बिन सत्संग विवेक न होई।राम कृपा बिन सुलभ न सोई

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City24news/सुमित गोयल
बल्लबगढ़ | श्री गोपाल मंदिर ट्रस्ट जगदीश कॉलोनी के 46वे वार्षिकोत्सव पर कथा व्यास कार्ष्णि स्वामी सुमेधानंद जी महाराज ने सत्संग की महत्ता पर प्रकाश डाला।सज्जन लोगो की संगति हमे जीवन मे आगे बढ़ाती है।और दुर्जन व्यक्ति की संगति से हमें समाज में अपमान के सिवा और कुछ हासिल नही होता।प्रभु  की करुणा में कोई कमी नही।कमी है तो हमारी योग्यता में।जो कार्य अच्छा होता है।उसका श्रेय हम अपने आप को देते है।और जो कार्य बुरा होता है उसके लिए हम परमात्मा  को दोष देते है।परमात्मा तो करुणामयी है    आज तक तो माँ यशोदा भगवान का श्रृंगार करती थीं, लेकिन आज स्याम सुंदर खुद अपना श्रृंगार कर रहे हैं। माथे पर मोर मुकुट, कानों में कुण्डल गले में हार, बाहों में बाजूबंद, कमर में कोंधनी, पैरो में नुपुर और सुन्दर पीताम्बर, और अपनी बंसी को लेकर । केशर की क्यारियों में, गुलाबों की बागियों में और लता पता के नीचे झुक-झुक कर श्रीकृष्ण चल रहे थे। वो नागर नट वंशीवट पर पहुँचे, सारा जंगल सुगन्धित पुष्पों से लदा हुआ है, वातावरण शांतिप्रिय और आनन्दायक है। शरद ऋतु का यह चिर-प्रतीक्षित चंद्रोदय पूर्वी आकाश को रंजीत कर रहा है। भगवान ने वंशीवट की छइयां में अपनी कमर से पीताम्बर खोल कर बिछाया, और अपनी वंशी को विराजमान कर वंशी की स्तुति करने लगे। “

भगवान ने वंशी उठाई और वंशीवट की छइयां के नीचे खड़े हो गए, और मंद-मंद स्वर से श्री कृष्ण अपनी वंशी बजाने लगे हैं। भगवान ने वंशी में सबसे पहले अपनी आह्लादिनि शक्ति श्री राधा रानी का नाम लिया है, और क्लिं शब्द फूँका है, यह क्लिं शब्द हमारी श्री राधा रानी की नुपुर से आया है। जैसे ही भगवान कृष्ण ने वंशी बजाई है तो सारे वृन्दावन की गोपियाँ मोहित हो गई है। भगवान वंशी में एक-एक गोपी का नाम ले रहे है। ललिता, विशाखा, चित्रा, तुंगभद्रा, रंगभेदी आदि इन सभी गोपियों का भगवान ने नाम लिया।  जब इन गोपियों ने अपना नाम सुना तो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पदार्थों का त्याग कर दिया। मुख्य पुजारी चेतराम भारद्वाज जी ने आरती के साथ कथा का समापन किया।

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