यमुना बचाओ पदयात्रा अभियान की शुरुआत

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city24news@रोबिन माथुर

हथीन| यमुना बचाओ अभियान (वॉक फ़ोर यमुना) के संयोजक डॉ शिवसिंह रावत ने आज हथीन कार्यालय में प्रेस कॉन्फ़्रेंस की। उन्होंने बताया कि यमुना नदी भारत की पवित्र नदियों में से एक है। इसका धार्मिक और सामाजिक-आर्थिक महत्व है। भारतीय संस्कृति में, नदियों को केवल भौगोलिक इकाई या जल निकायों के रूप में ही नहीं देखा जाता है, बल्कि जीवनदायिनी देवी के रूप में भी पूजा जाता है। यमुना नदी राधा और कृष्ण के निश्छल प्रेम का प्रतीक है। यह अत्यधिक उपजाऊ मैदान का निर्माण करती है। यमुना के स्वच्छ और सुरक्षित (निर्मल) जल और निर्बाध प्रवाह (अविरल) जल का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों-पीने, घरेलू, औद्योगिक और सिंचाई के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठानों के लिए किया जाता रहा है। यमुना 3,66,223 वर्ग किलोमीटर बेसिन को सिंचित करती है और 128 मिलियन लोगों की पानी की आपूर्ति करती है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की 70% से अधिक जल आपूर्ति करती है। गुड़गाँव कैनाल एवं आगरा कैनाल के माध्यम से लगभग 2 लाख हेक्टेयर में सिंचाई की जा रही है।

यमुना नदी की समस्या के बारे में डॉ रावत ने बताया कि दुर्भाग्य से, जनसंख्या और औद्योगीकरण में वृद्धि के साथ, यमुना देश की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक बन गई है। दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से औद्योगिक अपशिष्ट, नगरपालिका सीवेज, ठोस अपशिष्ट (प्लास्टिक, बोतलें, पॉलिथीन बैग, धार्मिक अपशिष्ट, शव) और कृषि अपवाह (उर्वरक और कीटनाशक) ने यमुना के पानी को ज़हरीला बनाया है और इसे अत्यधिक प्रदूषित नाले में बदल दिया। यह स्थिति अवैध खनन (एनजीटी द्वारा प्रतिबंध के बावजूद), यमुना में कम प्रवाह और यमुना बाढ़ के मैदानों पर अतिक्रमण के कारण और भी गंभीर हो गई है। इससे अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं-

● जहरीली और भारी धातुओं की मौजूदगी के कारण नदी में रहने वाली जलीय प्रजातियों में कमी आई है।

● यमुना नदी का प्रदूषित पानी हमारी खाद्य श्रृंखला का हिस्सा बन गया है और इसके परिणामस्वरूप आसपास के क्षेत्रों में कैंसर और अन्य बीमारियों सहित स्वास्थ्य जोखिम बढ़ गया है।

●भूजल का प्रदूषण, जिसका उपयोग कृषि के साथ-साथ पशुओं के लिए भी किया जाता है।

गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र पहले ही यमुना को मृत नदी घोषित कर चुका है। फ़रीदाबाद, पलवल, गुड़गांव और मेवात जिले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के इस प्रदूषण की वजह से सबसे अधिक प्रभावित हैं। दिल्ली के ओखला बैराज से यमुना नदी का ज़हरीला पानी आगरा नहर और गुड़गांव नहर के माध्यम से सिंचाई के लिये इन चार ज़िलों में प्रयोग किया जाता है जिससे गाँवों में कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से लोग पीड़ित हो रहे हैं।डॉ शिवसिंह रावत ने कहा अभी भी सब कुछ खत्म नहीं हुआ।आशाएँ जीवन को कायम रखती है। हम क्या कर सकते हैं? पर विस्तार से बताया कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में जन लामबंदी और जनता की मांग राजनीतिक इच्छाशक्ति को महत्वपूर्ण और निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकती है और सरकार से तत्काल कार्यान्वयन योग्य नीतिगत निर्णय और कार्रवाई करने का आग्रह कर सकती है।डॉ रावत ने कहा कि सूखती, करहाति और मरती हुई यमुना नदी को बचाने के लिए लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए जनअभियान- “वॉक फॉर यमुना” (डब्ल्यूएफवाई) यानि यमुना बचाओ पदयात्रा शुरू कर रहे हैं। यह पहल न तो विरोध प्रदर्शन है और न ही आंदोलन है, बल्कि जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देने और नदी को उसकी मूल स्थिति में बहाल करने के लिए ठोस कार्रवाई के लिए प्रेरित करने का एक अभियान है।इस अभियान को सफल बनाने के लिए हमें समाज के सभी- पर्यावरणविदों, किसानों, पूर्व सैनिकों, स्कूलों/कॉलेजों/विश्वविद्यालयों और युवाओं, महिलाओं, मशहूर हस्तियों, कॉर्पोरेट, पंचायतों, ब्लाक समिति, ज़िला परिषद , निगमों और सामाजिक संगठनों और मीडिया से अपील है कि वॉक फॉर यमुना अभियान (यमुना बचाओ पदयात्रा) में बढ़चढ़कर हिस्सा लें। आइए बेहतर कल के लिए दुनिया को बदलें और यमुना के लिए चलें। खुद वह बदलाव बनें जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।यमुना बचाओ पदयात्रा कार्यक्रम के बारे बताते हुए केबीसी संस्था के सचिव हुक्म सिंह रावत एवं एडवोकेट विक्रम सोरौत ने बताया कि 3-16 दिसंबर तक गाँव गाँव पद यात्रा के बारे में जानकारी दी जा रही है। इस पुण्य कार्य के लिए लोगों में बहुत उत्साह हैं।17 दिसंबर से पदयात्रा फ़रीदाबाद दिल्ली बॉर्डर से शुरू होगी और 23 दिसंबर किसान दिवस को हसनपुर के पास समापन होगा। यह अभियान केबीसी संस्था पलवल के सहयोग से चलाया जा रहा है। संस्था पलवल ज़िले में कई सामाजिक कार्य कर रही है। प्रेस कॉन्फ़्रेंस में केबीसी संस्था के सचिव हुक्म सिंह रावत एवं एडवोकेट विक्रम सोरौत मौजूद थे।

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