नितिन नवीन भाजपा की नई वर्ग की व्यवस्था के सशक्त प्रतीक
City24News/नरवीर यादव
फरीदाबाद | बीजेपी के जानकारों का तर्क है कि नितिन नवीन को राष्ट्रीय भूमिका देकर पार्टी ने एक तरह से पीढ़ीगत बदलाव की शुरूआत की है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों मेंम बीजेपी में और भी युवा चेहरों को मौका मिलेगा। वैसे देखा जाए तो आजकल बीजेपी में युवाओं और महिलाओं पर जोर है। हालिया बिहार विधानसभा के चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी एमवाई का नया विश्लेषण युवा और महिला के रूप में कर ही चुके हैं। वैसे भी वे गरीब, किसान, महिला और जवान की जाति का अक्सर जिक्र करते हैं। कह सकते हैं कि नितिन नवीन भाजपा की इसी नई वर्ग व्यवस्था के सशक्त प्रतीक हैं।
हाल के दिनों में बीजेपी में पिछड़ा नेतृत्व पर कुछ ज्यादा ही फोकस किया गया। इससे बीजेपी का पारंपरिक सवर्ण वोट बैंक दबे स्वर से नाराजगी भी जाहिर करता रहा है। विराट उभार से पहले बीजेपी को बाभन-बनिया की पार्टी भी कहा जाता था। इसमें कायस्थ और किंचित क्षत्रिय वर्ग भी जुड़ा हुआ था। नितिन नवीन इन्हीं में से एक कायस्थ वर्ग से आते हैं। वैसे बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान पाटलिपुत्र से कायस्थ उम्मीदवार ना देने की वजह से बीजेपी का कायस्थ वोटर किंचित नाराज भी दिखा था। इस संदर्भ को देखते हुए एक वर्ग कह रहा है कि नितिन को केंद्रीय नेतृत्व सौंपकर बीजेपी ने अपने पारंपरिक सवर्ण मतदाता वर्ग को साधने की कोशिश की है। वैसे कुछ लोगों का यह भी मानना है कि नितिन नवीन की ताजपोशी आगामी पश्चिम बंगाल चुनाव को भी ध्यान में रखकर किया गया है। पश्चिम बंगाल की राजनीति में लंबे समय तक कायस्थ समाज का दबदबा रहा है। राज्य के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु और पहले मुख्यमंत्री विधानचंद्र रॉय इसी समुदाय से थे। ज्योति बसु जहां 23 साल तक मुख्यमंत्री रहे, वहीं विधानचंद्र रॉय के हाथ 14 साल तक राज्य की कमान रही। नितिन नवीन के जरिए बंगाल के इस वर्ग के वोटरों को भी पार्टी ने बड़ा संदेश दिया है।
नितिन नवीन को नेतृत्व सौंपे जाने को लेकर कुछ महीने पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भाजपा को मिले संकेतों का भी जिक्र किया जा रहा है। संघ ने बीजेपी को संकेत दिया था कि पिछड़े-दलित आदि को शासन और प्रशासन से मिले फायदों का जिक्र भले ही करे, लेकिन संगठन के मामलों में जातीय आधार पर फैसले ना ले। संघ का पार्टी को यह भी संकेत था कि वह संगठन की भूमिकाएं तय करते वक्त कार्यकर्ताभाव और उसकी संगठन क्षमता और निष्ठा को देखे। नितिन नवीन की नियुक्ति को इस निकष पर भी कसा जा सकता है। नवीन पार्टी के पुराने कार्यकर्ता हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में सक्रिय रहे हैं। संगठन ने जो भी भूमिका सौंपी, उसे संगठन के लिहाज से पूरा करने की कोशिश की है। छत्तीसगढ़ राज्य में बीजेपी की पिछली जीत ने उनके संगठन कौशल की ओर झांकने का मौका दिया। कह सकते हैं कि उनकी नियुक्ति के पीछे ये भी कारण रहे होंगे। हालांकि आलोचक कह सकते हैं कि नितिन की तुलना में संगठन में खुद को खपाने वाले बहुत लोग अब भी सक्रिय हैं। फिर उन्हें क्यों नहीं मौका मिलना चाहिए। यह तर्क वाजिब हो सकता है। लेकिन यह भी सच है कि राजनीतिक फैसले लेते वक्त कई बिंदुओं पर ध्यान दिया जाता है।
