हिंद महासागर में फिर मज़बूत हुई भारत की पकड़

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मालदीव यात्रा केवल एक औपचारिक राजकीय दौरा नहीं है, बल्कि यह दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक बिसात पर भारत की चतुर कूटनीति, रणनीतिक धैर्य और नेतृत्व क्षमता का स्पष्ट प्रदर्शन भी है। यह यात्रा इस प्रश्न का उत्तर भी है— कि कैसे भारत ने ‘चीन की गोद में जाते’ मालदीव को फिर से अपने पक्ष में मोड़ लिया।

हम आपको याद दिला दें कि 2023 में जब मोहम्मद मुइज्जू सत्ता में आए, तो उन्होंने खुलकर “इंडिया आउट” अभियान का समर्थन किया और भारतीय सैन्य उपस्थिति पर सवाल उठाए। उनकी शुरुआती विदेश यात्राएं भी संकेत दे रही थीं कि मालदीव अब चीन के करीब जा रहा है। लेकिन भारत ने जल्दबाज़ी में कोई कड़ा कदम नहीं उठाया। इसके विपरीत, उसने (संवाद, न कि टकराव) की नीति अपनाई। भारत ने रक्षा कर्मियों को तकनीकी विशेषज्ञों से बदला, जिससे मालदीव की ‘संप्रभुता’ की चिंता को दूर किया गया, लेकिन रणनीतिक उपस्थिति बनाए रखी गई। साथ ही विकास परियोजनाओं को बिना शोर के आगे बढ़ाया गया जिससे आम जनता को भारत की भूमिका का सकारात्मक प्रभाव दिखता रहा। इसके अलावा, आर्थिक मदद जैसे 30 अरब रुपये की ऋण सुविधा, करेंसी स्वैप और ट्रेजरी बिलों से मालदीव की डूबती अर्थव्यवस्था को सहारा दिया गया। साथ ही सांस्कृतिक, राजनीतिक और पार्टी-स्तरीय जुड़ाव को फिर से शुरू किया गया, जिससे भारत और मालदीव के बीच बहुस्तरीय संपर्क बने रहें।

इसके अलावा, 2024–25 में भारत ने नई परियोजनाएं घोषित करने की बजाय पूर्ववर्ती विकास कार्यक्रमों को तेज़ी से पूरा करने पर ध्यान केंद्रित किया। हनीमाधू अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट जैसे विशाल निर्माण कार्य इसके उदाहरण हैं। इनका न केवल आर्थिक, बल्कि रणनीतिक महत्व भी है क्योंकि ये चीन समर्थित बंदरगाह-राजनीति के विकल्प प्रस्तुत करते हैं।

देखा जाये तो भारत की नीति में ज़बरदस्त कूटनीतिक परिपक्वता थी। भारत ने मुइज्जू की ओर से उकसाने के बावजूद भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि दीर्घकालिक रणनीतिक सोच के साथ अपने कदम आगे बढ़ाये। प्रधानमंत्री मोदी जब मालदीव पहुँचे तो उनके स्वागत के लिए उमड़ी जनता और अगवानी के लिए पहुँचे मुइज्जू की खुशी देखने लायक थी। हम आपको बता दें कि मालदीव जैसे राष्ट्र में यह परंपरा नहीं रही कि राष्ट्रपति स्वयं एयरपोर्ट पर किसी राष्ट्राध्यक्ष की अगवानी करें। मुइज्जू का प्रधानमंत्री मोदी को हवाई अड्डे पर व्यक्तिगत रूप से रिसीव करना कई गहरे संदेश देता है। जैसे- यह ‘इंडिया आउट’ अभियान से पूरी तरह यू-टर्न है। अब राष्ट्रपति खुद भारत के सर्वोच्च नेता के स्वागत में खड़े हैं। इसके अलावा, मुइज्जू यह दिखाना चाहते हैं कि अब भारत के साथ सहयोग राष्ट्रहित में है। यह संकेत देशवासियों के लिए है कि भारत शत्रु नहीं, सहायक है। यह कूटनीतिक संकेत भी है कि भारत, अब भी मालदीव की विदेश नीति में सर्वोपरि है, चाहे चीन ने कितनी भी कोशिश की हो।

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