मेवात की अनूठी संस्कृति : जहां मंदिर भी अपना, मस्जिद भी अपनी
-पंडित और मौलवी दोनों को ‘भात’ में मिलता है सम्मान, भाईचारे का दुर्लभ उदाहरण
-गलत धारणाओं को बदलने का समय आइए, वीर हसन खां मेवाती को नमन करें
City24News/अनिल मोहनिया
नूंह | अक्सर गलतफहमियों और मिथ्या धारणाओं के कारण देशभर में मेवात को लेकर विकृत छवि पेश की जाती है, जबकि हकीकत बिल्कुल अलग है।
मेवात की संस्कृति इतनी समृद्ध, गंगा-जमुनी और दिलों को जोड़ने वाली है कि यहां के रीतिरिवाज किसी भी समाज के लिए मिसाल बन सकते हैं। ऐसी ही एक अद्भुत परंपरा है भात की। विवाह से पहले दिए जाने वाले इस पारंपरिक निमंत्रण में मेवात के घरों में मंदिर और मस्जिद दोनों का समान सम्मान होता है।
यहां भात के समय न सिर्फ पंडित को बल्कि मौलवी को भी बराबर सम्मान के साथ बुलाया जाता है। दोनों को भात में पैसे, कपड़ा और सम्मानसूचक राशि दी जाती है। यह परंपरा बताती है कि मेवात में धर्म नहीं—रिश्ते, परंपराएं और इंसानियत पहले आती है। यही वह वास्तविक मेवात है जो शायद बाहर की दुनिया को अब तक ठीक से बताया नहीं गया।
स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार भात के इस अनोखे रिवाज में परिवार अपने बच्चों के विवाह की खुशियों में दोनों धर्मों के प्रतिनिधियों को शामिल कर यह संदेश देता है कि सदियों से मेवात में मंदिर और मस्जिद दोनों को समान स्थान मिला है। जब एक ही गांव में हनुमान मंदिर की घंटियां और मस्जिद की अजान साथ गूंजती हों, तो मेवात की पहचान को संकुचित नजरों से देखना न सिर्फ अन्याय है बल्कि ऐतिहासिक भूल भी।
सीएम के मीडिया सलाहकार मुकेश वशिष्ठ ने कहा कि आज जब वंदे सरदार एकता पदयात्रा वीर शहीद राजा हसन खां मेवाती की शौर्यगाथा को जन-जन तक पहुंचा रही है, ऐसे में मेवात की इस अनोखी साझी विरासत पर रोशनी डालना और भी जरूरी हो जाता है। आइए, गलत धारणाओं को तोड़ें। आइए, मेवात की इस अनूठी संस्कृति को समझें। और आइए, हसन खां मेवाती के अमर बलिदान को सिर झुकाकर श्रद्धांजलि दें।
मौके पर ब्लॉक पंचायत समिति के पूर्व अध्यक्ष ईसा खान, जिला परिषद पार्षद परवेज आलम, हाजी इस्लाम खां, रफीक खान इमामनगर, पूर्व जिला पार्षद नसीम अहमद कल्ला सहित अन्य लोग मौजूद रहे।
