प्रथम विश्व युद्ध के 109 वीरों को मांड़ीखेड़ा में श्रद्धांजलि : वशिष्ठ 

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-अंग्रेजी हुकूमत के लगाए पट्ट से लेकर अधूरे स्मारकों तक 
-मेवात के बलिदान की अनकही दास्तान
-मेवात अमन, एकता और शहादत की धरती
City24News/अनिल मोहनिया

नूंह | प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए मेवात के 109 वीरों को शुक्रवार को मांड़ीखेड़ा में सामूहिक श्रद्धांजलि दी गई। लेकिन यह कार्यक्रम सिर्फ एक औपचारिक आयोजन नहीं था। यह मेवात की सदियों से फैली बहादुरी, बलिदान और उपेक्षा की कहानी को एक साथ उजागर करने वाला क्षण साबित हुआ। मुख्यमंत्री के मीडिया कोऑर्डिनेटर मुकेश वशिष्ठ ने शहीद पट्ट के सामने खड़े होकर कहा कि यहां इन वीरों का भव्य स्मारक बनाया जाएगा, और दशकों से अधूरे पड़े स्मारक कार्य अब तेजी से पूरे किए जाएंगे।

अंग्रेजी हुकूमत के लगाए पट्ट लेकिन सुध लेने वाला कोई नहीं

मांड़ीखेड़ा में लगे ब्रिटिश काल के शहीदी पट्ट आज भी गवाही देते हैं कि मेवात ने प्रथम विश्व युद्ध में अपने 109 लाल खोए थे। यह पट्ट अंग्रेजों ने वीरों की पहचान दर्ज करने के लिए लगाए थे, लेकिन आज वही पट्ट जर्जर अवस्था में खड़े हैं। स्थानीय लोगों का कहना है। “इतिहास यहां खुद खड़ा है, बस देखने वाला कोई नहीं।” कार्यक्रम ने पहली बार इस उपेक्षित इतिहास को मुख्यधारा में ला दिया।

1857 की क्रांति से प्रथम विश्व युद्ध तक मेवात की अदम्य गाथा

मुकेश वशिष्ठ ने कहा कि 1857 की पहली आजादी की लड़ाई में सबसे अधिक बलिदान मेवात के लोगों ने दिए थे। आजादी से पहले और बाद की हर लड़ाई में इस क्षेत्र ने अपने हिस्से से अधिक योगदान दिया। उन्होंने घोषणा की कि शहीदों के गांवों में दर्जनों नए स्मारक बनाकर इस गौरवशाली इतिहास को संरक्षित किया जाएगा।

शहीदों की बदौलत खुली हवा आज की पीढ़ी को इतिहास से जोड़ने की चुनौती

राज्य पुरस्कार विजेता सबीला जंग ने कहा कि कार्यक्रम का मुख्य संदेश सरल लेकिन गहरा था। अगर आज हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं, तो यह इन्हीं वीरों की वजह से है। लेकिन इस बात को नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए इतिहास को संग्रहित करना जरूरी है। इस श्रद्धांजलि समारोह ने मेवात की गंगा-जमुनी तहजीब, भाईचारे, एकता और बलिदान के उस बगीचे को फिर जीवंत कर दिया, जिसे समय की धूल ने ढक रखा था।

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