जैन धर्म में दशलक्षण पर्व का है विशेष महत्त्व
आत्म शुद्धि का पर्व है पर्युषण पर्व
City24news/अनिल मोहनिया
नूंह | जैन धर्म में दशलक्षण पर्व का विशेष महत्त्व है ,इस पर्व को पर्युषण पर्व भी कहते हैं। भाद्र माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी से लेकर चतुर्दशी तक बड़ी निष्ठा, उमंग, लगन, श्रद्धा, आस्था,हर्षोल्लास के साथ ये पर्व मनाया जाता है। दशलक्षण एक वर्ष में तीन बार चैत्र,भादो,माघ, माह में आते हैं। लेकिन भाद्र माह में आने वाले पर्युषण पर्व को जैन धर्म के अनुयायी विशेष रूप से मनाते हैं। इस पर्व का अपना विशेष महत्व है। धर्म तो एक ही है ।लेकिन धर्म का स्वरूप दशलक्षण रूप है आत्मा के स्वरूप की प्रतीति पूर्वक चारित्र धर्म की दस प्रकार से आराधना करना दशलक्षण धर्म है। सर्व जातीय सेवा समिति के उपाध्यक्ष रजत जैन ने बताया कि आत्मा के दस प्रकार के सद्भावो के निवास से संबंधित होने से इसे दशलक्षण महापर्व भी कहा जाता है। इस बार दशलक्षण पर्व 08 सितंबर से 17 सितंबर तक मनाये जाएंगे। रजत जैन ने बताया की जैन धर्म में दिगंबर आमना के अनुयायी दशलक्षण पर मानते हैं। श्वेतांबर आमना के अनुयायी भाद्र माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से भाद्र माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी तक आठ दिनों के लिए ये पर्व मानते हैं। जिनको अठाई भी कहा जाता है। दिगंबर आमना में 10 दिनो तक पर्व मनाया जाता है,जिनको दशलक्षण पर्व कहा जाता है ।रजत ने बताया की उत्तम क्षमा धर्म,उत्तम मार्दव धर्म ,उत्तम आर्जव धर्म, उत्तम शौच धर्म, उत्तम सत्य धर्म, उत्तम संयम धर्म ,उत्तम तप धर्म ,उत्तम त्याग धर्म ,उत्तम आकिंचन धर्म, उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म। व्यक्ति इन धर्मो का पालन कर कर अच्छे मानव मूल्यों को जीवन मे अपनाकर उच्च जीवन जीने का प्रयास करते हैं। आत्म शुद्धि ,आत्मकल्याण से मोक्ष मार्ग पर ले जाने में ये दस धर्म सहायक होते हैं एवं जैन धर्म के अनुयायियों के लिए जीवन के लिए एक नई दिशा प्रदान करते हैं। जैन धर्म के अनुयायी वैसे तो पूरे वर्ष जियो और जीने दो और अहिंसा परमो धर्म के सिद्धांत पर चलते हैं लेकिन इन दस दिनों में जीव दया का विशेष ध्यान रखते हैं , प्राणी मात्र के प्रति मैत्री भाव व दया भाव रखते हैं उनका प्रयास रहता है की मन- वचन- काय से किसी भी प्राणी मात्र के प्रति जाने अनजाने में भी गलती ना हो ओर और उनको किसी भी प्रकार की पीड़ा या दुख ना पहुंचे । अपने द्वारा की गई गलतियों के लिए प्राणी मात्र से क्षमा याचना भी करते हैं। जैन धर्म के अनुयायी शारीरिक शुद्धि की अपेक्षा आत्म शुद्धि पर विशेष ध्यान देते हैं ताकि राग -द्वेष, मोह- माया,लोभ- लालच से दूर रहकर अपना आत्म कल्याण कर सके। भक्ति भाव से करते हैं पूजा अर्चना:- जैन धर्म के अनुयायी इन दस दिनों में विशेष उपवास, उद्यापन , अनुष्ठान इत्यादि अनेक धार्मिक कार्य करते हैं। भगवान जिनेंद्र प्रभु का स्वर्ण रत्न जड़ित कलशों से जलाभिषेक के साथ पूजा, अर्चना,आरती आदि पूर्ण निष्ठा, आस्था लगन ,उमंग के साथ विधि पूर्वक मंत्रोच्चरणों के साथ भक्ति भाव से करते हैं ।
सात्विक भोजन में रखते हैं विश्वास:- वैसे तो दस दिनों में अधिकांश लोग उपवास पर रहते हैं लेकिन जो लोग उपवास नहीं रख पाते हैं ,वे व्यक्ति सात्विक भोजन (सादा भोजन) में विश्वास रखते हैं जिसमें मुख्य रूप से वे दाल खिचडी, दाल रोटी, उबला पानी, उबली दाल ,दलिया आदि का प्रयोग दैनिक जीवनचर्या में करते हैं व आडंबरों से दूर रहते हैं।
क्षमावाणी पर्व पर क्षमायाचना:- दशलक्षण पर्व के समाप्त होने के पश्चात जैन धर्म के अनुयायी पूर्व में हुई प्राणी मात्र के प्रति जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए शुद्ध मन वचन काय से हृदय की असीम गहराइयों से एक दूसरे से क्षमायाचना करते हैं । वह भी गलतियों को क्षमा कर अपनी विशालता का परिचय देते हैं। पति,संतान,परिवार के सौभाग्य के महिलाऐ रखती है व्रत :-भादो माह के शुक्ल पक्ष की सुगंध दशमी को सुहागीन महिलाएं पति,संतान ,परिवार की दीर्घायु व संकटो का समाधान व सौभाग्य के लिए व्रत रखती है। भगवान श्री शीतलनाथ की विशेष पूजा,अर्चना करती है। जैन धर्म के अनुयायी अपने अष्ट कर्मो को क्षय करने के लिए धूप(द्रव्य) भी खेते है।
जैन मंदिरों की जाती है विशेष सजावट:- दशलक्षण पर्व में मंदिरों की विशेष रंग बिरंगी विद्युत संचालित लाइटों, रंग-बिरंगे कागजो, कपडो के द्वारा बनाई गई विभिन्न सुन्दर कलाकृतियो के द्वारा विशेष सुंदर मनमोहक,आकर्षक सजावट की जाती है।