हरिद्वार से कांवड उठाकर कांवडिए हुए बाघेश्वरधाम के लिए रवाना

0

-23 जुलाई को शिवरात्री पर आयोजित होगा विशाल कांवड मेला
-जिला प्रशासन जुटा तैयारियों में, सभी आपातकालीन सेवाओं को रखा जाएगा अलर्ट मोड पर
City24news/सुनील दीक्षित 
कनीना | हरियाणा प्रदेश सहित समूचे उत्तर भारत में प्रसिद्व कनीना-दादरी मार्ग तथा एनएच 152डी के समीप कनीना सब डिवीजन के गांव बागोत स्थित ’बाघेश्वर धाम’ में आगामी 23 जुलाई को आयोजित होने वाले विशाल कांवड मेले के लिए हरिद्वार से शिवभक्त कांवड कंधे पर उठाकर पदयात्रा पर निकल पडे हैं। विधिवत पूजा अर्चना के बाद शिवभक्त बम-बम का उद्घोष करते हुए आगे बढ रहे हैं। ईधर कांवड मेले में सुरक्षा की दृष्टि से महेंद्रगढ जिला प्रशासन द्वारा व्यापक प्रबंध किये जा रहे हैं। कनीना के एसडीएम डाॅ जितेंद्र सिंह अहलावत ने बताया कि मेले में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए जिला प्रशासन की ओर से ड्यूटी मैजिस्ट्रेट की नियुक्ति सहित प्र्याप्त संख्या में पुलिस कर्मचारी डिप्लोयड किए जाएगें। यातायात को कंट्रोल करने के लिए बेरिकेटिंग की जाएगी। इसके अलावा एंबुलेंस,फायर ब्रिगेड,गोताखोर सहित स्वास्थ विभाग की आपात सेवाओं को अलर्ट मोड पर रखा जाएगा। चेन स्नेचिंग जैसी घटनाओं से निपटने के लिए सादी वर्दी में पुलिस कर्मचारी लगाए जाएगें। मंदिर के मंहत रोशनपुरी ने बताया कि मंदिर के बाहर व अंदर रेलिंग लगाई गई है वहीं गर्भगृह में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सीसीटीवी कैमरे लगाये गये हैं। महेंद्रगढ जिले के लगभग प्रत्येक गांव से शिवभक्त हरिद्वार पंहुच कर पवित्र गंगा में डुबकि लगाकर कांवड उठा चुके हैं उनमें मुख्यतः गुढा गांव से हरिद्वार रवाना हुए जत्थे में 21 कांवड ला चुके पत्रकार विजय कुमार शर्मा, पूनम चंद शर्मा, दलीप सिंह, नरेश शर्मा, जोनी, बिमला देवी, भतेरी देवी, सुमेर सिंह, राजीव यादव, ताराचंद जोशी बुहाना, विद्यानंद,ढिल्लू सहित अन्य शिवभक्त शामिल हैं। केमला के शिवभक्त राकेश कुमार, धर्मेंद्र सिंह,राजकेश गोमुख से कांवड ला रहे हैं।
बछडी पर बाघ के आक्रमण से प्रसिद्ध हुआ बाघेश्वर धाम
नागेंद्र शास्त्री ने एक किवंदती के माध्यम से बताया कि वर्षों पूर्व ऋषि पिप्लाद ने यहां पर तपस्या की थी। राजा दिलीप को कोई संतान नहीं थी। जिससे वे दुखी रहते थे, ओर दुख के निवारण के लिए अपने कुलगुरू वशिष्ठ के पास गए ओर अपना दुखद वृतांत सुनाया। गुरू वशिष्ठ ने पिप्लाद ऋिषि के आश्रम में नंदिनी नामक गाय व कपिला बछडी को उपवास रखकर जंगल में चराने,भोजन कराने को कहा। अब राजा दिलीप प्रतिदिन उपवास रखकर उन्हें चराने जंगल में जाते। एक दिन भगवान शंकर ने राजा दिलीप की परीक्षा लेने के मकसद से बाघ का स्वरूप धारण कर बछडी पर धावा बोलना चाहा। राजा की नजर जब बाघ पर पड़ी तो हाथ जोडकर प्रार्थना करते हुए कहा कि वे गाय-बछडी को छोडकर उन्हें अपना भक्ष्य बना ले। उनका मानना था कि वह बछडी को खाने देते तो उन पर गाय का श्राप लगता ओर गाय को खायेगा तो उनकी तपस्या पूरी नहीं हो सकेगी। ऐसा कहकर उन्हें अपने आप को बाघ के सामने पटक दिया। कुछ समय बाद कोई हरकत नहीं होने पर उन्होंने सिर उठाकर देखा तो उनके सामने बाघ के स्थान पर भोले शंकर खड़े थे। इस किवंदती के बाद इस स्थान का नाम ’बाघेश्वर धाम’ पड़ा। यहां पर प्रतिवर्ष सावन माह की त्रयोदशी को शिवरात्री तथा फाल्गुन माह की त्रयोदशी को महाशिवरात्री के अवसर पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। जिला प्रशासन की ओर से मेले में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं।
बाक्स न्यूज
प्राकृतिक शिवलिंग की महिमा

यहां पर नाभा-पटियाला रिसायत से पूर्व का प्राकृतिक स्वयंभू शिवलिंग है। जिनकी महिमा निराली है। उस दौरान अनजाने में गांव की महिलाएं खेतों में जाते समय शिवलिंग को पत्थर समझकर घास खुदाई करने वाले लोहे के उपकरण,खुर्पे को घिसकर धार देती थी। इस शिवलिंग को झज्जर के नवाब फकरुद्दीन ने अपनी सेना को उखाडने का आदेश दिया था। लेकिन सेना इसे उखाडने में असफल रही थी। खुदाई के दौरान वहां पर काले सर्प व जहरीले जानवर निकले। जिससे सैनिक कार्य छोडकर भाग खडे हुये थे। राजा ने यहां पर पशु मेला आयोजित करने का हुक्म दिया। जब पशु मेला लगा था तो भयकंर औलावृष्ठि हुई ओर अनेकों पशु बे-मौत मारे गए। उसके बाद राजा ने गंगा जल लेकर जलाभिषेक करते हुए पुनः मेले की शुरूआत की। उसके बाद से यहां पर कांवड़ मेला आयोजित किया जाने लगा। शिवभक्त प्रतिवर्ष सावन माह में आयोजित होने वाले मेले में शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं।
केतकी के फूल को मिला शाप
एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचियता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा करत रहे वहीं भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ बता रहे थे। तभी वहां पर एक शिवलिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं में सहमति से फैसला हुआ कि जो भी इस शिवलिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा। दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग का छोर ढूंढने लगे। छोर न मिलने के कारण विष्णु जी लौट आए लेकिन ब्रह्माजी भी सफल नहीं हुए। परंतु उन्होंने विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पंहुच गए हैं। उन्होंने केतकी के फूल को इस बारे में साक्षी बताया। ब्रह्माजी के असत्य कहने पर वहां स्वयं शिव भगवान प्रकट हुए ओर उन्होंने ब्रह्माजी का एक सिर काट दिया ओर केतकी के फूल को पूजा से वंचित रहने का श्राप दिया। इस घटना के बाद पूजा में केतकी के फू लों का इस्तेमाल नहीं होता और ना ही ब्रह्माजी की पूजा की जाती।
कनीना-बम-बम के उद्घोष के बीच पत्रकार विजय कुमार के नेतूत्व में हरिद्वार से कंधे पर कांवड उठाते शिवभक्त।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed