आशा वर्कर दोबारा कर सकती हैं आंदोलन

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सरोज बनी जिला अध्यक्ष व जगवती डागर सचिव

city24news@ रोबिन माथुर
हथीन  | प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ हुए समझौते को लागू करने में हो रही देरी से आशा वर्करों की नाराजगी बढ़ रही है जिसको लेकर यूनियन आंदोलन की घोषणा कर सकती है।स्थानीय जाट धर्मशाला में यूनियन के छठे द्विवार्षिक प्रतिनिधि सम्मेलन में बोलते हुए प्रदेश महासचिव सुनीता ने उक्त घोषणा की।महासचिव सुनीता उपप्रधान रामरति चौहान व सहसचिव सुधा की देख रेख में संपन्न जिला कमेटी के सांगठनिक चुनावों में सरोज को जिला प्रधान तथा जगबती डागर को सचिव व बबली सैनी को सर्वसम्मति से वित्त सचिव चुना गया।सम्मेलन में जिला कमेटी द्वारा तैयार की गई सांगठनिक व वित्त रिपोर्ट पेश की गई जिसे सम्मेलन में उपस्थित प्रतिनिधियों ने कुछ संशोधनों के बाद सर्वसम्मति से पास कर दिया।सम्मेलन में संयुक्त किसान मोर्चा के नेता मास्टर महेन्द्रसिंह चौहान,धर्मचन्द सर्व कर्मचारी संघ के जिला प्रधान राजेश शर्मा सचिव योगेश शर्मा सीआईटीयू की नेता उर्मिला रावत व रमेशचन्द तथा रिटायर्ड कर्मचारी संघ के जिला प्रधान बिधूसिंह व ताराचन्द ने शामिल होकर सफल सम्मेलन की शुभकामनाएं दीं।सम्मेलन में केन्द्र सरकार द्वारा बनाए गए हिट एण्ड रन कानून को जनहित में वापिस लेने की मांग की गई।

सम्मेलन में उपस्थित प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए यूनियन की प्रदेश महासचिव सुनीता उपप्रधान रामरति चौहान व सहसचिव सुधा ने कहा कि भारत सरकार ने देश में मातृ मृत्यु दर व शिशु मृत्यु दर को कम करने तथा स्वास्थ्य की तमाम सुविधाएं जनता तक पहुंचाने के उद्देश्य से इस योजना को लागू किया था जिसे देश व प्रदेश की आशा वर्करों ने सफलता पूर्वक पूरा करते हुए समाज के अंतिम छोर के व्यक्ति तक पहुंचाने का प्रयास किया।प्रदेश की आशा वर्कर आज छोटे डॉक्टर के रूप में काम करती है।स्वास्थ्य विभाग के ज्यादातर कार्य आशा वर्करों से ही कराए जाते हैं।आशा वर्कर के ऊपर कर्मचारी से भी ज्यादा काम का बोझ डाल दिया है जबकि मानदेय व सुविधाओं के लिहाज़ से मजदूर से भी बदतर स्थिति है।उन्होंने आरोप लगाया कि 73 दिन की सफल हड़ताल के बाद मुख्यमंत्री के साथ हुए समझौते को भी लागू नहीं किया गया है जिसके कारण प्रदेश की 20 हज़ार से ज्यादा आशा वर्करों को पिछले 7 महीने से मानदेय का भुगतान भी नहीं किया गया है।बेतहाशा बढ़ रही महंगाई के के कारण आशा वर्करों को परिवार का गुजारा करने के लिए भी भारी संघर्ष करना पड़ रहा है।

यूनियन नेताओं ने कहा कि कोविड-19 जैसी भयंकर महामारी के समय जब सभी लोग डर के कारण अपने घरों से बाहर नहीं निकल पा रहे थे उस कठिन समय के ऊपर भी प्रदेश की आशा वर्करों ने अपनी जान की परवाह किए बिना घर घर जाकर स्वास्थ्य सुविधाऐं पहुंचाने का काम किया था।इस बेहतरीन काम के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत की आशा वर्करों को ग्लोबल हैल्थ लीडर की उपाधि से नवाज़ा गया था।लेकिन दुर्भाग्य से सरकारों ने आशा वर्कर की आर्थिक स्थिति को सुधारने का कोई प्रयास नहीं किया उल्टा उनके साथ ग़ुलामों जैसा व्यवहार किया जा रहा है।उन्होंने उपस्थित प्रतिनिधियों को आने वाले संघर्षों के लिए तैयार रहने का आह्वान किया।

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