City24News/नरवीर यादव
फरीदाबाद
| महागठबंधन के दल अल्पसंख्यक समुदाय को यह संकेत देने की कोशिश में हैं कि सिर्फ और सिर्फ इंडिया गठबंधन ही उसके हितों के लिए किसी जज को भी सूली पर चढ़ा सकता है। महागठबंधन की कोशिश कुछ महीने बाद होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनावों के लिए राज्य की करीब छह फीसद अल्पसंख्यक आबादी को लुभाना भी है। वैसे देखा जाए तो राज्य की सात करोड़ 21 लाख की आबादी में अल्पसंख्यकों की जनसंख्या महज 42 लाख तीस हजार ही है। ब्राह्मणवाद की बुनियाद पर उभरी डीएमके की राजनीति में अल्पसंख्यकवाद पिछड़ी जातियों को लुभाने का भी मंत्र रहा है। राज्य की अधिसंख्यक पिछड़ी आबादी को भी लुभाने की इस बहाने की कोशिश हो रही है। इसीलिए कार्तिगई दीपम की परंपरा को रोकने में डीएमके को कोई हिचक नहीं हुई।
बिहार में जाति-धर्म की सियासी पिच पर बुरी तरह मात खाने के बावजूद इंडिया गठबंधन का भरोसा इसी पर है। तमिलनाडु में जिस तरह कार्तिगई दीपम परंपरा स्थापित करने का आदेश देने वाले मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश जी आर स्वामीनाथन के खिलाफ गठबंधन ने लामबंदी की है, उससे यही संकेत मिल रहे हैं। डीएमके सांसद कनिमोई की अगुआई में विपक्षी गठबंधन के 120 सांसदों द्वारा स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग का नोटिस देना गठबंधन की पारंपरिक राजनीति का ही विस्तार है। विपक्षी गठबंधन यह पचा नहीं पा रहा है कि कथित सेकुलर देश में किसी जज ने बहुसंख्यक सनातनी परंपरा स्थापित करने का निर्णय दे दिया है। स्वामीनाथन के फैसले के अनुसार, जहां कार्तिदीपम मनाया जाना है, वहां एक दरगाह भी है। दरगाह और मंदिर साथ हो तो मंदिर की कीमत पर दरगाह की परंपराएं अपने यहां चलती रही हैं। अब तक की शासन व्यवस्था के लिहाज से ऐसे मामलों में मंदिर के पक्ष में फैसला सवालों के घेरे में आता है।
इसी अंदाज में स्वामीनाथन पर भी निशाना साधा जा रहा है। इसने एक बार फिर डीएमके और इंडिया गठबंधन की सियासी रणनीति का चेहरा उजागर किया है। डीएमके ने सेक्युलरिज्म आधारित जो प्रशासनिक मॉडल बनाया है, उसके निशाने पर सिर्फ हिंदू हैं। भगवान मुरुगन की सदियों पुरानी परंपरा को रोकना उसी मॉडल की परिणति है। डीएमके की नीति अल्पसंख्यक समुदायों को खुश करना और हिंदू समुदाय के खिलाफ़ आक्रामक रहा है। राज्य में वक्फ की ज़मीनों को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं है। चर्च का धन भी अछूता है। लेकिन हिंदू मंदिरों के कोष पर राज्य का नियंत्रण है। मंदिरों की जमीनें भी सरकारी नियंत्रण में है। लेकिन अब राज्य का जनमत बदल रहा है। बीजेपी की कोशिश तमिल हिंदुत्व को उभारकर अपनी बुनियाद को मजबूत करना है। वह डीएमके के इस दोहरे चरित्र को लोगों को समझाने की कोशिश में है। ऐसे में तमिलनाडु विधानसभा चुनाव इस बार गैर पारंपरिक रंग में नजर आ सकता है।

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