अरावली पर चोट से सरकार में खोट, मेवात के 40 गांवों के वजूद पर खतरा 

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-नायब तहसीलदार के माध्यम से राष्ट्रपति, पीएम और सुप्रीम कोर्ट को ज्ञापन
-100 मीटर के फैसले से पर्यावरण और अरावली पर संकट
City24News/सुनील दीक्षित

नूंह | नीति आयोग के सबसे पिछड़े जिले नूंह के 40 से अधिक गांवों का भविष्य अरावली पहाड़ियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संकट में है। नूंह सीमा से सटे तिजारा, खैरथल, किशनगढ़बास, अलवर, जुरहेड़ा, नगर, पहाड़ी, गोपालगढ़ और कामां क्षेत्र के लगभग 60 गांव भी फैसले से प्रभावित होंगे। यहां राजस्थान और हरियाणा के मेवात क्षेत्र में 6 जिलों के 100 गांवों पर संकट दिखाई दे रहा है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली अरावली पहाड़ियों को खनन के लिए खोलने की अनुमति दिए जाने से पूरे मेवात क्षेत्र में गहरी चिंता और असंतोष का माहौल है। इस मुद्दे को लेकर मेवात आरटीआई मंच ने सख्त रुख अपनाते हुए नायब तहसीलदार नगीना के माध्यम से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, राज्यपाल, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को ज्ञापन भेजे हैं। ज्ञापन में फैसले पर पुनर्विचार की मांग करते हुए अरावली के पर्यावरणीय, सामाजिक और ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित किया गया है।

मेवात आरटीआई मंच के अध्यक्ष सुबोध कुमार जैन ने बताया कि नगीना सब तहसील के गांव सांठावाड़ी, नांगल मुबारिकपुर, झिमरावट, बारा, बाजीदपुर, ढाडोली कलां, ढाडोली खुर्द, खानपुर घाटी सहित 13 गांव ऐसे हैं, जहां अरावली पहाड़ियों की ऊंचाई 100 मीटर से कम है। इसी प्रकार फिरोजपुर झिरका तहसील के गांव घाटा शमशाबाद, बसई मेव, बडेड तथा पुन्हाना, नूंह, तावडू और सब-तहसील इंडरी के कई गांव भी इस फैसले की जद में आते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि इन क्षेत्रों में खनन शुरू हुआ तो गांवों का अस्तित्व ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक मंदिर, मस्जिदें, दरगाहें और किले भी मिटने के कगार पर पहुंच जाएंगे।

पर्यावरणविद राजूद्दीन जंग ने सुप्रीम कोर्ट से इस फैसले पर पुनर्विचार की अपील करते हुए कहा कि अरावली केवल पहाड़ियों की श्रृंखला नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत का प्राकृतिक सुरक्षा कवच है। इसे कमजोर करना आने वाली पीढ़ियों के साथ अन्याय होगा। उन्होंने बताया कि अरावली पर्वतमाला गुजरात से राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक लगभग 800 किलोमीटर में फैली हुई है। यह थार रेगिस्तान की धूल को दिल्ली एनसीआर तक पहुंचने से रोकती है और भूजल रिचार्ज व तापमान संतुलन में अहम भूमिका निभाती है। फैसले के बाद राज्य सरकारों और स्थानीय प्रशासन को भूमि की प्रकृति तय करने का अधिक अधिकार मिल गया है, जिससे दुरुपयोग की आशंका बढ़ गई है। 

वहीं मेवात आरटीआई मंच के उपाध्यक्ष नसीम, सरपंच सांठावाड़ी, ने कहा कि यह फैसला अरावली संरक्षण को कमजोर करेगा और इसके दुष्परिणाम दूरगामी होंगे। अरावली के कमजोर होने से भूजल स्तर और गिरेगा, गर्मी बढ़ेगी और प्रदूषण और गंभीर होगा। यही वजह है कि मेवात के लोग इस फैसले को केवल कानूनी नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व से जुड़ा सवाल मान रहे हैं।

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