पहचानी जा सकती हैं, और ऐसे रोगी को जिला अस्पतालों में स्त्री रोग विशेषज्ञों के पास गर्भाशय ग्रीवा बायोप्सी और आगे के प्रबंधन के लिए भेजा जा सकता है।
डॉ. कुमार ने कहा , “जहां पारंपरिक पैप स्मीयर और एचपीवी परीक्षणों की सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो सकती हैं, वहाँ पर सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता ग्रामीण क्षेत्रों में गर्भाशय ग्रीवा की जांच में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके अलावा, वर्तमान में ये टेस्ट महंगे हैं, और समाज के बड़े हिस्से के लिए इनको वहन करना आसान नहीं हो सकता। एसिटिक एसिड और लुगोल के आयोडीन के साथ गर्भाशय ग्रीवा का आँखों से निरीक्षण इन क्षेत्रों में एक प्रभावी स्क्रीनिंग विधि के रूप में काम कर सकता है, और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को इन प्रक्रियाओं को करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है। प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ता इन तरीकों से गर्भाशय ग्रीवा में किसी भी प्रकार की असामान्यताओं की पहचान कर सकते हैं और असामान्य परिणामों वाली महिलाओं को स्त्री रोग विशेषज्ञों के पास भेज सकते हैं। सामान्य परिणामों वाली महिलाएं पारंपरिक स्क्रीनिंग परीक्षणों के लिए कस्बों और शहरों में जाने के बजाए, इन वर्कर्स द्वारा की जाने वाली वीआईए और वीआईएलआई से नियमित जांच और निगरानी करा सकती हैं, ”
सर्वाइकल कैंसर, एक गंभीर बीमारी और उच्च मृत्यु दर के बावजूद, एक रोकथाम योग्य कैंसर है और इसलिए भारत में इसको रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाना ज़रूरी है। इसे स्क्रीनिंग में अंतर को समाप्त करके किया जा सकता है। युवा किशोरियों के लिए एचपीवी टीकाकरण आवश्यक है, हालांकि यह भारत के सार्वजनिक प्रतिरक्षण कार्यक्रम का हिस्सा नहीं है। इलाज की उपलब्धता में चुनौतियों को समान रूप से देखना चाहिए, विशेष रूप से दूरस्थ क्षेत्रों में व्यापक पहुंच की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए।