देश की आवाम अपने स्वतंत्रता सेनानी बुजुर्गों के सपनों का भारत बनाएं 

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जब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता की घोषणा की थी
City24news/अनिल मोहनिया
नूंह | वो दिन भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है, भारत ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता हासिल की और पहली बार विश्व ने भारत को एक देश में मान्यता दी। ये सिर्फ ऐतिहासिक घटना नहीं है, बल्कि यह हमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान की भी याद दिलाने वाला दिन है और यह हमें देश की एकता और अखंडता की दिशा में प्रयास करके एकजुट रहने की प्रेरणा भी देता है।

हर वर्ग के लोगों की शहादत हुई, हर क्षेत्र के लोग शहीद हुए नूंह जिले के हजारों शहीद हुए, मुगलों से, अंग्रेजों से देश की लड़ाई में हरियाणा और मेवात का अहम योगदान रहा।

आजादी पाने की यात्रा में अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की परवाह किए बिना अभूतपूर्व संघर्ष किया। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, 

मौलाना अबुल कलाम आजाद, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, असफाकुल्ला खान और रानी लक्ष्मीबाई  हकीम अजमल खान और रफी अहमद किदवई जैसे नेताओं ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ बिना रुके लगातार प्रयास करते हुए लड़ाई लड़ी। गांधी जी ने अहिंसा और सत्याग्रह के मार्ग को अपनाकर स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी, जबकि सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी दूसरे दृष्टिकोण के साथ सामने आए।

स्वतंत्रता दिवस पर हमें अपने देश की प्रगति और चुनौतियों की समीक्षा करनी चाहिए और ये काम नागरिकों के साथ साथ सरकारों को भी प्रमुखता से करना चाहिए। यह हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता का सही मतलब सिर्फ राजनीतिक आजादी नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय भी इसमें शामिल है। आजादी के 76 वर्ष बाद भी नागरिकों को आज़ादी की मूल प्राप्ति से कहीं ना कहीं वंचित होना पड़ रहा है। किसानों, गरीबों, मजदूरों व युवाओं सहित सभी सामाजिक व आर्थिक असमानता की चपेट में हैं। संवैधानिक संस्थाएँ भी प्रभावित नज़र आती हैं!

 आज़ादी के दो मूल स्तंभ संविधान और लोकतंत्र आज 76 वर्ष के इतिहास मे सबसे कमज़ोर और दयनीय दौर में हैं। नए भारत में ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों की आवाज़ को सरकार कुचल देना चाहती है जिसके उधारण हाल ही में किसान आंदोलन के दौरान किसानों पर सरकारी अत्याचार, पंच सरपंचों के प्रदर्शनों पर लाठियों की बौछार, आवाज़ उठाने वालों के प्रति सरकार द्वारा अत्याचार शामिल हैं।

देश के आम जिम्मेदार लोगों को इस बात पर भी गंभीर मंथन करना चाहिए कि बीते एक दशक में देश के सांप्रदायिक सद्भाव, अनेकता में एकता के चरित्र को गहरा आघात पहुंचाने की कोशिशें हुई हैं । एक जाति का दूसरी जाति के खिलाफ़, एक धर्म का दूसरे धर्म के खिलाफ़ माहौल बनाने की घटनाएं आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी एक बुरे सपने जैसा ही है। इस देश के बुजुर्गों ने जिस उद्देश्य और सपनों के खातिर अपना जीवन बलिदान किया था वो आज की सरकार की नीति, नीयत और नेतृत्व से बिल्कुल मेल नहीं खाता इसलिए आज़ादी के इस साल के अवसर पर सरकार को भी यह आत्ममंथन करना चाहिए कि जिन लोगों ने बिना धर्म, जाति, रंग, क्षेत्र, भाषा देखे देश के लिए अपनी शहादतें दी उन्हें आज धर्म, जाति, प्रांतों में बांटने की साजिश क्यों हो रही है? सरकार को चाहिए कि वो आज़ादी के इस मौके पर संविधान, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय की रक्षा सुनिश्चित करे क्योंकि यही सिद्धांत देश की आज़ादी और अखंडता को मज़बूत रखने के मुख्य कारक हैं।

देश के आम नागरिक के समक्ष निसंदेह बडी चुनौतियां हैं लेकिन उन्हें मायूस होने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है क्योंकि इन्हीं लोगों के पूर्वजों ने मुगलों, अंग्रेजों से लड़ाईयां लड़ी और जीती अब उन्हीं के वंशज देश की आज़ादी, एकता, अखंडता को बनाए रखने में बिल्कुल सक्षम हैं बस ज़रूरत है वो लोकतंत्र में अपने अधिकारों का सही इस्तेमाल कर अपने शहीद सेनानियों के सपनों के भारत का निर्माण करें। आपसी प्रेम सहयोग और सद्भाव से ही समृद्ध भारत की नींव भारत के युवा रखने का काम करेंगे।

( लेखक कांग्रेस विधायक दल के उप नेता चौधरी आफ़ताब अहमद हैं )

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